कमलपुरम् जलाशय : –
🔹 विजयनगर के सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में से एक हौज का निर्माण 15वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ था, जिसे आज ‘कमलपुरम् जलाशय’ कहा जाता है। इस हौज़ के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से “राजकीय केंद्र” तक भी ले जाया गया था।
विजयनगर में नहर : –
🔹 विजयनगर शहर के भग्नावशेषों में हिरिया नहर का अस्तित्व आज भी मौजूद है। सम्भवतः संगम वंश के राजाओं द्वारा निर्मित इस नहर के पानी का प्रयोग धार्मिक केन्द्र से शहरी केन्द्र को अलग करने वाली घाटी की सिंचाई करने में किया जाता था।
विजयनगर में जलसम्पदा की विशेषताएं : –
- विजयनगर का क्षेत्रा प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक है।
- कृत्रिम जलसम्पदा की व्यवस्था की गई।
- जल धाराओं के साथ बांध बनाकर अलग-अलग आकार के हौज बनाए गए।
- कमलपुरम् ।
- हिरिया नहर
- कृष्णा तथा तुंगभद्रा का प्राकृतिक जलाशय ।
विजयनगर की किलेबंदी : –
🔹 विजयनगर शहर की सुरक्षा हेतु विशाल किलेबंदी की गई थी, जिसे दीवारों से घेरा गया था। 15वीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकट ( कोजीकोड) भेजा गया दूत अब्दुर रज्जाक यहाँ की किलेबंदी से अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने दुर्गों की सात पंक्तियों का वर्णन किया । इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आसपास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था।
- सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी ।
- यह विशाल राजगिरी संरचना थोड़ी सी शुण्डाकार थी।
- गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया था।
- पत्थर के टुकड़े फानाकार थे, जिसके कारण वे अपने स्थान पर टिके रहते थे।
- दीवारों के अंदर का भाग मिट्टी और मलवे के मिश्रण से बना हुआ था ।
- वर्गाकार तथा आयताकार बुर्ज़ बाहर की ओर निकले हुए थे।
🔹 इस किलेबंदी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था।
विजयनगर में सड़के : –
🔹 विजयनगर के दुर्ग में प्रवेश हेतु सुरक्षित प्रवेश द्वारों का निर्माण किया गया था जिनसे शहर की मुख्य सड़कें संबंधित होती थीं। प्रवेश द्वारों की स्थापत्य कला उत्कृष्ट थी तथा इनके मेहराब एवं गुम्बदों के निर्माण में इंडो-इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया था।
🔹 सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भूभाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मंदिर के प्रवेशद्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाज़ार थे।
विजयनगर की किलेबंदी की विशेषताएं : –
- दुर्गों की सात पंक्तियाँ ।
- खेतों का घेराव ।
- नगरीय केन्द्र व शासकीय केन्द्र को घेरना ।
- दुर्ग में प्रवेश द्वार तथा सड़कें भी होती थी ।
- अब्दुल रज्जाक समरकंदी द्वारा किलेबन्दी का वर्णन किया गया है ।
- बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी ।
- विशल राजगिरी संरचना थोड़ी सी शुंडाकार थी ।
- ईंटों फनाकार थी अतः जोड़ने के लिए किसी भी मिट्टी या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया ।
- विशाल अन्नागार भी किलेबन्द थे ।
- पहली, दूसरी तथा तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बगीचे तथा आवास हैं ।
- दूसरी किलेबन्दी नगरीय केन्द्र के आन्तरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी ।
- तीसरी किलेबन्दी से राजकीय केन्द्र को घेरा गया था । महत्त्वपूर्ण इमारतों को भी घेरा गया ।
- कृषि क्षेत्र की किलेबन्दी ।
विजयनगर के शहरी केन्द्र : –
🔹 शहरी केन्द्रों में सामान्य लोगों के आवासों के पुरातात्त्विक साक्ष्य कम ही शेष हैं। पुरातत्वविदों को शहरी केन्द्र के उत्तर-पूर्वी कोने से चीनी मिट्टी के टुकड़ों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सम्भवतः इस क्षेत्र में व्यापारी वर्ग के धनी लोगों के आवास थे।
🔹 शहरी केन्द्रों में कुछ मकबरों एवं मस्जिदों के साक्ष्य भी मिले हैं जिनकी स्थापत्य कला मन्दिरों की स्थानीय स्थापत्य कला से मिलती-जुलती है। अनुमान है कि यहाँ मुस्लिम आबादी भी थी ।
🔹 सर्वेक्षणों से यह भी इंगित होता है कि कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और साथ ही मन्दिरों के जलाशय संभवत: सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।
विजयनगर के राजकीय केंद्र : –
🔹 राजकीय केंद्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। हालाँकि इसे राजकीय केंद्र की संज्ञा दी गई है, पर इसमें 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे।
🔹 विजयनगर से महलों के रूप में लगभग 30 संरचनाओं के प्रमाण मिले हैं।
राजकीय क्षेत्र में संरचनाए : –
