एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर Notes: Class 12 history chapter 7 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 history chapter 7 notes in hindi, एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर notes इस अध्याय मे हम विजयनगर , हम्पी एवं उनके शासक और शासन व्यवस्था इनके बारे में जानेंगे ।
विजयनगर : –
🔹 विजयनगर अथवा ‘विजय का शहर’ एक शहर एवं एक साम्राज्य दोनों के लिए प्रयोग किया जाने वाला नाम था।
🔹 परंपरा और अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों ( हरिहर और बुक्का ) द्वारा 1336 में की गई थी।
🔹 विजयनगर के शासक अपने आपको ‘राय’ कहते थे
🔹 इस साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी में की गई थी। अपने चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था।
🔹 विजयनगर को 1565 ई. में आक्रमण कर लूटा गया। धीरे-धीरे 17वीं-18वीं शताब्दियों तक यह शहर पूर्ण रूप से नष्ट हो गया, फिर भी कृष्णा-तुंगभद्रा दोआब क्षेत्र के निवासियों में इसकी स्मृति शेष रहीं, उन्होंने इस शहर को हम्पी नाम से याद रखा। इस नाम का प्रचलन यहाँ की स्थानीय मातृदेवी पम्पादेवी के नाम से हुआ था।
🔹 विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं में अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले एवं अलग- अलग धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले लोग रहते थे।
हम्पी की खोज : –
🔹 ईस्ट इंडिया कम्पनी में कार्यरत अभियंता एवं पुरातत्वविद कॉलिन मैकेन्जी ने 1800 ई. में हम्पी के भग्नावशेषों को खोज निकाला। उसने इस स्थान का व्यापक सर्वेक्षण कर एक मानचित्र तैयार किया उसकी प्रारंभिक जानकारियाँ विरुपाक्ष मन्दिर एवं पम्पादेवी के पूजास्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थीं।
कॉलिन मैकेन्जी : –
🔹 1754 ई. में जन्मे कॉलिन मैकेन्जी ने एक अभियंता, सर्वेक्षक, तथा मानचित्रकार के रूप में प्रसिद्धि हासिल की। 1815 में उन्हें भारत का पहला सर्वेयर जनरल बनाया गया और 1821 में अपनी मृत्यु तक वे इस पद पर बने रहे।
कर्नाटक साम्राज्यमु : –
🔹 जहाँ इतिहासकार विजयनगर साम्राज्य शब्द का प्रयोग करते हैं वहीं समकालीन लोगों ने उसे कर्नाटक साम्राज्यमु की संज्ञा दी।
गजपति : –
🔹 गजपति का शाब्दिक अर्थ है हाथियों का स्वामी । 15वीं शताब्दी में उड़ीसा के एक शक्तिशाली शासक वंश का नाम गजपति था ।
अश्वपति : –
🔹 विजयनगर की लोक प्रचलित परम्पराओं में दक्कन के सुल्तानों को ‘अश्वपति’ अथवा ‘घोड़ों के स्वामी’ कहा जाता है ।
नरपति : –
🔹 विजयनगर साम्राज्य में, रायों को ‘नरपति’ अथवा ‘लोगों के स्वामी’ कहा गया है।
शासक और व्यापारी : –
🔹 चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी के दौरान युद्धकला पूर्ण रूप से कुशल अश्व सेना पर आधारित होती थी। इसलिए प्रतिस्पर्धी राज्यों के लिए अरब और मध्य एशिया से उत्तम घोड़ों का आयात बहुत ही महत्त्व रखता था ।
🔹 यह व्यापार आरंभिक चरणों में अरब व्यापरियों द्वारा नियंत्रित था । स्थानीय व्यापारी, जिन्हें ‘कुदिरई चेट्टी’ अथवा ‘घोड़ों के व्यापारी’ कहा जाता था, भी इस व्यापार में भाग लेते थे ।
पुर्तगाली : –
🔹 1498 ई. में पुर्तगालियों ने भारतीय उप महाद्वीप के पश्चिमी तट पर व्यापारिक एवं सामरिक केन्द्र स्थापित करने के प्रयास करने प्रारम्भ कर दिए।
🔹 पुर्तगाली बन्दूक के प्रयोग में कुशल थे, इसलिए वे समकालीन राजनीति में शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गए।
विजयनगर में व्यापार : –
🔹 विजयनगर साम्राज्य अपने मसालों, वस्त्रों एवं रत्नों के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। ऐसे शहरों के लिए व्यापार प्रतिष्ठा का सूचक माना जाता था।
🔹 विजयनगर की समृद्धि एवं सम्पन्नता के कारण विदेशी वस्तुओं की माँग जनता में बहुत अधिक थी विशेष रूप से रत्नों और आभूषणों की। दूसरी ओर व्यापार से राज्य को बहुत अधिक राजस्व की प्राप्ति होती थी।
