Class 12 political science book 2 chapter 5 notes in hindi: कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना Notes
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ व पुनर्स्थापना Notes |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना notes, class 12 political science book 2 chapter 5 notes in hindi इस अध्याय मे हम कांग्रेस प्रणाली , दो दलीय व्यवस्था , बहुदलीस गठबंधन व्यवस्था के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
महत्वपूर्ण शब्द : –
- PUF – पापुलर यूनाईटेड फ्रंट
- SVD – संयुक्त विधायक दल
- CWC – कांग्रेस वर्किंग कमेटी
- DMK – द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
कांग्रेस प्रणाली क्या है ?
🔹 आजादी के बाद भारत की दल प्रणाली का बहुदलीय होते हुए भी 1952 से 1964 के काल में कांग्रेस के केन्द्र व राज्यों में राजनीतिक वर्चस्व के कारण भारतीय विद्वान रजनी कोठारी ने इसे कांग्रेस प्रणाली की संज्ञा दी । इस काल को मॉरिस जॉन्स ने ‘ एक दलीय प्रभुत्व ‘ की संज्ञा दी ।
🔹 चुनावी प्रतिस्पर्धा के पहले दशक में कांग्रेस ने शासक – दल की भूमिका निभायी और विपक्ष की भी । इसी कारण भारतीय राजनीति के इस कालखंड को कांग्रेस प्रणाली कहा जाता है ।
प्रथम आम चुनाव : –
🔹 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के समय देश में अंतरिम सरकार थी । अब संविधान के अनुसार नयी सरकार के लिए चुनाव करवाने थे । जनवरी 1950 में चुनाव आयोग का गठन किया गया । सुकुमार सेन पहले चुनाव आयुक्त बने । अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक प्रथम आम चुनाव हुए । पहले तीन आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रभुत्व रहा ।
चुनाव आयोग की चुनौतियाँ : –
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना ।
- चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन ।
- मतदाता सूची बनाने के मार्ग में बाधांए ।
- अधिकारियों और चुनावकर्मियों को प्रशिक्षित करना ।
- कम साक्षरता के चलते मतदान की विशेष पद्धति के बारे में सोचना ।
भारत के एक दल का प्रभुत्व एवं दुनिया के अन्य देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व में अंतर : –
- भारत में एक दल का प्रभुत्व दुनिया के अन्य देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व से इस प्रकार भिन्न रहा ।
🔹 मैक्सिको में PRI की स्थापना 1929 में हुई , जिसने मैक्सिको में 60 वर्षों तक शासन किया । परन्तु इसका रूप तानाशाही का था ।
🔹 बाकी देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ ।
🔹 चीन , क्यूबा और सीरिया जैसे देशों में संविधान सिर्फ एक ही पार्टी को अनुमति देता है ।
🔹 म्यांमार , बेलारूस और इरीट्रिया जैसे देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व कानूनी और सैन्य उपायों से कायम हुआ ।
भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र एवं स्वतंत्र निष्पक्ष चुनावों के होते हुए रहा है ।
कांग्रेस के प्रथम तीन आम चुनावों में प्रभुत्व का कारण : –
- स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका ।
- सुसंगठित पार्टी ।
- सबसे पुराना राजनीतिक दल
- पार्टी का राष्ट्र व्यापी नेटवर्क ।
- प्रसिद्ध नेता जैसे जवाहरलाल नेहरू , राजीव गांधी , इन्दिरा जैसे सबसे लोकप्रिय नेता इसमें शामिल थे ।
- सबको समेटकर मेलजोल के साथ चलने की प्रकृति ।
- भारत की चुनाव प्रणाली ।
नेहरु की मौत के बाद उत्तराधिकार का संकट :-
🔹 पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे । वे इस पद पर 1947 से 1964 तक रहे । मई , 1964 में पं नेहरू की मृत्यु हो गई । उनकी मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर बहस तेज हो गई । ऐसी आशंका होने लगी कि देश टूट जाएगा । देश में सेना का शासन आ जाएगा । देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा ।
लाल बहादुर शास्त्री ( 1904 – 1966 )
🔹 लाल बहादुर शास्त्री ने 1930 से स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी की ; उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री रहे ; कांग्रेस पार्टी के महासचिव का पदभार संभाला ; 1951 – 56 तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर रहे ।
🔹 इसी दौरान रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था । बाद में , 1957 – 64 के बीच भी मंत्री पद पर रहे । इन्होंने ‘ जय जवान जय किसान ‘ का मशहूर नारा दिया था । पं . जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने । 10 जनवरी 1966 ताशकन्द में उनका निधन हो गया ।
नेहरु के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी का शासन काल : –
🔹 जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे ।
🔹 शास्त्री जी का 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में निधन हो गया । उस समय भारत चीन युद्ध का नुकसान , आर्थिक संकट , सूखा , मानसून की असफलता पाक से युद्ध जैसी घटनाओं से भारत गुजर रहा था ।
🔹 1965 के युद्ध की समाप्ति के सिलसिले में 1966 में सोवियत संघ के ताशकंद ( वर्तमान में उज्बेकिस्तान की राजधानी ) में भारत व पाकिस्तान के मध्य ताशकंद समझौता हुआ । ताशकंद समझौते पर भारत की तरफ से लाल बहादुर शास्त्री व पाकिस्तान की तरफ से मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किये ।
