Teachers day par essay : शिक्षक दिवस पर निबंध { shikshak diwas par nibandh }
प्रस्तावना
शिक्षकों को गरिमा प्रदान करने वाला दिन है ‘ शिक्षक – दिवस ‘ । शिक्षकों द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन है ‘ शिक्षक – दिवस ‘ । समाज और राष्ट्र में ‘ टीचर ‘ के गर्व और गौरव की पहचान कराने का दिन है ‘ टीचर्स – डे । ‘ छात्र छात्राओं के प्रति और अधिक उत्साह – उमंग से अध्यापन , शिक्षण तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष के लिए उनके अन्दर छिपी शक्तियों को जागृत करने का संकल्प दिवस है ‘ अध्यापक – दिवस ‘ ।
सम्मानित अध्यापक – अध्यापिकाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व को -पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित कर उनकी कीर्ति और यश को गौरवान्वित करने का शुभ दिन है , 5 सितम्बर । शिक्षक वह नहीं जो विद्यार्थी के दिमाग में तथ्यों को बोझ बनाए , बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है , जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे । ” यह बात भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ . सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कही है ।
हम शिक्षक दिवस क्यों मनाते है ?
हमारे देश में प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर ‘ शिक्षक दिवस ‘ के रूप में मनाया जाता है । यह दिवस विद्यार्थियों और शिक्षकों , दोनों के लिए विशेष होता है । 1888 ई . में इसी तिथि ( 5 सितम्बर ) को डॉ . सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था । डॉ . राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे और राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने से पहले कई वर्षों तक उन्होंने शिक्षण कार्य किया था , इसलिए उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । ‘ अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस ‘ 5 अक्टूबर को मनाया जाता है और इसकी शुरुआत वर्ष 1994 में यूनेस्को ने की थी ।
राधाकृष्णन का जीवन परिचय
5 सितम्बर, 1888 को मद्रास (चेन्नई) शहर से लगभग 50 किमी दूरी पर स्थित तमिलनाडु राज्य के तिरूतनी नामक गाँव में जन्मे एस. राधाकृष्णन ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल, तिरुपति तथा बेलौर कॉलेज, बंगलुरु में प्राप्त की थी । इसके बाद मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लेकर उन्होंने वहाँ से बी. ए. तथा एम.ए. की उपाधि प्राप्त की । वे विषयों को बड़ी तेजी से समझ लेते थे । उनकी इच्छा एक अध्यापक बनने की थी और उनकी यह इच्छा पूरी हुई, जब वे वर्ष 1909 में मद्रास के एक कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक नियुक्त हुए । बाद में उन्होंने मैसूर एवं कलकत्ता विश्वविद्यालयों में भी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया ।
डॉ . सर्वपल्ली राधाकृष्णन् प्रख्यात दार्शनिक , शिक्षा शास्त्री , संस्कृतज्ञ और राजनयज्ञ थे । सन् 1962 से 1967 तक वे भारत के राष्ट्रपति भी रहे थे । राष्ट्रपति पद पर आने से पूर्व वे शिक्षा जगत से ही सम्बद्ध थे । प्रेजीडेंसी कॉलिज , मद्रास में उन्होंने दर्शन – शास्त्र पढ़ाया । सन् 1921 से 1936 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के ‘ किंग जार्ज पंचम ‘ प्रोफेसर- पद को सुशोभित किया । सन् 1936 से 1939 तक आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी देशों के धर्म और दर्शन के ‘ स्पाल्डिन प्रोफेसर ‘ के पद को गौरवान्वित किया ।
सन् 1939 से 1948 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद को गरिमा प्रदान की । वे वर्ष 1948-49 में यूनेस्को के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष रहे । वर्ष 1952-62 की अवधि में वे भारत के उपराष्ट्रपति रहे । बाद में वे वर्ष 1962 में राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए । राष्ट्रपति बनने के उपरान्त जब उनके प्रशंसकों ने उनका जन्मदिवस सार्वजनिक रूप से मनाना चाहा तो उन्होंने जीवनपर्यन्त स्वयं शिक्षक रहने के नाते इस दिवस को ( 5 सितम्बर ) को शिक्षकों का सम्मान करने के हेतु ‘ शिक्षक दिवस ‘ के रूप में मनाने का परामर्श दिया । तब से प्रतिवर्ष यह दिन ‘ शिक्षक – दिवस ‘ के रूप में मनाया जाता है ।
शिक्षक दिवस पर क्या किया जाता है ?
