संविधान का निर्माण Notes: Class 12 history chapter 15 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 15 |
Chapter Name | संविधान का निर्माण |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 history chapter 15 notes in hindi, संविधान निर्माण notes इस अध्याय मे हम भारतीय संविधान के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
संविधान की परिभाषा : –
🔹 किसी भी देश को चलाने के लिए कुछ नियमों तथा कानूनों की आवश्यकता होती है जिससे कि शांतिपूर्ण व नियंत्रित तरीके से सभी कार्यों को किया जा सकें। सामान्यतः इन्हीं नियमों व कानूनों के संकलन को संविधान कहते हैं । संविधान उन नियमों या कानूनों का समूह है जो राज्य की सरकार के गठन, शक्तियों, कर्तव्यों तथा अधिकारों को निश्चित करता है।
🔹 जॉन ऑस्टिन के अनुसार, “जो सर्वोच्च शासन की संरचना को नियमित करता है संविधान कहलाता है।”
भारतीय संविधान : –
🔹 भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। यह विश्व का सबसे लम्बा लिखित संविधान है।
🔹 भारतीय संविधान को 9 दिसम्बर, 1946 से 28 नवम्बर 1949 के बीच सूत्रबद्ध किया गया । संविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 बैठकें हुईं। लगभग तीन वर्ष तक चली बहस के पश्चात् संविधान पर 26 नवम्बर, 1949 को हस्ताक्षर किए गए।
🔹 भारतीय संविधान लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिन में बनकर तैयार हुआ । एव इसे बनाने हेतु लगभग 64 लाख का खर्चा किया गया ।
🔹 भारतीय संविधान में भारतीय शासन व्यवस्था, राज्य और केंद्र के संबंधों एवं राज्य के मुख्य अंगो के कार्यों का वर्णन किया गया है ।
🔹 भारतीय संविधान का निर्माण देश निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण कार्य में से एक था भारतीय संविधान का निर्माण जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे बड़े – बड़े नेताओं द्वारा किया गया था ।
🔹 भारतीय संविधान में समय-समय पर आवश्यकतानुसार संशोधन करने का प्रावधान है। वर्तमान में भारतीय संविधान में 470 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और ये 25 भाग हैं। भारत के संविधान का स्रोत भारतीय जनता है।
भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएँ : –
- यह लिखित, निर्मित एवं विश्व का विशालतम संविधान है।
- संविधान की प्रस्तावना में प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, पन्थनिरपेक्ष एवं समाजवादी गणराज्य की स्थापना की बात कही गई है।
- संविधान द्वारा भारत में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई है।
- राज्य के लिए नीति-निर्देशक तत्वों का समावेश किया है।
- नागरिकों के मूल अधिकार एवं कर्त्तव्यों को दिया गया है।
- भारतीय संविधान लचीलेपन एवं कठोरता का अद्भुत मिश्रण है।
- वयस्क मताधिकार का प्रावधान किया गया है।
- एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
- स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है।
- भारत के एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की बात की गई है।
उथल पुथल का दौर : –
🔹 संविधान निर्माण से पहले के वर्ष बहुत अधिक उथल-पुथल वाले थे। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों द्वारा भारत को स्वतन्त्र तो कर दिया गया, किन्तु इसके साथ ही इसे विभाजित भी कर दिया गया।
🔸 आन्दोलनो का दौर : –
🔹 लोगों की स्मृति में 1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन, विदेशी सहायता से सशस्त्र संघर्ष के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के सुभाष चन्द्र बोस के प्रयास तथा बम्बई और अन्य शहरों में 1946 के वसंत में शाही भारतीय सेना (रॉयल इंडियन नेवी) के सिपाहियों का विद्रोह अभी भी जीवित थे।
🔹 1940 के दशक के अंतिम वर्षों में मजदूर व किसान भी देश के विभिन्न हिस्सों में आन्दोलन कर रहे थे।
🔹 व्यापक हिन्दू-मुस्लिम एकता इन जन आन्दोलनों का एक प्रमुख पक्ष था। इसके विपरीत कांग्रेस व मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दल धार्मिक सौहार्द्र व सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने के लिए लोगों को समझाने के प्रयासों में असफल होते जा रहे थे।
🔸 देश का विभाजन : –
🔹 अगस्त, 1946 में कलकत्ता से प्रारम्भ हुई हिंसा समस्त उत्तरी एवं पूर्वी भारत में फैल गई थी जो एक वर्ष तक जारी रही। इस दौरान देश विभाजन की घोषणा हुई तथा असंख्य लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया।
🔹 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता दिवस पर आनन्द एवं उन्माद का वातावरण था, परन्तु भारत में निवास करने वाले मुसलमानों एवं पाकिस्तान में निवास करने वाले हिन्दुओं एवं सिखों के लिए यह एक निर्मम क्षण था जिसका उन्हें मृत्यु अथवा अपने पूर्वजों की पुरानी जगह छोड़ने के बीच चुनाव करना था ।
🔹 देश के विभाजन की घोषणा के साथ ही असंख्य लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे जिसके फलस्वरूप शरणार्थियों की समस्या खड़ी हो गई।
🔸 देशी रियासतों की समस्या : –
🔹 स्वतंत्र भारत के समक्ष देशी रियासतों के भारतीय संघ में एकीकरण को लेकर भी एक गम्भीर समस्या थी। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप का लगभग एक तिहाई भू-भाग ऐसे नवाबों एवं रजवाड़ों के नियन्त्रण में था जो उसकी अधीनता स्वीकार कर चुके थे। उनके पास अपने राज्य को अपनी इच्छानुसार चलाने की स्वतंत्रता थी। अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो इन नवाबों व राजाओं की संवैधानिक स्थिति बहुत विचित्र हो गई।