लाल बहादुर शास्त्री जी के शासन काल के दौरान आई चुनौतिया : –
🔹 लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक प्रधानमंत्री रहे । इस अवधि में देश ने दो चुनौतियों का सामना किया ।
- 1965 का भारत – पाकिस्तान युद्ध
- खाद्यान्न का संकट ( मानसून की असफलता से )
🔹 इन चुनौतियों से निपटने के लिये शास्त्री जी ने ‘ जय जवान जय किसान का नारा दिया ।
शास्त्री जी के बाद उत्तराधिकारी इंदिरा गांधी : –
🔹 शास्त्री जी की मृत्यु के बाद मोरारजी देसाई व इंदिरा गांधी के मध्य राजनैतिक उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ व इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया ।
🔹 सिंडिकेट ने इंदिरा गाँधी को अनुभवहीन होने के बावजूद प्रधानमंत्री बनाने में समर्थन दिया , यह मान कर वे दिशा निर्देशन के लिये सिंडीकेट पर निर्भर रहेंगी । नेतृत्व के लिये प्रतिस्पर्धा के बावजूद पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण बड़े शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया ।
इंदिरा गांधी के पीएम बनने के समय देश की समस्या : –
- मानसून की असफलता ,
- व्यापक सूखा ,
- विदेशी मुद्रा भंडार में कमी ,
- निर्यात में गिरावट
- सैन्य खर्चे में बढ़ोत्तरी से देश में आर्थिक संकट की स्थिति ।
🔹 इंदिरा गांधी ने अमेरिका के दबाव में रुपए का अवमूल्यन किया । उस समय एक डॉलर 5 रुपए का था तो उसे बढ़ाकर 7 रुपए कर दिया ।
चौथा आम चुनाव 1967 : –
🔹 देश की ख़राब स्तिथि और अनुभवहीन नेता होने के कारण विपक्षी दलों ने जनता को लामबंद करना शुरू कर दिया ऐसी स्थिति में अनुभवहीन प्रधानमंत्री का चुनावों का सामना करना भी एक बड़ी चुनौती थी ।
🔹 फरवरी 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए । देश में चुनाव हमेशा की तरह ही आराम से हो गए पर उनके नतीजों ने सबको चौका दिया । कांग्रेस को केंद्र और राज्य दोनों जगह ही गहरा धक्का लगा । कांग्रेस किसी तरह से लोकसभा में सरकार बनाने में सफल रही पर सीटों और मतों की संख्या दोनों में ही भरी गिरावट आई । कांग्रेस के कई बड़े नेता चुनाव हार गए । चुनावों के नतीजों को राजनैतिक भूकम्प का संज्ञा दी गयी ।
🔹 कांग्रेस 9 राज्यों ( उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , पंजाब , हरियाणा , बिहार , पं . बंगाल , उड़ीसा , मद्रास व केरल ) में सरकार नहीं बना सकी । ये राज्य भारत के किसी एक भाग में स्थित नहीं थे ।
भारत के राजनीतिक और चुनावी इतिहास में 1967 के वर्ष को अत्यन्त महत्वपूर्ण पड़ाव क्यों माना जाता है ?
🔹 सन् 1967 के चौथे आम चुनाव भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक महत्व रखते हैं । इन चुनावों में पहली बार कांग्रेस को यह अनुभव हुआ कि जनता पर से उसकी पकड़ ढीली हो रही है । इन चुनावों में भारतीय मतदाताओं ने कांग्रेस को वैसा समर्थन नहीं दिया जो पहले तीन आम चुनावों में दिया था ।
🔹 केन्द्र में जहाँ कांग्रेस मुश्किल से बहुमत प्राप्त कर पाई , वहीं 9 राज्य विधानसभाओं ( बिहार , केरल , मद्रास , ओडीशा , पंजाब , राजस्थान , उत्तरप्रदेश तथा पश्चिम बंगाल ) में हार का सामना करना पड़ा । लोकसभा की कुल 520 सीटों में से कांग्रेस को केवल 283 सीटे ही मिल पाई ।
🔹 अतः जिस कांग्रेस पार्टी ने पहले तीन आम चुनावों में जिन विरोधी दलों को बुरी तरह से हराया , वे दल चौथे लोकसभा चुनाव में बहुत अधिक सीटों पर चुनाव जीत गए । इसी तरह राज्यों में भी कांग्रेस की स्थिति 1967 के आम चुनावों में ठीक नहीं थी । 1967 के आम चुनाव बहुत बड़े उलट – फेर वाले रहे । इससे पहली बार भारत में बड़े पैमाने पर गैर – कांग्रेसवाद की लहर चली तथा राज्यों में कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त हो गया ।
1967 के आम चुनाव के समय भारत की आर्थिक व राजनैतिक स्थिति : –
🔹 भारत की राजनैतिक व आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय थी :-
- गंभीर खाद्यान्न संकट ।
- विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी ।
- औद्योगिक उत्पादन तथा निर्यात में कमी ।
- सैन्य खर्चों में बढ़ोत्तरी ।
- देश में बंद तथा हड़ताल की स्थिति ।
- व्यापक जन – असंतोष ।
- आर्थिक विकास व नियोजन की कमी ।
1960 दशक को खतरानाक दशक क्यों कहते है ?
🔹 1960 के दशक को खतरनाक दशक भी कहा जाता है क्योंकि इस दौरान भारत ने दो युद्धो ( 1962 भारत चीन तथा 1965 में भारत व पाकिस्तान के मध्य ) का सामना किया तथा देश में मानसून की असफलता से सूखे की स्थिति पैदा हो गई ।
गैर कांग्रेस वाद : –
🔹 जो दल अपने कार्यक्रम व विचारधाराओं के धरातल पर एक दूसरे से अलग थे , एकजुट हुये तथा उन्होंने सीटों के मामले में चुनावी तालमेल करते हुये एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा बनाया । समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इस रणनीति को गैर – कांग्रेसवाद का नाम दिया ।
दल बदल : –
🔹जब कोई जन प्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिह्न पर चुनाव जीत जाये व चुनाव जीतने के बाद उस दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो जाये तो इसे दल – बदल कहते हैं ।