शिक्षक दिवस देश के सभी विद्यालय-महाविद्यालयों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । विभिन्न राज्यों से शिक्षण के प्रति समर्पित अति विशिष्ट शिक्षकों के नाम राज्य सरकारें केन्द्र को भेजती हैं । राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित नामों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय का शिक्षा विभाग चुनता है । ऐसे चुने गए शिक्षकों को इस मंत्रालय द्वारा 5 सितम्बर को सम्मानित किया जाता है । इस दिन शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी ही शिक्षक की भूमिका निभाते दिखाई देते हैं । विभिन्न कक्षाओं से अलग-अलग विद्यार्थियों का चयन ‘शिक्षक’ के रूप में किया जाता है एवं उन्हें अपनी कक्षा से छोटी कक्षा को शिक्षक के रूप में पढ़ाने के लिए भेज दिया जाता है ।
शिक्षक दिवस का महत्त्व
शिक्षक दिवस पर शिक्षक बना विद्यार्थी स्वयं को शिक्षक के रूप में देखकर रोमांचित और गौरवान्वित महसूस करता है । कक्षा में जाकर छात्रों को पढ़ाते समय उसे एक ज़िम्मेदारी का अहसास होता है । अनेक बार विद्यार्थी एक शिक्षक के कार्य को लेकर विभिन्न प्रकार की बातें बना लेते हैं । उस समय विद्यार्थी बने शिक्षक को यह अहसास होता है कि वास्तव में एक शिक्षक का कार्य ज़िम्मेदारी एवं चुनौतियों से भरा होता है। कक्षा में विद्यार्थियों को पढ़ाना, उन्हें सम्बोधित करना कोई सरल कार्य नहीं होता, यह शिक्षक बना विद्यार्थी भली-भाँति समझने लगता है और इससे उसकी शिक्षण एवं शिक्षक के प्रति आस्था मज़बूत होती है ।
शिक्षक दिवस ऐसे छात्रों के लिए ‘प्रायोगिक दिवस’ के समान होता है, जो अपना भविष्य एक शिक्षक के रूप में सँवारना चाहते हैं । वे एक दिन के लिए शिक्षक बनकर जहाँ स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं, वहीं इस बात का प्रण भी लेते हैं कि यदि उन्हें शिक्षक बनने का अवसर मिला, तो वे अपने पद की गरिमा को बनाते हुए ईमानदारीपूर्वक अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करेंगे ।
यद्यपि, शिक्षा के निजीकरण के बाद से शिक्षा एक व्यवसाय का रूप लेती जा रही है । इसलिए शिक्षकों के व्यवहार भी परिवर्तन देखने को मिला है, यही कारण है कि शिक्षकों के सम्मान में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है । शिक्षकों के सम्मान में आई इस कमी के लिए छात्र ही नहीं, बल्कि शिक्षक भी समान रूप से दोषी हैं । शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य न केवल विद्यार्थियों को शिक्षकों का महत्त्व बताते हुए उन्हें सम्मान देने के लिए प्रेरित करना होता है, बल्कि शिक्षकों को भी उनकी भूमिका एवं उत्तरदायित्व का आभास करवाना होता है ।
अध्यापक का अर्थ
अध्यापक का पर्यायवाची शब्द है ‘ गुरु ‘ । द्वयोपनिषद् के अनुसार , ‘ गु ‘ अर्थात् अंधकार और ‘ रु ‘ का अर्थ है ‘ निरोधक ‘ । अंधकार का निरोध करने से गुरु कहा जाता है । स्कंदपुराण ( गुरु गीता ) के अनुसार ‘ रु ‘ का अर्थ है ‘ तेज ‘ । अज्ञान का नाश करने वाला तेज रूप ब्रह्म गुरु ही है , इसमें संशय नहीं ।
अध्यापक का महत्व
अध्यापक राष्ट्र के निर्माता और राष्ट्र की संस्कृति के संरक्षक हैं । वे शिक्षा द्वारा बालकों के मन में सुसंस्कार डालते हैं तथा उनके अज्ञानान्धकार को दूर कर देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व वहन करते हैं । वे राष्ट्र के बालकों को न केवल साक्षर ही बनाते हैं , बल्कि अपने उपदेश के माध्यम द्वारा उनके ज्ञान का तीसरा नेत्र भी खोलते हैं । वे अपने छात्रों में भला – बुरा , हित – अहित सोचने की शक्ति उत्पन्न करते हैं । राष्ट्र के समग्र विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं । तैतिरीयोपनिषद् में तो आचार्य को देव समान माना है , ‘ आचार्य देवो भव । ‘ कबीर ने तो गुरु को परमेश्वर से भी बड़ा माना है ।
एक आदर्श शिक्षक के गुण
एक आदर्श शिक्षक सही समय पर विद्यालय आता है , शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षण सहायक सामग्रियों का भली – भाँति प्रयोग करता है , छात्रों से मधुर सम्बन्ध रखता है , उन्हें प्रोत्साहित करता है तथा अपने साथियों से भी मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रखता है । इस प्रकार आशावादी दृष्टिकोण , प्रशासनिक योग्यता , जनतान्त्रिक व्यवहार , मनोविज्ञान का ज्ञान , समाज की आवश्यकताओं का ज्ञान , विनोदी स्वभाव , दूरदर्शिता , मिलनसार प्रवृत्ति , अपने कार्य के प्रति आस्था तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व इत्यादि एक आदर्श शिक्षक के गुण हैं ।
निष्कर्ष
वास्तव में , शिक्षक दिवस का आयोजन तभी सार्थक और सफल हो सकेगा , जब शिक्षकों को अपने दायित्व का ज्ञान हो और विद्यार्थी एवं अभिभावक उन्हें महत्त्व एवं सम्मान दें । शिक्षक दिवस शिक्षकों और विद्यार्थियों के संकल्प लेने का दिन है कि वे अपने कर्त्तव्य का निर्वाह पूरी ईमानदारी के साथ करेंगे और अपने देश को उन्नति के पथ पर ले जाने में सहयोग देंगे । डॉ . सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए ।