Class 12 History Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 History Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर Notes In Hindi इस अध्याय मे हम विजयनगर , हम्पी एवं उनके शासक और शासन व्यवस्था इनके बारे में जानेंगे ।
विजयनगर : –
🔹 विजयनगर अथवा ‘विजय का शहर’ एक शहर एवं एक साम्राज्य दोनों के लिए प्रयोग किया जाने वाला नाम था।
🔹 परंपरा और अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों ( हरिहर और बुक्का ) द्वारा 1336 में की गई थी।
🔹 विजयनगर के शासक अपने आपको ‘राय’ कहते थे
🔹 इस साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की गई थी। अपने चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था।
🔹 विजयनगर को 1565 ई. में आक्रमण कर लूटा गया। धीरे-धीरे 17वीं-18वीं शताब्दियों तक यह शहर पूर्ण रूप से नष्ट हो गया, फिर भी कृष्णा-तुंगभद्रा दोआब क्षेत्र के निवासियों में इसकी स्मृति शेष रहीं, उन्होंने इस शहर को हम्पी नाम से याद रखा। इस नाम का प्रचलन यहाँ की स्थानीय मातृदेवी पम्पादेवी के नाम से हुआ था।
🔹 विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं में अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले एवं अलग- अलग धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले लोग रहते थे।
हम्पी की खोज : –
🔹 ईस्ट इंडिया कम्पनी में कार्यरत अभियंता एवं पुरातत्वविद कॉलिन मैकेन्जी ने 1800 ई. में हम्पी के भग्नावशेषों को खोज निकाला। उसने इस स्थान का व्यापक सर्वेक्षण कर एक मानचित्र तैयार किया उसकी प्रारंभिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर एवं पम्पादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।
कॉलिन मैकेन्जी : –
🔹 1754 ई. में जन्मे कॉलिन मैकेन्जी ने एक अभियंता, सर्वेक्षक, तथा मानचित्रकार के रूप में प्रसिद्धि हासिल की। 1815 में उन्हें भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया और 1821 में अपनी मृत्यु तक वे इस पद पर बने रहे।
कर्नाटक साम्राज्यमु : –
🔹 जहाँ इतिहासकार विजयनगर साम्राज्य शब्द का प्रयोग करते हैं वहीं समकालीन लोगों ने उसे कर्नाटक साम्राज्यमु की संज्ञा दी।
गजपति : –
🔹 गजपति का शाब्दिक अर्थ है हाथियों का स्वामी । 15वीं शताब्दी में उड़ीसा के एक शक्तिशाली शासक वंश का नाम गजपति था ।
अश्वपति : –
🔹 विजयनगर की लोक प्रचलित परम्पराओं में दक्कन के सुल्तानों को ‘अश्वपति’ अथवा ‘घोड़ों के स्वामी’ कहा जाता है ।
नरपति : –
🔹 विजयनगर साम्राज्य में, रायों को ‘नरपति’ अथवा ‘लोगों के स्वामी’ कहा गया है।
शासक और व्यापारी : –
🔹 चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी के दौरान युद्धकला पूर्ण रूप से कुशल अश्व सेना पर आधारित होती थी। इसलिए प्रतिस्पर्धी राज्यों के लिए अरब और मध्य एशिया से उत्तम घोड़ों का आयात बहुत ही महत्त्व रखता था ।
🔹 यह व्यापार आरंभिक चरणों में अरब व्यापरियों द्वारा नियंत्रित था । स्थानीय व्यापारी, जिन्हें ‘कुदिरई चेट्टी’ अथवा ‘घोड़ों के व्यापारी’ कहा जाता था, भी इस व्यापार में भाग लेते थे ।
पुर्तगाली : –
🔹 1498 ई. में पुर्तगालियों ने भारतीय उप महाद्वीप के पश्चिमी तट पर व्यापारिक एवं सामरिक केन्द्र स्थापित करने के प्रयास करने प्रारम्भ कर दिए।
🔹 पुर्तगाली बन्दूक के प्रयोग में कुशल थे, इसलिए वे समकालीन राजनीति में शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गए।
विजयनगर में व्यापार : –
🔹 विजयनगर साम्राज्य अपने मसालों, वस्त्रों एवं रत्नों के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। ऐसे शहरों के लिए व्यापार प्रतिष्ठा का सूचक माना जाता था।
🔹 विजयनगर की समृद्धि एवं सम्पन्नता के कारण विदेशी वस्तुओं की माँग जनता में बहुत अधिक थी विशेष रूप से रत्नों और आभूषणों की। दूसरी ओर व्यापार से राज्य को बहुत अधिक राजस्व की प्राप्ति होती थी।
विजयनगर के राजवंश और शासक : –
🔸 नोट :- विजयनगर के शासकों को राय कहा जाता था । तथा विजयनगर के सेना प्रमुख को नायक कहते थे ।
🔹 विजयनगर पर चार राजवंशों ने शासन किया :
- संगम वंश
- सुलुव
- तुलुव वंश
- अरविदु वंश
🔹 राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे।
🔹 विजयनगर साम्राज्य का पहला राजवंश संगम वंश था। 1485 ई. तक विजयनगर इस वंश के अधीन रहा।
🔹 उन्हें सुलुवों ने उखाड़ फेंका, जो सैनिक कमांडर थे और वे 1503 तक सत्ता में रहे। इसके पश्चात् तुलुवों ने सुलुवों को पराजित कर विजयनगर पर अपना अधिकार कर लिया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही संबद्ध था।
🔹 1542 ई. में अराविदु वंश ने विजयनगर की सत्ता पर कब्जा कर लिया।
कृष्णदेव राय ओर विजयनगर : –
🔹 कृष्णदेव राय तुलुव वंश का सबसे प्रतापी शासक था जिसका शासनकाल विजयनगर साम्राज्य के चरमोत्कर्ष का काल कहलाता है। इसके शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार एवं दृढ़ीकरण था ।
🔹 कृष्णदेव राय ने 1512 ई. में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के मध्य स्थित उपजाऊ भू-क्षेत्र (रायचूर दोआब ) पर अधिकार कर अपने राज्य का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण किया। उसने उड़ीसा के शासकों व बीजापुर के सुल्तान को क्रमशः 1514 ई. व 1520 ई. में पराजित किया।
🔹 कृष्णदेव राय ने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा विजयनगर के समीप ही अपनी माँ के नाम पर नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना की।
विजयनगर का पतन : –
🔹 1529 ई. में कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात् राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा जिसका लाभ उठाकर 1542 ई. में अराविदु वंश ने विजयनगर की सत्ता पर कब्जा कर लिया। 17वीं शताब्दी तक इस वंश का विजयनगर पर शासन रहा।
🔹 1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में बीजापुर, गोलकुण्डा एवं अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर पर हमला कर उसे खूब लूटा। कुछ ही वर्षों में यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।
🔹 इस कारण साम्राज्य का केन्द्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से तथा बाद में चन्द्रगिरी (तिरुपति के निकट) से शासन किया।
शासक और सल्तनतें : –
🔹 यद्यपि सुल्तानों की सेनाएँ विजयनगर शहर के विध्वंस के लिए उत्तरदायी थीं, तथापि सुल्तानों एवं रायों के संबंध धार्मिक भिन्नताएँ होने पर भी हमेशा या अपरिहार्य रूप से शत्रुतापूर्ण नहीं रहते थे।
🔸 उदाहरण के लिए : –
- कृष्णदेव राय ने सल्तनतों में सत्ता के अनेक दावेदारों का समर्थन किया तथा ” यवन राज्य की स्थापना करने वाला ” का विरुद धारण कर गौरव महसूस किया।
- इसी प्रकार, बीजापुर के सुल्तान ने कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात विजयनगर में उत्तराधिकार के विवाद को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप किया।
🔹 वास्तव में विजयनगर शासक और सल्तनतें दोनों ही एक-दूसरे के स्थायित्व को निश्चित करने की इच्छुक थीं।
दक्कन सल्तनतों तथा विजयनगर के मध्य संघर्ष के कारण : –
- विजयनगर शासकों और साथ ही दक्कन सल्तनतों के शासकों को सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते समीकरण बदलते रहे।
- कृष्णदेव राय के द्वारा 1520 में बीजापुर को बुरी तरह हराया गया।
- सुल्तानों तथा विजयनगर के बीच अपरिहार्य रूप से शत्रुता नहीं थी ।
- रामराय की एक सुल्तान को दूसरे के विरुद्ध करने की कोशिश ने विपरीतात्मक रूप से उन्हें एक कर दिया।
- 1565 में विजयनगर पर तीनों सुल्तानों ने मिलकर आक्रमण किया। (अहमदनगर, बीजापुर तथा गोलकुण्डा) तथा तालीकोटा (राक्षस-तांगडी) के युद्ध में विजयनगर को शिकस्त दी।
यवन : –
🔹 यवन संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग यूनानियों तथा उत्तर-पश्चिम से उपमहाद्वीप में आनेवाले अन्य लोगों के लिए किया जाता था।
राय तथा नायक : –
🔸 नोट :- राय – विजयनगर के शासक को कहते थे / नायक – सेना प्रमुख नायक कहलाते थे ।
🔹 विजयनगर साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे, जो सामान्यतः किलों पर नियंत्रण रखते थे तथा इनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे।
🔹 ये प्रमुख आमतौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमणशील रहते थे और कई बार बसने के लिए उपजाऊ भूमि की तलाश में किसान भी उनका साथ देते थे ।
🔹 इन सेना प्रमुखों को ‘नायक’ कहा जाता था, जो आमतौर पर तेलुगु और कन्नड़ भाषा बोलते थे। कई नायको ने विजयनगर शासन की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था परन्तु ये अक्सर विद्रोह कर देते थे । इन पर सैनिक कर्यवाही के माध्यम से बस में किया जाता था ।
अमर : –
🔹 अमर शब्द का आविर्भाव मान्यतानुसार संस्कृत शब्द समर से हुआ है जिसका अर्थ है लड़ाई या युद्ध। यह फ़ारसी शब्द अमीर से भी मिलता-जुलता है जिसका अर्थ है- ऊँचे पद का कुलीन व्यक्ति।
अमर नायक प्रणाली : –
🔹 अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रणाली के कई तत्त्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिए गए थे।
अमर नायक एवं उनके कार्य : –
🔹 अमर – नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे। वे किसानों, शिल्पियों एवं व्यापारियों से भू-राजस्व एवं अन्य कर वसूल करते थे तथा व्यक्तिगत उपयोग और घोड़ों व हाथियों के निर्धारित दल के रख- रखाव के लिए राजस्व का कुछ भाग अपने पास रख लेते थे।
🔹 राजस्व का कुछ भाग मन्दिरों तथा सिंचाई के साधनों के रख-रखाव के लिए खर्च किया जाता था।
🔹 अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे तथा अपनी स्वामिभक्ति प्रकट करने के लिए राजदरबारों में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित होते थे ।
🔹 17वीं शताब्दी में कई नायकों द्वारा अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के कारण केन्द्रीय राजकीय ढाँचे का तीव्रता से विघटन होने लगा।
विजयनगर प्रशासन में अमरनायक प्रणाली का मूल्यांकन : –
- अमरनायक राय द्वारा प्रशासन के लिए क्षेत्र दिए जाते थे ।
- अमरनायक उन क्षेत्रों में किसानों, शिल्पकर्मियों और व्यापारियों से कर वसूलते थे ।
- राजस्व का कुछ भाग अमरनायक अपने व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़े और हाथियों के दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे ।
- प्रभावी सैनिक शक्ति प्रदान करने में सहायक ।
- राजस्व का बचा हुआ भाग मंदिर तथा सिंचाई के साधनों के रखरखाव के लिए।
- अमरनायक राजका को वर्ष में एक बार भेंट देते थे ।
- स्वामी भक्ति दर्शाने के लिए दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित रहते थे ।
- 17वी शताब्दी में इनमें से कई ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए थे ।
- राजा द्वारा समय-समय पर अमरनायकों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया करते थे।
विजयनगर की भौगोलिक स्थिति : –
- यह नगर कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदी के बीच रायचूर दोआब में फैला है।
- तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित यहाँ एक प्राकृतिक कुण्ड भी है।
- ग्रेनाइट की पहाड़ियों शहर के चारों ओर करघनी के सादृश्य।
- पहाड़ियों से कई जलधाराएँ आकर नदी में मिलती है।
विजयनगर में जल-संपदा : –
🔹 विजयनगर की समृद्धि में यहाँ की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति का विशेष योगदान था। विजयनगर का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। यह शहर चारों ओर से ग्रेनाइट की पहाड़ियों से घिरा हुआ था जिनसे तुंगभद्रा नदी में कई जलधाराएँ आकर मिलती थीं।
🔹 चूँकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के व्यापक प्रबंध करना आवश्यक था। इसलिए सभी जलधाराओं पर बाँध बनाकर जलापूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित की गई थी।
कमलपुरम् जलाशय : –
🔹 विजयनगर के सबसे महत्त्वपूर्ण हौजों में से एक हौज का निर्माण 15वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ था, जिसे आज ‘कमलपुरम् जलाशय’ कहा जाता है। इस हौज़ के पानी से न केवल आस-पास के खेतों को सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से “राजकीय केंद्र” तक भी ले जाया गया था।
विजयनगर में नहर : –
🔹 विजयनगर शहर के भग्नावशेषों में हिरिया नहर का अस्तित्व आज भी मौजूद है। सम्भवतः संगम वंश के राजाओं द्वारा निर्मित इस नहर के पानी का प्रयोग धार्मिक केन्द्र से शहरी केन्द्र को अलग करने वाली घाटी की सिंचाई करने में किया जाता था।
विजयनगर में जलसम्पदा की विशेषताएं : –
- विजयनगर का क्षेत्रा प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक है।
- कृत्रिम जलसम्पदा की व्यवस्था की गई।
- जल धाराओं के साथ बांध बनाकर अलग-अलग आकार के हौज बनाए गए।
- कमलपुरम् ।
- हिरिया नहर
- कृष्णा तथा तुंगभद्रा का प्राकृतिक जलाशय ।
विजयनगर की किलेबंदी : –
🔹 विजयनगर शहर की सुरक्षा हेतु विशाल किलेबंदी की गई थी, जिसे दीवारों से घेरा गया था। 15वीं शताब्दी में फारस के शासक द्वारा कालीकट ( कोजीकोड) भेजा गया दूत अब्दुर रज्जाक यहाँ की किलेबंदी से अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने दुर्गों की सात पंक्तियों का वर्णन किया । इनसे न केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आसपास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा गया था।
- सबसे बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी ।
- यह विशाल राजगिरी संरचना थोड़ी सी शुण्डाकार थी।
- गारे या जोड़ने के लिए किसी भी वस्तु का निर्माण में कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया था।
- पत्थर के टुकड़े फानाकार थे, जिसके कारण वे अपने स्थान पर टिके रहते थे।
- दीवारों के अंदर का भाग मिट्टी और मलवे के मिश्रण से बना हुआ था ।
- वर्गाकार तथा आयताकार बुर्ज़ बाहर की ओर निकले हुए थे।
🔹 इस किलेबंदी की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे खेतों को भी घेरा गया था।
विजयनगर में सड़के : –
🔹 विजयनगर के दुर्ग में प्रवेश हेतु सुरक्षित प्रवेश द्वारों का निर्माण किया गया था जिनसे शहर की मुख्य सड़कें संबंधित होती थीं। प्रवेश द्वारों की स्थापत्य कला उत्कृष्ट थी तथा इनके मेहराब एवं गुम्बदों के निर्माण में इंडो-इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया था।
🔹 सड़कें सामान्यतः पहाड़ी भूभाग से बचकर घाटियों से होकर ही इधर-उधर घूमती थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण सड़कों में से कई मंदिर के प्रवेशद्वारों से आगे बढ़ी हुई थीं और इनके दोनों ओर बाज़ार थे।
विजयनगर की किलेबंदी की विशेषताएं : –
- दुर्गों की सात पंक्तियाँ ।
- खेतों का घेराव ।
- नगरीय केन्द्र व शासकीय केन्द्र को घेरना ।
- दुर्ग में प्रवेश द्वार तथा सड़कें भी होती थी ।
- अब्दुल रज्जाक समरकंदी द्वारा किलेबन्दी का वर्णन किया गया है ।
- बाहरी दीवार शहर के चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती थी ।
- विशल राजगिरी संरचना थोड़ी सी शुंडाकार थी ।
- ईंटों फनाकार थी अतः जोड़ने के लिए किसी भी मिट्टी या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया ।
- विशाल अन्नागार भी किलेबन्द थे ।
- पहली, दूसरी तथा तीसरी दीवारों के बीच जुते हुए खेत, बगीचे तथा आवास हैं ।
- दूसरी किलेबन्दी नगरीय केन्द्र के आन्तरिक भाग के चारों ओर बनी हुई थी ।
- तीसरी किलेबन्दी से राजकीय केन्द्र को घेरा गया था । महत्त्वपूर्ण इमारतों को भी घेरा गया ।
- कृषि क्षेत्र की किलेबन्दी ।
विजयनगर के शहरी केन्द्र : –
🔹 शहरी केन्द्रों में सामान्य लोगों के आवासों के पुरातात्त्विक साक्ष्य कम ही शेष हैं। पुरातत्वविदों को शहरी केन्द्र के उत्तर-पूर्वी कोने से चीनी मिट्टी के टुकड़ों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सम्भवतः इस क्षेत्र में व्यापारी वर्ग के धनी लोगों के आवास थे।
🔹 शहरी केन्द्रों में कुछ मकबरों एवं मस्जिदों के साक्ष्य भी मिले हैं जिनकी स्थापत्य कला मन्दिरों की स्थानीय स्थापत्य कला से मिलती-जुलती है। अनुमान है कि यहाँ मुस्लिम आबादी भी थी ।
🔹 सर्वेक्षणों से यह भी इंगित होता है कि कुएँ, बरसात के पानी वाले जलाशय और साथ ही मन्दिरों के जलाशय संभवत: सामान्य नगर निवासियों के लिए पानी के स्रोत का कार्य करते थे।
विजयनगर के राजकीय केंद्र : –
🔹 राजकीय केंद्र बस्ती के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित था। हालाँकि इसे राजकीय केंद्र की संज्ञा दी गई है, पर इसमें 60 से भी अधिक मन्दिर सम्मिलित थे।
🔹 विजयनगर से महलों के रूप में लगभग 30 संरचनाओं के प्रमाण मिले हैं।
राजकीय क्षेत्र में संरचनाए : –
🔹 महलरूपी ये बड़ी संरचनाएँ धार्मिक क्रियाकलापों हेतु नहीं थीं। इन संरचनाओं तथा मंदिरों के बीच एक अंतर यह था कि मंदिर पूरी तरह से राजगिरी से निर्मित थे जबकि धर्मेतर भवनों की अधिरचना विकारी वस्तुओं से बनाई गई थी।
🔹 राजकीय क्षेत्र की कुछ विशिष्ट संरचनाओं का नामकरण भवनों के आकार एवं उनके कार्य के आधार पर किया गया है। एक सबसे विशाल संरचना का नामकरण राजा के भवन के रूप में किया गया है, परन्तु इसके राजकीय आवास होने के संबंध में कोई प्रमाणित साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। इस भवन के दो प्रभावशाली निर्माण हैं जिन्हें ‘सभामण्डप’ तथा ‘महानवमी डिब्बा’ कहा जाता है।
सभामंडप : –
🔹 सभामंडप एक ऊँचे मंच के रूप में निर्मित है जिसमें जगह-जगह एक निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तम्भों के लिए छेद निर्मित हैं। इन स्तम्भों पर टिकी दूसरी मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं।
महानवमी डिब्बा : –
🔹 महानवमी डिब्बा नामक संरचना एक विशालकाय मंच के रूप में है जो शहर के सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित है। यह मंच लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊँचाई तक जाता है। सम्भवतः इस विस्तृत मंच का प्रयोग आनुष्ठानिक कार्यों, विशेष उत्सवों, त्योहारों आदि के लिए किया जाता था।
महानवमी : –
🔹 महानवमी का शब्दिक अर्थ 9 दिन तक चलने वाला पर्व आर्थात महान नवा दिवस है ।
🔸 नोट : – इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान, संभवतः सितंबर तथा अक्टूबर के शरद मासों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्यौहार, जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में) तथा नवरात्री या महानवमी ( प्रायद्वीपीय भारत में) नामों से जाना जाता है।
🔹 इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतबे ताक़त तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।
🔹 इस अवसर पर होने वाले धर्मानुष्ठानों में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व की पूजा, तथा भैंसों और अन्य जानवरों की बलि सम्मिलित थी।
🔹 नृत्य, कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा साज़ लगे घोड़ों, हाथियों तथा रथों और सैनिकों की शोभायात्रा और साथ ही प्रमुख नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा और उसके अतिथियों को दी जाने वाली औपचारिक भेंट इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे।
🔹 इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे। त्यौहार के अंतिम दिन राजा अपनी तथा अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में आयोजित भव्य समारोह में निरीक्षण करता था।
🔹इस अवसर पर नायक, राजा के लिए बड़ी मात्रा भेंट तथा साथ ही नियत कर भी लाते थे।
राजकीय केंद्र में स्थित अन्य भवन : लोटस महल (कमल महल) : –
🔹 राजकीय केन्द्रों में स्थित अन्य भवनों में लोटस महल (कमल महल) सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। 19वीं शताब्दी के अंग्रेज यात्रियों ने इस महल की छत के गुम्बदों की कमलनुमा संरचना को देखकर इसे ‘लोटस महल’ की संज्ञा दी थी।
🔹 लोटस – महल के उपयोग के बारे में इतिहासकार कोई एक निश्चित मत नहीं बना सके हैं, लेकिन मैकेन्जी द्वारा बनाए गए मानचित्र से यह अनुमान लगाया जाता है कि राजा यहाँ अपने सलाहकारों से मिलता था। इस प्रकार से यह एक परिषदीय सभागार था।
राजकीय केंद्र में स्थित मन्दिर : –
🔹हालाँकि अधिकांश मन्दिर धार्मिक केंद्र में स्थित थे, लेकिन राजकीय केंद्र में भी कई थे। इनमें से राजकीय केन्द्रों में स्थित मन्दिरों में से ‘हजार राम मन्दिर’ अत्यन्त दर्शनीय हैं जिनका उपयोग सम्भवतः केवल राजा और उनके परिवार द्वारा ही पूजा-अर्चना के लिए किया जाता था।
विजयनगर का धार्मिक केंद्र : –
🔹 तुंगभद्रा नदी के तट से लगा विजयनगर शहर का उत्तरी भाग पहाड़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ रामायण में वर्णित बाली और सुग्रीव के वानर राज्य की रक्षा करती थीं । अन्य मान्यताओं के अनुसार पम्पादेवी ने इन पहाड़ियों में विरुपाक्ष नामक देवता से विवाह के लिए तप किया था।
विजयनगर के मंदिर के बारे में जानकारी : –
🔹 इस क्षेत्र में मन्दिर निर्माण का एक लंबा इतिहास रहा है जो पल्लव, चालुक्य, होयसाल तथा चोल वंशों तक जाता है।
- आमतौर पर शासक अपने आप को ईश्वर से जोड़ने के लिए मन्दिर निर्माण को प्रोत्साहन देते थे।
- अकसर देवता को व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप से राजा से जोड़ा जाता था ।
- मन्दिर शिक्षा के केंद्रों के रूप में भी कार्य करते थे।
- शासक और अन्य लोग मन्दिर के रख-रखाव के लिए भूमि या अन्य संपदा दान में देते थे।
- अतएव, मन्दिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए।
- शासकों के दृष्टिकोण से मन्दिरों का निर्माण, मरम्मत तथा रखरखाव, अपनी सत्ता, संपत्ति तथा निष्ठा के लिए समर्थन तथा मान्यता के महत्त्वपूर्ण माध्यम थे।
विजयनगर राजधानी और भगवान विरुपाक्ष : –
🔹 सम्भवतः विजयनगर को राजधानी के रूप में चुनने का कारण यहाँ भगवान विरुपाक्ष और पम्पादेवी के मन्दिरों का स्थित होना रहा हो।
🔹 विजयनगर के शासक अपने-आपको भगवान विरुपाक्ष का प्रतिनिधि मानकर शासन करने का दावा करते थे। सभी राजकीय आदेशों पर सामान्यतया कन्नड़ लिपि में “ श्री विरुपाक्ष ” शब्द अंकित होता था।
🔹 शासक देवताओं से अपने गहन संबंधों के संकेतक के रूप में विरुद ” हिन्दू सूरतराणा” का प्रयोग भी करते थे। यह अरबी भाषा के शब्द सुल्तान जिसका अर्थ है राजा का संस्कृत अनुवाद था और शाब्दिक रूप में इसका अर्थ था हिंदू सुलतान ।
राय गोपुरम् अथवा राजकीय प्रवेश : –
🔹 विजयनगर के मन्दिर स्थापत्य में कई नए तत्वों का समावेश हुआ जिनमें विशाल स्तर पर बनाई गई संरचनाएँ शामिल हैं। ये संरचनाएँ राजकीय सत्ता की प्रतीक थीं, जिनका सबसे अच्छा उदाहरण राय गोपुरम् अथवा राजकीय प्रवेश द्वार थे।
🔹 राय गोपुरम् अथवा राजकीय प्रवेश द्वार लम्बी दूरी से ही मन्दिर के होने का संकेत देते थे। ये सम्भवतः शासकों की शक्ति की याद भी दिलाते थे, जो इतनी ऊँची मीनारों के निर्माण के लिए आवश्यक साधन, तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे।
मण्डप : –
🔹 अन्य विशेष संरचनाओं में मण्डप एवं लम्बे स्तम्भों वाले गलियारे उल्लेखनीय थे जो प्रायः मन्दिर परिसर में स्थित देवालयों के चारों ओर बने थे।
विरुपाक्ष मन्दिर : –
🔹 विरुपाक्ष मन्दिर के निर्माण में कई शताब्दियों का समय लगा। मुख्य मन्दिर के सामने बना मण्डप राजा कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में बनवाया था जिसे बारीकी से उत्कीर्णित स्तम्भों से सजाया गया था। कृष्णदेव राय को ही पूर्वी गोपुरम् के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।
🔹 विरुपाक्ष मन्दिर के सभागारों का उपयोग विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के कार्यों में किया जाता था। देवी-देवताओं को झूला झुलाने तथा उनके वैवाहिक उत्सवों का आनन्द मनाने हेतु अन्य सभागारों का प्रयोग किया जाता था। इन अवसरों पर विशिष्ट मूर्तियों का प्रयोग होता था जो छोटे केंद्रीय देवालयों में स्थापित मूर्तियों से भिन्न होती थीं।
विट्ठल मन्दिर : –
🔹 विट्ठल मन्दिर विजय नगर का दूसरा महत्त्वपूर्ण मंदिर है। भगवान विट्ठल को विष्णु का स्वरूप माना जाता है। भगवान विट्ठल महाराष्ट्र में प्रमुख देव के रूप में पूजे जाते थे। कर्नाटक में विट्ठल की पूजा विजयनगर के शासकों द्वारा अलग-अलग प्रदेशों की परम्पराओं को आत्मसात् करने का उदाहरण है।
🔹 मन्दिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ हैं जो मन्दिर के गोपुरम् से सीधी रेखा में जाती हैं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तंभ वाले मण्डप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।
🔹 किलेबन्दी की परम्पराओं की तरह नायकों ने मन्दिर निर्माण की परम्पराओं को भी जारी रखा जिनके अन्तर्गत उन्होंने कुछ सबसे दर्शनीय गोपुरमों का निर्माण किया।
