Essay on Environmental Pollution in hindi : पर्यावरण प्रदूषण पर हिंदी निबंध { paryavaran pradushan par nibandh }
धरती के प्राणियों एवं वनस्पतियों को स्वस्थ व जीवित रहने के लिए हमारे पर्यावरण का स्वच्छ रहना अति आवश्यक है , किन्तु मानव द्वारा स्वार्थ सिद्धि हेतु प्रकृति का इस प्रकार से दोहन किया जा रहा है कि हमारा पर्यावरण दूषित हो चला है । प्रदूषण का खतरा अत्यंत गम्भीर समस्याओं में से एक है जिनका कि विश्व प्रत्येक गुजरते दिन का आज सामना कर रहा है । प्रत्येक दिन के बीतते हमारा वातावरण बराबर और अधिक प्रदूषित होता जा रहा है । आज पर्यावरण प्रदूषण भारत की ही नहीं , बल्कि विश्व की एक गम्भीर समस्या बन गया है । इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं । प्रकृति ने हमें ऐसा वातावरण प्रदान किया है , जोकि प्रदूषण कारक तत्वों से मुक्त है , किन्तु मानव ने जीवन को चलाने वाले वातावरण को प्रदूषित करके अपने साथ ही निर्दयता किया है ।
पर्यावरण शब्द का अर्थ
पर्यावरण दो शब्दों ‘ परि ‘ एवं ‘ आवरण ‘ से मिलकर बना है , जिसमें ‘ परि ‘ का आशय है ‘ चारों ओर से ‘ तथा आवरण का अर्थ है ‘ ढका हुआ ‘ अर्थात् समस्त जीवधारियों तथा वनस्पतियों के चारों ओर का आवरण ही पर्यावरण है । गिस्बर्ट के अनुसार , ” पर्यावरण का तात्पर्य प्रत्येक उस दशा से है जो किसी तथ्य ( वस्तु अथवा मनुष्य ) को चारों ओर से घेरे रहती है तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है । ” सामान्य रूप में ‘ पर्यावरण ‘ की ‘ प्रकृति ‘ से समानता प्रदर्शित की जाती है , जिसके अन्तर्गत भौतिक घटकों ( पृथ्वी , जल , वायु आदि ) तथा जैविक घटकों ( पौधे , जन्तु , सूक्ष्म जीव तथा मानव इत्यादि ) को शामिल किया जाता है ।
प्रदूषण शब्द का अर्थ
प्रदूषण शब्द का अर्थ है , ‘ नष्ट करना , चौपट करना , अशुद्ध या अपवित्र करना । ‘ पर्यावरण का अर्थ है , ‘ वातावरण ‘ अथवा वायु की वह राशि जो पृथ्वी , ग्रह आदि पिण्डों को चारों ओर से घेरती है । दूसरे शब्दों में , मानव जीवन के अस्तित्व , निर्वाह , विकास आदि को दूषित करने वाली स्थिति का नाम पर्यावरण प्रदूषण है ।
सामान्य रूप से पर्यावरण प्रदूषण को निम्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है – वायु प्रदूषण , जल प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण , भूमि / मृदा प्रदूषण , रेडियोधर्मी प्रदूषण , समुद्री प्रदूषण , ठोस अपशिष्ट प्रदूषण , ई – कचरा प्रदूषण , अन्तरिक्ष प्रदूषण तथा प्लास्टिक प्रदूषण इत्यादि ।
वायु प्रदूषण : जब मानवीय या प्राकृतिक कारणों से वायुमण्डल की गैसों की निश्चित मात्रा और अनुपात में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है या वायु में इन गैसों के अतिरिक्त कुछ अन्य विषाक्त या कणिकीय पदार्थ मिल जाते हैं , तो यह वायु प्रदूषण कहलाता है ।
बड़े – बड़े उद्योगों की वृद्धि से , कारखानों की चिमनियों से , मोटर वाहनों के एग्जासिट पाइपों से , रेल के इंजनों से , घरों में काम आने वाली स्टोवों से तथा धूम्रपान आदि किसी भी जलने वाली वस्तु से जो गैसें निकलती हैं , वे वायु को प्रदूषित करती हैं । मोटर वाहनों के एग्जासिटों से जो कार्बन डाईऑक्साइड , नाइट्रोजन , नाइट्रिक , ऑक्साइड , सल्फ्यूरिक एसिड और शीशे के तत्त्व , ( पेट्रोल में शीशा डाला जाता है ) उसके घोल में से होकर निकलने वाले तत्त्व , हवा में घुलते हैं , वे प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करते हैं ।
वायु प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । जैसे – श्वासनी – शोथ , फेफड़ा – कैंसर , खाँसी , दमा , जुकाम । इस प्रकार वायु प्रदूषण मन्द विष ‘ Slow Poisoning ‘ का काम करता है ।