संविधान सभा का गठन : –
🔹 संविधान सभा का गठन केबिनेट मिशन योजना द्वारा सुझाए गए प्रस्ताव के अनुसार 1946 में हुआ था ।
🔹 इसके अंतर्गत संविधान सभा के कुल चुने गए सदस्यों की संख्या की संख्या 389 थी। जिसमे से 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 देशी रियासतों से चुने गए ।
🔹 कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान सभा के कुल 389 सदस्यों में से प्रान्तों के लिए निर्धारित 292 सदस्यों के स्थान को मिलाकर कुल 296 सदस्यों के लिए ही चुनाव हुए जिसमें से काँग्रेस के 208, मुस्लिम लीग के 73 तथा 15 अन्य दलों के व स्वतन्त्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए। प्रारम्भिक बैठकों के पश्चात् मुस्लिम लीग ने अपनी निर्बल स्थिति देखकर संविधान सभा के बहिष्कार का निर्णय किया।
संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव : –
🔹 संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर न होकर प्रान्तीय चुनावों के आधार पर किया गया था। 1945-46 में पहले देश में प्रान्तीय चुनाव हुए तथा इसके बाद प्रान्तीय सांसदों ने संविधान सभा के सदस्यों का चयन किया।
🔹 1946 ई. के प्रान्तीय चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस ने सामान्य चुनाव क्षेत्रों में भारी विजय प्राप्त की थी। अतः नई संविधान सभा में कांग्रेस प्रभावशाली स्थिति में थी । लगभग 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस पार्टी के थे।
संविधान सभा में चर्चाएँ : –
🔹 संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से भी प्रभावित होती थीं। जब संविधान सभा में बहस होती थी तो विभिन्न पक्षों के तर्क समाचार-पत्रों में छपते थे जिन पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी जिसका प्रभाव किसी मुद्दे की सहमति व असहमति पर भी पड़ता था ।
🔹 सभा में सांस्कृतिक अधिकारों तथा सामाजिक न्याय के कई अहम मुद्दों पर चल रही सार्वजनिक चर्चाओं पर बहस हुई।
संविधान सभा में कुल सदस्य ओर सर्वाधिक महत्वपूर्ण सदस्य : –
🔹 संविधान सभा में तीन सौ सदस्य थे लेकिन इनमें कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल व राजेन्द्र प्रसाद सहित छः सदस्यों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण थी, जिनमें से राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। अन्य तीन सदस्यों में बी. आर. अम्बेडकर (संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष), के. एम. मुंशी व अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर शामिल थे।
संविधान सभा के छः सर्वाधिक महत्वपूर्ण सदस्यों के विचारों एवं संविधान निर्माण में उनकी भूमिका : –
🔸 ( 1 ) जवाहर लाल नेहरू : – जवाहर लाल नेहरू द्वारा ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत । उन्होंने यह प्रस्ताव भी पेश किया था कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज “केसरिया, सफ़ेद और गहरे हरे रंग की तीन बराबर चौड़ाई वाली पट्टियों का तिरंगा ” झंडा होगा जिसके बीच में गहरे नीले रंग का चक्र होगा।
🔸 ( 2 ) सरदार बल्लभ भाई पटेल : – पटेल मुख्य रूप से परदे के पीछे कई महत्त्वपूर्ण काम कर रहे थे। उन्होंने कई रिपोर्टों के प्रारूप लिखने में खास मदद की और कई परस्पर विरोधी विचारों के बीच सहमति पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
🔸( 3 ) राजेंद्र प्रसाद : – राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। सभा में चर्चा रचनात्मक दिशा ले और सभी सदस्यों को अपनी बात कहने का मौका मिले यह उनकी ज़िम्मेदारियाँ थीं।
🔸 ( 4 ) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर : – उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया। एवं अम्बेडकर के पास सभा में संविधान के प्रारूप को पारित करवाने की ज़िम्मेदारी थी ।
🔸 ( 5 ) एक बी. एन. राव : – वह भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे और उन्होंने अन्य देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन करके कई चर्चा पत्र तैयार किए थे।
🔸 ( 6 ) एस.एन. मुखर्जी : – इनकी भूमिका मुख्य योजनाकार की थी। मुखर्जी जटिल प्रस्तावों को स्पष्ट वैधिक भाषा में व्यक्त करने की क्षमता रखते थे।
संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया था तथा क्या कहा था ?
🔹 संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव पं. जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज केसरिया, सफेद एवं गहरे हरे रंग की तीन बराबर पट्टियों वाला तिरंगा झंडा होगा जिसके मध्य में गहरे नीले रंग का चक्र होगा।
प्रारूप समिति : –
🔹 संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा द्वारा प्रारूप समिति का गठन किया गया। इस समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति की गई।
🔹 सर्वश्री एन. गोपालास्वामी आयंगर, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, के. एम. मुंशी, टी. टी. कृष्णामाचारी, मोहम्मद सादुल्लाह, , डी. पी. खेतान और एन. माधवराव प्रारूप समिति के अन्य सदस्य थे।
प्रारूप समिति का कार्य : –
🔹 प्रारूप समिति का काम था कि वह संविधान सभा की परामर्श शाखा द्वारा तैयार किए गए संविधान का परीक्षण करे और संविधान के प्रारूप को विचारार्थ संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करे। प्रारूप समिति ने भारत के संविधान का जो प्रारूप तैयार किया वह फरवरी, 1948 में संविधान सभा के अध्यक्ष को सौंपा गया।