विजयनगर के राजवंश और शासक : –
🔸 नोट :- विजयनगर के शासकों को राय कहा जाता था । तथा विजयनगर के सेना प्रमुख को नायक कहते थे ।
🔹 विजयनगर पर चार राजवंशों ने शासन किया :
- संगम वंश
- सुलुव
- तुलुव वंश
- अरविदु वंश
🔹 राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे।
🔹 विजयनगर साम्राज्य का पहला राजवंश संगम वंश था। 1485 ई. तक विजयनगर इस वंश के अधीन रहा।
🔹 उन्हें सुलुवों ने उखाड़ फेंका, जो सैनिक कमांडर थे और वे 1503 तक सत्ता में रहे। इसके पश्चात् तुलुवों ने सुलुवों को पराजित कर विजयनगर पर अपना अधिकार कर लिया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही संबद्ध था।
🔹 1542 ई. में अराविदु वंश ने विजयनगर की सत्ता पर कब्जा कर लिया।
कृष्णदेव राय ओर विजयनगर : –
🔹 कृष्णदेव राय तुलुव वंश का सबसे प्रतापी शासक था जिसका शासनकाल विजयनगर साम्राज्य के चरमोत्कर्ष का काल कहलाता है। इसके शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार एवं दृढ़ीकरण था ।
🔹 कृष्णदेव राय ने 1512 ई. में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के मध्य स्थित उपजाऊ भू-क्षेत्र (रायचूर दोआब ) पर अधिकार कर अपने राज्य का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण किया। उसने उड़ीसा के शासकों व बीजापुर के सुल्तान को क्रमशः 1514 ई. व 1520 ई. में पराजित किया।
🔹 कृष्णदेव राय ने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा विजयनगर के समीप ही अपनी माँ के नाम पर नगलपुरम नामक उपनगर की स्थापना की।
विजयनगर का पतन : –
🔹 1529 ई. में कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात् राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा जिसका लाभ उठाकर 1542 ई. में अराविदु वंश ने विजयनगर की सत्ता पर कब्जा कर लिया। 17वीं शताब्दी तक इस वंश का विजयनगर पर शासन रहा।
🔹 1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में बीजापुर, गोलकुण्डा एवं अहमदनगर की संयुक्त सेनाओं ने विजयनगर पर हमला कर उसे खूब लूटा। कुछ ही वर्षों में यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।
🔹 इस कारण साम्राज्य का केन्द्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से तथा बाद में चन्द्रगिरी (तिरुपति के निकट) से शासन किया।
शासक और सल्तनतें : –
🔹 यद्यपि सुल्तानों की सेनाएँ विजयनगर शहर के विध्वंस के लिए उत्तरदायी थीं, तथापि सुल्तानों एवं रायों के संबंध धार्मिक भिन्नताएँ होने पर भी हमेशा या अपरिहार्य रूप से शत्रुतापूर्ण नहीं रहते थे।
🔸 उदाहरण के लिए : –
- कृष्णदेव राय ने सल्तनतों में सत्ता के अनेक दावेदारों का समर्थन किया तथा ” यवन राज्य की स्थापना करने वाला ” का विरुद धारण कर गौरव महसूस किया।
- इसी प्रकार, बीजापुर के सुल्तान ने कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात विजयनगर में उत्तराधिकार के विवाद को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप किया।
🔹 वास्तव में विजयनगर शासक और सल्तनतें दोनों ही एक-दूसरे के स्थायित्व को निश्चित करने की इच्छुक थीं।
दक्कन सल्तनतों तथा विजयनगर के मध्य संघर्ष के कारण : –
🔹 विजयनगर शासकों और साथ ही दक्कन सल्तनतों के शासकों को सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते समीकरण बदलते रहे।
🔹 कृष्णदेव राय के द्वारा 1520 में बीजापुर को बुरी तरह हराया गया।
🔹 सुल्तानों तथा विजयनगर के बीच अपरिहार्य रूप से शत्रुता नहीं थी ।
🔹 रामराय की एक सुल्तान को दूसरे के विरुद्ध करने की कोशिश ने विपरीतात्मक रूप से उन्हें एक कर दिया।
🔹 1565 में विजयनगर पर तीनों सुल्तानों ने मिलकर आक्रमण किया। (अहमदनगर, बीजापुर तथा गोलकुण्डा) तथा तालीकोटा (राक्षस-तांगडी) के युद्ध में विजयनगर को शिकस्त दी।
यवन : –
🔹 यवन संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग यूनानियों तथा उत्तर-पश्चिम से उपमहाद्वीप में आनेवाले अन्य लोगों के लिए किया जाता था।
