कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना notes, class 12 political science book 2 chapter 5 notes in hindi

भारतीय राजनीति में ‘ आया राम , गया राम ‘ से क्या तात्पर्य है ?

🔹 कहावत ‘ आयाराम , गयाराम ‘ सांसदों द्वारा अपनी पार्टी को बार – बार बदलना कहलाता है , 1967 के चुनावों के बाद काग्रेस के एक विधायक ( हरियाणा ) गयालाल ने एक पखवाड़े में तीन बार पार्टी बदली , उनके ही नाम पर ‘ आयाराम – गयाराम ‘ का जुमला बना । 

सिंडिकेट : –

🔹 कांग्रेस नेताओं का एक समुह को एक अनौपचारिक रूप से ‘ सिंडिकेट ‘ के नाम से पुकारा जाता था । इस समुह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर अधिकार और पूर्ण नियंत्रण था । 

🔹 ‘ सिंडिकेट ‘ के अगुआ मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और फिर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के . कामराज थे । इसमें प्रांतों के ताकतवर नेता जैसे बंबई सिटी ( अब मुबंई ) के एस . के . पाटिल , मैसूर ( अब कर्नाटक ) के एस . निजलिंगप्पा , आंध्र प्रदेश के एन . संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे ।

1969 का राष्ट्रपति चुनाव : –

🔹  डा . जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद , सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन . संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया ।

🔹 इंदिरा गांधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी . वी . गिरि को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिये नामांकन भरवा दिया । इंदिरागांधी ने अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने के लिये कहा , वी . वी . गिरी चुनाव जीत गये ।

🔹 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनावों के बाद कांग्रेस का विभाजन हो गया ।

कांग्रेस का विभाजन : –

🔹 सिंडीकेट व इंदिरा गांधी के मध्य बढ़ते मतभेद व राष्ट्रपति चुनाव ( 1969 ) में इंदिरा गांधी समर्थित उम्मीदवार वी . वी . गिरी की जीत व कांग्रेस के अधिकारिक उम्मीदवार एन . सजीव रेड्डी की हार से कांग्रेस को 1969 में कांग्रेस को विभाजन की चुनौती झेलनी पड़ी ।

🔹 कांग्रेस ( आर्गेनाइजेशन ) व कांग्रेस ( रिक्विजिनिस्ट ) में विभाजित हो गयी ।

  • Cong ( O ) ( सिंडिकेट समर्थित ग्रुप )
  • Cong ( R ) ( इंदिरा गांधी समर्थित ग्रुप )

कांग्रेस के विभाजन के मुख्य कारण : –

  • 1969 का राष्ट्रपति चुनाव ।
  • बैंको का राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवी पर्स जैसे मुद्दो पर तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई से मतभेद
  • सिंडीकेट व युवा वर्ग में मतभेद ।
  • इंदिरा गाँधी की समाजवादी नीतियाँ ।
  • इंदिरा गाँधी का कांग्रेस से निष्कासन  
  • इंदिरा गाँधी द्वारा सिंडीकेट को महत्व न देना । 
  • दक्षिण पंथी व वामपंथी विषय पर कलह ।

प्रिवी पर्स क्या है ?

🔹 देशी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि रियासतों के तत्कालिन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार होगा । साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी दिए जाएँगे । इस व्यवस्था को प्रिवी पर्स कहा गया ।

देसी रियासतों का विलय : –

🔹 देसी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार दिया तथा सरकार की तरफ से कुछ विशेष भत्ते देने का भी आवश्वासन दिया ।

🔹 यह दोनों ( निजी संपदा व भत्ते ) इस बात को आधार मान कर तय की जायेगी कि उस रियासत का विस्तार , राजस्व व क्षमता कितनी है । इस व्यवस्था को प्रिवी पर्स कहा गया । इंदिरा गांधी ने 1967 के चुनावों की खोई जमीन प्राप्त करने के लिये दस सूत्रीय कार्यक्रम अपनाये इसमें बैंको का राष्ट्रीयकरण , खाद्यान्न का सरकारी वितरण , भूमि सुधार आदि शामिल थे ।

नोट :- 1971 के चुनावों में गैर – साम्यवादी तथा गैर – कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने चुनावी गठबंधन ” ग्रैंड अलायंस ” बनाया ।

🔹 इंदिरा गांधी ने सकारात्मक कार्यक्रम रखा व गरीबी हटाओ का नारा दिया । ग्रैंड अलायंस ने ‘ इंदिरा हटाओ ‘ का नारा दिया । इंदिरा गांधी ने प्रिसी पर्स की समाप्ति पर चुनाव अभियान में जोर दिया ।

कांग्रेस प्रणाली का पुर्नस्थापन : –

🔹 अब कांग्रेस पूर्णतया अपने सर्वोच्च नेता की लोकप्रियता पर अधारित थी । कांग्रेस अब विभिन्न मतों व हितो को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी ।

🔹 यह कुछ सामाजिक वर्गो जैसे गरीब , महिला , दलित , आदिवासी व अल्पसंख्यकों पर निर्भर थी ।

🔹 इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को पुर्नस्थापित तो कर दिया परन्तु कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर । पार्टी का सांगठनिक ढाँचा भी अपेक्षाकृत कमजोर था ।

1971 के चुनावों के बाद , कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व की पुनर्स्थापना के लिए उठाए गए कदम : –