🔹 महलरूपी ये बड़ी संरचनाएँ धार्मिक क्रियाकलापों हेतु नहीं थीं। इन संरचनाओं तथा मंदिरों के बीच एक अंतर यह था कि मंदिर पूरी तरह से राजगिरी से निर्मित थे जबकि धर्मेतर भवनों की अधिरचना विकारी वस्तुओं से बनाई गई थी।
🔹 राजकीय क्षेत्र की कुछ विशिष्ट संरचनाओं का नामकरण भवनों के आकार एवं उनके कार्य के आधार पर किया गया है। एक सबसे विशाल संरचना का नामकरण राजा के भवन के रूप में किया गया है, परन्तु इसके राजकीय आवास होने के संबंध में कोई प्रमाणित साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। इस भवन के दो प्रभावशाली निर्माण हैं जिन्हें ‘सभामण्डप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है।
सभामंडप : –
🔹 सभामंडप एक ऊँचे मंच के रूप में निर्मित है जिसमें जगह-जगह एक निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छेद निर्मित हैं। इन स्तम्भों पर टिकी दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।
महानवमी डिब्बा : –
🔹 महानवमी डिब्बा नामक संरचना एक विशालकाय मंच के रूप में है जो शहर के सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित है। यह मंच लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊँचाई तक जाता है। सम्भवतः इस विस्तृत मंच का प्रयोग आनुष्ठानिक कार्यों, विशेष उत्सवों, त्योहारों आदि के लिए किया जाता था।
महानवमी : –
🔹 महानवमी का शब्दिक अर्थ 9 दिन तक चलने वाला पर्व आर्थात महान नवा दिवस है ।
🔸 नोट : – इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान, संभवतः सितंबर तथा अक्टूबर के शरद मासों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्यौहार, जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में) तथा नवरात्री या महानवमी ( प्रायद्वीपीय भारत में) नामों से जाना जाता है।
🔹 इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतबे ताक़त तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।
🔹 इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठानों में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व की पूजा, तथा भैंसों और अन्य जानवरों की बलि सम्मिलित थी।
🔹 नृत्य, कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा साज़ लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा और साथ ही प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे।
🔹 इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे। त्यौहार के अंतिम दिन राजा अपनी तथा अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोह में निरीक्षण करता था।
🔹इस अवसर पर नायक, राजा के लिए बड़ी मात्रा भेंट तथा साथ ही नियत कर भी लाते थे।
राजकीय केंद्र में स्थित अन्य भवन : लोटस महल (कमल महल) : –
🔹 राजकीय केन्द्रों में स्थित अन्य भवनों में लोटस महल (कमल महल) सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। 19वीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने इस महल की छत के गुम्बदों की कमलनुमा संरचना को देखकर इसे ‘लोटस महल’ की संज्ञा दी थी।
🔹 लोटस – महल के उपयोग के बारे में इतिहासकार कोई एक निश्चित मत नहीं बना सके हैं, लेकिन मैकेन्जी द्वारा बनाए गए मानचित्र से यह अनुमान लगाया जाता है कि राजा यहाँ अपने सलाहकारों से मिलता था। इस प्रकार से यह एक परिषदीय सभागार था।
राजकीय केंद्र में स्थित मन्दिर : –
🔹हालाँकि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केंद्र में स्थित थे, लेकिन राजकीय केंद्र में भी कई थे। इनमें से राजकीय केन्द्रों में स्थित मन्दिरों में से ‘हजार राम मन्दिर’ अत्यन्त दर्शनीय हैं जिनका उपयोग सम्भवतः केवल राजा और उनके परिवार द्वारा ही पूजा-अर्चना के लिए किया जाता था।
विजयनगर का धार्मिक केंद्र : –
🔹 तुंगभद्रा नदी के तट से लगा विजयनगर शहर का उत्तरी भाग पहाड़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में वर्णित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं । अन्य मान्यताओं के अनुसार पम्पादेवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष नामक देवता से विवाह के लिए तप किया था।
विजयनगर के मंदिर के बारे में जानकारी : –
🔹 इस क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लंबा इतिहास रहा है जो पल्लव, चालुक्य, होयसाल तथा चोल वंशों तक जाता है।
- आमतौर पर शासक अपने आप को ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे।
- अकसर देवता को व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप से राजा से जोड़ा जाता था ।
- मन्दिर शिक्षा के केंद्रों के रूप में भी कार्य करते थे।
- शासक और अन्य लोग मन्दिर के रख-रखाव के लिए भूमि या अन्य संपदा दान में देते थे।
- अतएव, मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए।
- शासकों के दृष्टिकोण से मन्दिरों का निर्माण, मरम्मत तथा रखरखाव, अपनी सत्ता, संपत्ति तथा निष्ठा के लिए समर्थन तथा मान्यता के महत्त्वपूर्ण माध्यम थे।