समाजशास्त्र कक्षा 12 अध्याय 8 प्रश्न और उत्तर: सामाजिक आंदोलन question answer
Textbook | Ncert |
Class | Class 12 |
Subject | समाजशास्त्र |
Chapter | Chapter 8 |
Chapter Name | सामाजिक आंदोलन ncert solutions |
Category | Ncert Solutions |
Medium | Hindi |
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प्रश्न 1: एक ऐसे समाज की कल्पना कीजिए जहाँ कोई सामाजिक आंदोलन न हुआ हो, चर्चा करें। ऐसे समाज की कल्पना आप कैसे करते हैं, इसका भी आप वर्णन कर सकते हैं?
उत्तर 1: सामाजिक आंदोलन के बिना समाज कल्पना से परे है लेकिन अगर कोई ऐसा समाज रहा है जहां कोई सामाजिक आंदोलन नहीं हुआ है तो वह निम्न प्रकार का होता –
- यह एक बहुत ही प्रगतिशील समाज होता जहां लोग शांतिपूर्ण तरीके से रहते थे।
- सामाजिक वातावरण सहयोगी और सामंजस्यपूर्ण होता। समाज के सभी सदस्य अपने काम से ही प्रतिष्ठित और चिंतित होते।
- स्व-अनुशासनात्मक प्रणाली और आत्म-जांच प्रणाली वहां बहुत अधिक मौजूद होती।
- यह एक बहुत ही आदर्श प्रकार का समाज होता जिसकी आवश्यकता हर देश को होती है।
प्रश्न 2: निम्न पर लघु टिप्पणी लिखें –
महिलाओं के आंदोलन
जनजातीय आंदोलन
उत्तर 2: महिलाओं के आंदोलन: महिलाओं के आंदोलन ने समाज में लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह आंदोलन महिलाओं को उनके अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य, कामकाजी परिस्थितियों और समाज में समान अवसरों के लिए संघर्ष करने का मौका देता है। इसके द्वारा महिलाओं ने न केवल अपनी आवाज़ को बुलंद किया है, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है। महिला अधिकारों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कानूनी सुधारों और सामाजिक जागरूकता अभियानों ने इस आंदोलन को और मजबूती दी है।
जनजातीय आंदोलन: जनजातीय आंदोलन विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए हुए संघर्षों का हिस्सा है। यह आंदोलन आदिवासी समुदायों को उनके भूमि, संस्कृति, जल, जंगल, और जमीन पर अधिकार दिलाने के लिए लड़ा गया है। इन आंदोलनों का उद्देश्य आदिवासियों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हक की रक्षा करना और उनकी स्थिति में सुधार करना है। जनजातीय आंदोलन समाज में शोषण और असमानता के खिलाफ एक मजबूत आवाज बनकर उभरा है, जिससे इन समुदायों को अपने अधिकारों की पहचान और उनका संरक्षण मिल रहा है।
प्रश्न 3: भारत में पुराने तथा नए सामाजिक आंदोलनों में स्पष्ट भेद करना कठिन है।
उत्तर 3: भारत में पुराने और नए सामाजिक आंदोलनों के बीच भेद करना कई बार मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इन आंदोलनों का उद्देश्य समानता, स्वतंत्रता, और सामाजिक न्याय की ओर ही होता है, लेकिन उनके कार्य करने के तरीके, विचारधाराएँ और सामाजिक परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं।
पुराने सामाजिक आंदोलनों: भारत में पुराने सामाजिक आंदोलनों में मुख्य रूप से स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार आंदोलन शामिल हैं। इन आंदोलनों ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद और सामंती व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया। सामाजिक सुधारक जैसे राजा राम मोहन रॉय, स्वामी विवेकानंद, और डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिन्दू धर्म में सुधार, दलितों के अधिकार, और स्त्री शिक्षा पर जोर दिया। इन आंदोलनों ने भारत के सामाजिक ढांचे को चुनौती दी और नई सोच को प्रोत्साहित किया।