राय तथा नायक : –
🔸 नोट :- राय – विजयनगर के शासक को कहते थे / नायक – सेना प्रमुख नायक कहलाते थे ।
🔹 विजयनगर साम्राज्य में शक्ति का प्रयोग करने वालों में सेना प्रमुख होते थे, जो सामान्यतः किलों पर नियंत्रण रखते थे तथा इनके पास सशस्त्र सैनिक होते थे।
🔹 ये प्रमुख आमतौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमणशील रहते थे और कई बार बसने के लिए उपजाऊ भूमि की तलाश में किसान भी उनका साथ देते थे ।
🔹 इन सेना प्रमुखों को ‘नायक’ कहा जाता था, जो आमतौर पर तेलुगु और कन्नड़ भाषा बोलते थे। कई नायको ने विजयनगर शासन की प्रभुसत्ता के आगे समर्पण किया था परन्तु ये अक्सर विद्रोह कर देते थे । इन पर सैनिक कर्यवाही के माध्यम से बस में किया जाता था ।
अमर : –
🔹 अमर शब्द का आविर्भाव मान्यतानुसार संस्कृत शब्द समर से हुआ है जिसका अर्थ है लड़ाई या युद्ध। यह फ़ारसी शब्द अमीर से भी मिलता-जुलता है जिसका अर्थ है- ऊँचे पद का कुलीन व्यक्ति।
अमर नायक प्रणाली : –
🔹 अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रणाली के कई तत्त्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिए गए थे।
अमर नायक एवं उनके कार्य : –
🔹 अमर – नायक सैनिक कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र दिए जाते थे। वे किसानों, शिल्पियों एवं व्यापारियों से भू-राजस्व एवं अन्य कर वसूल करते थे तथा व्यक्तिगत उपयोग और घोड़ों व हाथियों के निर्धारित दल के रख- रखाव के लिए राजस्व का कुछ भाग अपने पास रख लेते थे।
🔹 राजस्व का कुछ भाग मन्दिरों तथा सिंचाई के साधनों के रख-रखाव के लिए खर्च किया जाता था।
🔹 अमर नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे तथा अपनी स्वामिभक्ति प्रकट करने के लिए राजदरबारों में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित होते थे ।
🔹 17वीं शताब्दी में कई नायकों द्वारा अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के कारण केन्द्रीय राजकीय ढाँचे का तीव्रता से विघटन होने लगा।
विजयनगर प्रशासन में अमरनायक प्रणाली का मूल्यांकन : –
- अमरनायक राय द्वारा प्रशासन के लिए क्षेत्र दिए जाते थे ।
- अमरनायक उन क्षेत्रों में किसानों, शिल्पकर्मियों और व्यापारियों से कर वसूलते थे ।
- राजस्व का कुछ भाग अमरनायक अपने व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़े और हाथियों के दल के रख-रखाव के लिए अपने पास रख लेते थे ।
- प्रभावी सैनिक शक्ति प्रदान करने में सहायक ।
- राजस्व का बचा हुआ भाग मंदिर तथा सिंचाई के साधनों के रखरखाव के लिए।
- अमरनायक राजका को वर्ष में एक बार भेंट देते थे ।
- स्वामी भक्ति दर्शाने के लिए दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित रहते थे ।
- 17वी शताब्दी में इनमें से कई ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए थे ।
- राजा द्वारा समय-समय पर अमरनायकों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया करते थे।
विजयनगर की भौगोलिक स्थिति : –
- यह नगर कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदी के बीच रायचूर दोआब में फैला है।
- तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित यहाँ एक प्राकृतिक कुण्ड भी है।
- ग्रेनाइट की पहाड़ियों शहर के चारों ओर करघनी के सादृश्य।
- पहाड़ियों से कई जलधाराएँ आकर नदी में मिलती है।
विजयनगर में जल-संपदा : –
🔹 विजयनगर की समृद्धि में यहाँ की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति का विशेष योगदान था। विजयनगर का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड है। यह शहर चारों ओर से ग्रेनाइट की पहाड़ियों से घिरा हुआ था जिनसे तुंगभद्रा नदी में कई जलधाराएँ आकर मिलती थीं।
🔹 चूँकि यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के व्यापक प्रबंध करना आवश्यक था। इसलिए सभी जलधाराओं पर बाँध बनाकर जलापूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित की गई थी।