जल प्रदूषण : जल में किसी प्रकार की अवांछनीय गैस , द्रव्य या ठोस पदार्थों का मिलना ही जल प्रदूषण कहलाता है । घरेलू गंदा पानी , नालियों में प्रवाहित मल तथा कारखानों से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ नदियों और समुद्रों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं । इन व्यर्थ पदार्थों में अनेक प्रकार के जहरीले रसायन होते हैं । भारत की महानगरीय व्यवस्था में भूमिगत सीवर अन्ततः समीपस्थ नदी में गिरते हैं । इससे नदी का पानी विषाक्त हो जाता है ।
प्रदूषित जल के उपयोग से आमाशय सम्बन्धी विकार , खाद्य विषाक्तता तथा चर्मरोग उत्पन्न हो जाते हैं । प्रदूषित जल खाद्य फसलों और फलों को सारहीन बना देता है । साथ ही उसमें अवशिष्ट जीवनाशी रसायन मानव शरीर में पहुँच कर खून को विषाक्त कर देते हैं , जिससे अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।
जल संरक्षण तथा जल प्रदूषण के नियन्त्रण के सम्बन्ध में लोगों को जागरूक करना चाहिए । इस कार्य में सरकार के साथ – साथ स्वयंसेवी संगठनों की मदद ली जानी चाहिए । आम जनता को घरेलू अपशिष्ट प्रबन्धन में दक्ष करना होगा । औद्योगिक प्रतिष्ठानों हेतु स्पष्ट नियम बनाए जाएँ , जिससे वे कारखानों से निकले अपशिष्टों को बिना शोधित किए नदियों , झीलों या तालाबों में विसर्जित न करें । नगरपालिकाओं के लिए सीवर शोधन संयन्त्रों की व्यवस्था कराई जानी चाहिए तथा सम्बन्धित सरकार को प्रदूषण नियन्त्रण की योजनाओं के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए आवश्यक धन तथा अन्य साधन प्रदान किए जाएँ ।
ध्वनि प्रदूषण : किसी भी वस्तु से जनित सामान्य आवाज को ध्वनि कहते हैं । ध्वनि की तीव्रता जब एक सीमा से अधिक हो जाती है , तो वह मानव तथा अन्य जीव – जन्तुओं के लिए घातक हो जाती है , तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं । ध्वनि की तीव्रता को डेसीबल ( dB ) में मापते हैं । एक सामान्य व्यक्ति के लिए 50 डेसीबल तीव्रता की ध्वनि सुनना उपयुक्त व सामान्य होता है । 80 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि शोर कही जाती है ।
प्रदूषण का खतरा शोर द्वारा घटित वायुमंडलीय प्रदूषण से और अधिक गम्भीर हो चला है । जहाँ तक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव होने का प्रश्न है , शोर को एक बहुत बड़ा प्रदूषणकारक तत्व माना गया है . भागती – दौड़ती मोटर कारें , तेजी से दौड़ती ट्रेनें , ऊपर उड़ते हुए वायुयान और शोर मचाते लाउडस्पीकरों से जो शोर निकलता है उससे हमारा नाड़ी संस्थान प्रभावित होता है । इधर विद्युत् उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले जनरेटर्स ने स्थिति को और अधिक गम्भीर बना दिया है । वे जहरीली कार्बन डाइऑक्साइड ही नहीं उगलते , बल्कि इतना शोर पैदा करते हैं कि एक दूसरे की बात को सुनना दूभर हो जाता है ।
मृदा प्रदूषण : जब मानव या प्रकृति के द्वारा मृदा की गुणवत्ता में ह्रास होता है , तो उसे मृदा प्रदूषण कहते हैं । भूमि प्रदूषण मनुष्यों की विभिन्न क्रियाओं ; जैसे – अपशिष्टों का जमाव , कृषि रसायन का उपयोग , खनन ऑपरेशन तथा नगरीकरण का परिणाम है ।
मृदा प्रदूषण के कारण : मृदा अपरदन , मृदा में रहने वाले सूक्ष्म जीवों में कमी तथा तापमान में अत्यधिक उतार – चढ़ाव के कारण मृदा प्रदूषण होता है । शहरीकरण द्वारा तथा उद्योगों से निकले अपशिष्ट , जिन्हें भूमि पर बहा दिया जाता है ; जैसे – धातुएँ , अम्ल , क्षार , रंजक पदार्थ , धातु ऑक्साइड , कीटनाशक आदि के द्वारा मृदा प्रदूषण होता है । लवणयुक्त भूमिगत जल वाले क्षेत्रों में सिंचाई करने से ऊपरी मृदा अनुपजाऊ हो जाती है जिसके कारण मृदा प्रदूषण होता है । मृदा की विषाक्तता कृषि में कीटनाशी खरपतवारनाशी ( जैसे – कार्बोफ्यूरान , फ्यूरेट , डी डी टी , ट्राइऐजोफास ) के प्रयोग से भी बढ़ती है , साथ ही साथ मृदा में अवशिष्ट पदार्थ तथा कूड़ा – करकट मिलाने से भी मृदा प्रदूषित होती है । औद्योगिक अपशिष्ट जल , नगरीय अपशिष्ट तथा मेडिकल एवं अस्पतालों के अपशिष्ट को फेंकने से भूमि प्रदूषित हो जाती है ।