नए सामाजिक आंदोलन: स्वतंत्रता के बाद, सामाजिक आंदोलनों ने नए स्वरूप अपनाया, जिनमें जातिवाद, लैंगिक समानता, पर्यावरण संरक्षण, आदिवासी अधिकार, और दलित अधिकारों के लिए आंदोलन शामिल हैं। इन आंदोलनों में अब मुख्य रूप से सामूहिक जागरूकता, जन भागीदारी, और सरकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष देखा जाता है। जैसे- नर्मदा बचाओ आंदोलन, आरक्षण विरोधी आंदोलन, पर्यावरणीय आंदोलन (जैसे Chipko आंदोलन), आदि।
भेद:
- उद्देश्य: पुराने आंदोलनों का उद्देश्य सामाजिक और धार्मिक सुधार और स्वतंत्रता था, जबकि नए आंदोलनों का उद्देश्य समानता, समान अधिकार और सामाजिक न्याय है।
- विधियाँ: पुराने आंदोलनों में तात्कालिक सामाजिक ढांचे को चुनौती दी जाती थी, जबकि नए आंदोलनों में मुख्य रूप से नागरिक अधिकारों, आरक्षण, और पर्यावरणीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- प्रेरणा: पुराने आंदोलनों की प्रेरणा धार्मिक या राष्ट्रीय स्तर पर थी, जबकि नए आंदोलनों की प्रेरणा समाजिक न्याय, अधिकार और लोकतंत्र से जुड़ी है।
प्रश्न 4: पर्यावरणीय आंदोलन प्रायः आर्थिक एवं पहचान के मुद्दों को भी साथ लेकर चलते हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर 4: चिपको आंदोलन पारिस्थतिकीय आंदोलन का एक उपयुक्त उदाहरण है। यह मिश्रित हितों तथा विचारध राओं का अच्छा उदाहरण हैं। रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक ‘अनक्वाइट वुड्स’ में कहते हैं कि गांववासी अपने गांवों के निकट के ओक तथा रोहडैड्रोन के जंगलों को बचाने के लिए एक साथ आगे आए।
जंगल के सरकारी ठेकेदार पेड़ों को काटने के लिए आए तो गाँववासी, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल थीं, आगे बढ़े तथा कटाई रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गए। गाँववासी ईंधन के लिए लकड़ी, चारा तथा अन्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जंगलों पर निर्भर थे।
उसने गरीब गाँववासियों की आजीविका की आवश्कताओं तथा राजस्व कमाने की सरकार की इच्छा के बीच एक संघर्ष उत्पन्न कर दिया। चिपको आंदोलन ने पारिस्थितिकीय संतुलन के मुद्दे को गंभीरतापूर्वक उठाया। जंगलों का काटा जाना वातावरण के विध्वंस का सूचक है, क्योंकि इससे संबंधित क्षेत्रों में बाढ़ तथा भूस्खलन जैसी प्राकृतिक विपदाओं का खतरा रहता है। इस प्रकार से, अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की चिंताएँ चिपको आंदोलन का आधार थी।
प्रश्न 5: कृषक एवं नव किसान आंदोलनों के मध्य अंतर बताइए।
उत्तर 5: किसान आंदोलन औपनिवेशिक काल से पहले शुरू हुआ। यह आंदोलन 1858 तथा 1914 के बीच स्थानीयता, विभाजन और विशिष्ट शिकायतों से सीमित होने की ओर प्रवृत्त हुआ। कुछ प्रसिद्ध आंदोलन निम्नलिखित है –
- 1859 की बंगाल में क्रांति जोकि नील की खेती के विरुद्ध था।
- 1857 का दक्कन विद्रोह जोकि साहूकारों के विरोध में था।
- बारदोली सत्याग्रह जोकि गाँधी जी द्वारा प्रारंभ किया गया तथा भूमि का कर न देने से संबंधित आंदोलन था।
- चंपारन सत्याग्रह (1817-18) यह नील की खेती के विरुद्ध आंदोलन था।
- तिभागो आंदोलन (1946-47)
- तेलांगना आंदोलन (1946-51)
नया किसान आंदोलन 1970 के दशक में पंजाब तथा तमिलनाडु में प्रारंभ हुआ। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न थीं –
- ये आंदोलन क्षेत्रीय स्तर पर संगठित थे।
- आंदोलनों का दलों से कोई लेना-देना नहीं था।
- इन आंदोलनों में बड़े किसानों की अपेक्षा छोटे-छोटे किसान हिस्सा लेते थे।
- प्रमुख विचारधारा – कड़े रूप में राज्य तथा नगर विरोधी।
- माँग का केंद्रबिंदु – मूल्य आधारित मुद्दे।