  • श्रीमती गाँधी का चमत्कारिक नेतृत्व । 
  • समाजवादी नीतियाँ । 
  • गरीबी हटाओं का नारा । 
  • कांग्रेस दल पर इंदिरा गाँधी की पकड़ । 
  • वोटों का धुव्रीकरण । 
  • कमजोर विपक्षी दल ।

1970 के दशक में इंदिरा गांधी सरकार के लोकप्रिय होने के कारण : –

  • 1971 के भारत – पाक युद्ध में भारत की विजय 
  • गरीबी हटाओ की राजनीति 
  • प्रिवी पर्स की समाप्ति 
  • गरीबों , भूमिहीन किसानों और वंचितों की रक्षक 
  • भूमि सुधार

गरीबी हटाओ का नारा : –

🔹 ‘ गरीबी हटाओ ‘ का नारा 1971 के पाँचवें लोकसभा चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने दिया । श्रीमती गाँधी ने ‘ गरीबी हटाओ ‘ के नारे के अन्तर्गत गरीबों के निरन्तर विकास की बात कही । ‘ गरीबी हटाओ ‘ कार्यक्रम के अन्तर्गत 1970-71 से नीतियाँ एवं कार्यक्रम बनाए जाने लगे तथा इस कार्यक्रम पर अधिक – से – अधिक धन खर्च किया जाने लगा ।

🔹 इससे मतदाताओं को यह आभास हुआ कि कांग्रेस पार्टी वास्तव में गरीबों की गरीबी दूर करना चाहती है । अतः उन्होंने बाकी सभी दलों को हराते हुए श्रीमती गाँधी एवं उनके दल को विजयी बनाया । परिणाम स्वरूप 1971 के चुनावों में पूर्णबहुमत प्राप्त किया ।

दो दलीय व्यवस्था : –

🔹 जनवरी 1977 में विपक्षी पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया कांग्रेसी नेता बाबू जगजीवन राम ने कांग्रेस फोर डेमोक्रेसी ‘ दल का गठन किया , जो बाद में जनता पार्टी में शामिल हो गया । 

🔹 जनता पार्टी ने आपातकाल की ज्यादतियों को मुद्दा बनाकर चुनावों को उस पर जनमत संग्रह का रूप दिया । 1977 के चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा में 154 सीटें तथा जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 330 सीटें मिली । 

🔹 आपातकाल का प्रभाव उत्तर भारत में अधिक होने के कारण 1977 के चुनाव में कांग्रेस को उत्तर भारत में ना के बराबर सीटें प्राप्त हुई । जनता पार्टी की सरकार में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री तथा चरण सिंह व जगजीवन राम दो उपप्रधानमंत्री बनें । 

🔹 जनता पार्टी के पास किसी दिशा , नेतृत्व व एक साझे कार्यक्रम के अभाव में यह सरकार जल्दी ही गिर गई । 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 353 सीटें हासिल करके विरोधियों को शिकस्त दी ।

गठबंधन : –

🔹 गठबंधन उस स्तिथि को कहते जब दो या दो से ज़्यादा पार्टिया साथ में मिल कर सरकार बनती है । ऐसा इसीलिए किया जाता है क्योकि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला होता , यानि की किसी भी पार्टी को इतनी सीटे नहीं मिली होती की वह अकेले सरकार बना सके ।

गठबंधन सरकारों के उदय के कारण : –

  • राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का कमजोर होने के कारण
  • क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव व सरकारों के निर्माण में बढ़ती भूमिका
  • जाति व सम्प्रदाय आधारित अवसरवादी राजनीति का उदय

गठबंधन का युग : –

🔹 1989 के चुनावों के बाद गठबंधन का युग आरंभ हुआ । चुनावों के बाद जनता दल और कुछ क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बने राष्ट्रीय मोर्चे ने भाजपा और वाम मोर्चे के समर्थन से गठबंधन सरकार बनायी ।

🔹 1998 से 2004 तक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार रही । इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी प्रधनमंत्री रहे ।

🔹 2004 से 2009 व 2009 से 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए । इस दौरान डा . मनमोहन सिंह प्रधनमंत्री रहे । 

🔹 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रचते हुए 30 साल बाद पूर्ण बहुमत प्राप्त किया परन्तु चुनाव पूर्व गठबंधन की प्रतिबद्धता का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनाई ।

पार्टियों के भीतर गठबन्धन तथा पार्टियों के बीच गठबंधन में अन्तर : –

🔹 पार्टी के भीतर गठबन्धन भारत में प्रथम आम चुनावों से ही देखने को मिला । जब कांग्रेस एक सतरंगे सामाजिक व विचारधारात्मक गठबंधन के रूप में दिखी । अलग – अलग गुटो के होने से इसका स्वभाव सहनशील बना । तथा कांग्रेस के भीतर ही संगठन का ढांचा अलग होने पर भी व्यवस्था में सन्तुलन साधने के एक साधन के रूप में काम किया । 

🔹 वर्तमान राजनीति में पार्टियों के बीच गठबन्धन दिखाई देता है जहाँ भारतीय लोकतंत्र हित में अलग – अलग विचार धाराओं को मानने वाले दल आम सहमति के मुद्दो पर मिली जुली सरकार बनाते है परन्तु आपने दल की नीतियाँ नहीं बदलते ।

भारत में राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धा को सशक्त बनाने वाले कारण : –

  • संवैधानिक प्रावधान 
  • स्वतंत्र चुनाव आयोग 
  • स्वतंन्त्र प्रेस 
  • स्वतंन्त्र न्यापालिका 
  • बहुदलीय व्यवस्था 
  • दबाव एवम् हित समूह

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