मृदा प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय : खाद के रूप में जैविक खाद ; जैसे – गोबर , पत्ती की खाद आदि का अधिक मात्रा में व रासायनिक खाद का प्रयोग कम मात्रा में किया जाए । औद्योगिक अपशिष्टों को बिना उचित उपचार के व घातक रसायनों को छाने बिना भूमि पर बहाने पर प्रतिबन्ध हो । शहरी कचरे का यन्त्रों द्वारा निस्तारण करके निस्तारित कचरे को विद्युत उत्पादन व खाद उत्पादन आदि में प्रयोग किया जाए । कृषि उत्पादन के लिए कम से कम कीटनाशकों का प्रयोग किया जाए । बनों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगाकर मृदा अपरदन तथा इसके पोषक तत्वों को सुरक्षित रखने के लिए मृदा संरक्षण प्रणाली को अपनाया जाए । भूमि उपयोग तथा फसल प्रबन्धन पर ध्यान दिया जाए तथा पॉलिथीन को मिट्टी के सम्पर्क से दूर रखा जाए । बाढ़ नियन्त्रण हेतु योजना बनाई जाए । ढालू भूमि पर सीढ़ीनुमा कृषि पद्धति अपनाने पर बल देना चाहिए ।
रेडियोधर्मी प्रदूषण : रेडियोएक्टिव पदार्थों से होने वाला विकिरण रेडियोधर्मी प्रदूषण ‘ कहलाता है । रेडियोएक्टिव पदार्थों से स्वतः विकिरण ( Radiation ) निकलता रहता है ; जैसे – यूरेनियम , थोरियम , प्लूटोनियम आदि । रेडियोधर्मी प्रदूषण के मापन की इकाई रोण्टजन है । रेडियोधर्मी प्रदूषण के पदार्थ स्वयं में प्रदूषक एवं प्रदूषण दोनों होते हैं । भारत में रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे अधिक केरल में पाया जाता है ।
रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण : यह प्रदूषण मुख्यतया परमाणु रिएक्टरों से होने वाले रिसाब , प्लूटोनियम तथा थोरियम के शुद्धीकरण , नाभिकीय प्रयोग , आण्विक ऊर्जा संयन्त्र , औषधि विज्ञान , रेडियोधर्मी पदार्थों के उत्खनन व परमाणु बमों के विस्फोट द्वारा होता है । इनके अतिरिक्त , मानव द्वारा विविध उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले कोबाल्ट – 60 , स्ट्रांशियम – 90 , कार्बन – 14 , सीजियम – 137 तथा ट्रीटियम आदि द्वारा भी नाभिकीय प्रदूषण होता है । सूर्य की किरणों के कारण तथा पृथ्वी के गर्भ में छिपे रेडियोधर्मी पदार्थों ; जैसे – रेडियम -224 , यूरेनियम -238 तथा पोटैशियम -40 के कारण , जो प्रदूषण होता है , वह प्रकृति जनित प्रदूषण होता है । इसकी तीव्रता कम होने के कारण यह जीवधारियों को कोई विशेष हानि नहीं पहुँचा पाता ।
रेडियोधर्मी प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु उपाय : परमाणु अस्त्रों का उत्पादन व प्रयोग प्रतिबन्धित होना चाहिए । रेडियोएक्टिव अपशिष्ट को तर्कसंगत एवं सही ढंग से निर्गत किया जाना चाहिए । मानव प्रयोग के उपकरणों को रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाना चाहिए । चश्मे पहनकर UV – विकिरणों से बचना चाहिए । जहाँ पर नाभिक अर्थात् नाभिकीय संयंत्र सम्बन्धी काम किए जाते हैं , यहाँ कार्य जल्दी खत्म होना चाहिए जैसे , अधिक व्यक्ति व समय कम , जिससे प्रतिव्यक्ति उद्भासन ( Exposure ) कम – से – कम हो । रिएक्टरों से रिसाब , रेडियोएक्टिव ईंधन तथा आइसोटोपों के परिवहन तथा उपयोग में लापरवाही बरतने आदि पर प्रतिबन्ध होना चाहिए । आण्विक रिएक्टर की स्थापना मानव आबादी से बहुत दूर होनी चाहिए ।
निष्कर्ष
शुद्ध जल , शुद्ध वायु तथा शुद्ध भोजन मानव जीवन के लिए अनिवार्य तत्त्व हैं । इनकी प्राप्ति की समस्या राष्ट्रों के समक्ष जीवन – मरण का प्रश्न लिए खड़ी है । पर्यावरण प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है , गूढ़ पहेली है । इसके हल होने पर मनुष्य स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकेगा , दीर्घायु प्राप्त कर सकेगा । हमें गम्भीरतापूर्वक इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं ? संस्कृति- जीवी होने के कारण हमें ऐसे उपाय सोचने होंगे , जिसमें मानव जीवन की गुणवत्ता की रक्षा करते हुए पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जाए ।