विजयनगर के मंदिरों की प्रमुख विशेषताएँ : –
- विजयनगर के शासकों ने अपने आपको ईश्वर से जोड़ने के लिए मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन मिला।
- मंदिरों के रखरखाव व कुशल संचालन के लिए भूमि अनुदान व धन-दौलत आदि दान देने की व्यवस्था ।
- पल्लव, चालुक्य, होयसाल और चोल राजवंशों के राजाओं द्वारा बनवाए गए मंदिरों के पुरावशेष भी मिले हैं।
- हेमकूट की पहाड़ियों से कई धर्मों के पूजास्थलों के अवशेष मिले हैं।
- मंदिर धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक तथा आर्थिक केन्द्रो के रूप में ।
- शिक्षा केन्द्रों के रूप में मंदिरों को पहचान मिली।
- मंदिरों में गोपुरम का निर्माण राजाओं की शानोशौकत के प्रमाण ।
- मंदिर स्थापत्य कला की अन्य प्रमुख विशेषता – मंडप व विशाल स्तम्भों वाले गलियारे ।
- बिरूपाक्ष मंदिर – यूनेस्कों की वर्ल्ड हैरिटेज लिस्ट में शामिल ।
- विट्ठल मंदिर राजा कृष्णदेव राय ने 16वीं शताब्दी में बनवाया ।
- हम्पी के रथ मंदिर को आर. वी. आई. ने 50 रुपये के नोट पर अंकित किया है।
- विट्ठल मंदिर को भी यूनेस्को के वर्ल्ड हैरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया है।
हम्पी : राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में : –
🔹 सन् 1976 ई. में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया गया। तत्पश्चात् 1980 के दशक के आरम्भ में विविध प्रकार के अभिलेखनों द्वारा विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के व्यापक प्रलेखन से भी एक महत्त्वपूर्ण परियोजना आरम्भ की गई। लगभग 20 वर्षों की अवधि में सम्पूर्ण विश्व के अनेक विद्वानों ने इस जानकारी को एकत्रित एवं संरक्षित करने का कार्य किया।
🔹 इस परियोजना के अन्तर्गत सर्वेक्षण बहुत ही गहन परिश्रम से किए गए जिनमें छोटे-छोटे देवस्थानों से लेकर आवासों तथा विशाल मन्दिरों को पुनः सूक्ष्मता से विश्लेषित करके इनका प्रलेखन किया गया।
🔹 इसके द्वारा महलों, मन्दिरों, बाजारों आदि के अवशेषों को पुनः प्राप्त कर इन सभी की स्थिति की पहचान की गई है। यद्यपि विजयनगर में लकड़ी से बनी संरचनाएँ अब नष्ट हो चुकी हैं, पत्थर की संरचनाएँ ही शेष हैं, फिर भी यात्रियों द्वारा छोड़े गए विवरण उस समय के जनजीवन के कुछ आयामों को पुनः निर्मित करने में सहायक होते हैं।
महलो, मंदिरों तथा बाजारों का पुनः अंकन : –
- हम्पी के भवनाशेषों को कॉलिन मैकेन्जी द्वारा 1800 ई. में प्रकाश में लाया गया।
- आरम्भिक सर्वेक्षणों के बाद यात्रा वृत्तांतों तथा अभिलेखों से प्राप्त जानकारी को एक साथ जोड़ा गया ।
- 1980 के आरम्भिक दशक से विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की महत्त्वपूर्ण परियोजना का आरम्भ ।
- तमिल, तेलुगू, कन्नड़ तथा संस्कृत में लिखे साहित्य के गहन अध्ययन से क्षेत्र की जानकारी प्राप्त की गई।
- इस विशद प्रक्रिया का एक चरण था मानचित्र – निर्माण ।
- सम्पूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बाँटा गया। इनको आगे छोटे वर्गों में तथा उनको फिर आगे और छोटे वर्गों में बाँटा गया।
- इनसे हजारों संरचनाओं के अंशो-छोटे देवस्थलों और आश्रमों से लेकर विशाल मंदिरों तक को पुनः उजागर किया गया।
- सड़कों, रास्तों तथा बाजारों को भी इसी प्रकार से मानचित्र पर अंकित किया गया।
- इन सभी की स्थिति की पहचान स्तम्भ आधारों तथा मंचों के माध्यम से की गई है।
- एक समय के जीवंत बाजारों के बस अब यही अवशेष बचे हैं।
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