Class 12 history chapter 1 notes in hindi, ईंटें मनके तथा अस्थियाँ notes

नालों का निर्माण ( जल निकास प्रणाली ) : –

🔹 सड़कों या गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था । ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था। हर आवास गली में नालियों का निर्माण किया गया था। मुख्य नाले ईंटों से बने थे और उन्हें ईंटों से ढका गया था।

नालियों की विशेषताएं : –

🔹 मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और इन्हें ऐसी ईंटों से ढँका गया था जिन्हें सफ़ाई के लिए हटाया जा सके। कुछ स्थानों पर ढँकने के लिए चूना पत्थर की पट्टिका का प्रयोग किया गया था। घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थीं जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में बह जाता था। बहुत लंबे नालों में कुछ अंतरालों पर सफ़ाई के लिए हौदियाँ बनाई गई थीं।

गृह स्थापत्य : –

🔹 मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। कई भवन एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। आँगन खाना पकाने, कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था। प्रत्येक मकान में एक स्नानघर होता था। कई मकानों में कुएँ थे मोहनजोदड़ो में 700 कुएँ थे । मकानों में भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं थीं

हड़प्पा सभ्यता में सार्वजनिक भवन : –

🔹 उत्खनन में सावर्जनिक या राज्यकीय भवनों के अवशेष मिले हैं । एक अवशेष मोहनजोदड़ो से मिला है। जो 70 मीटर लम्बा और 24 मीटर चौडा है। यहाँ पर ही 71 मीटर लंबा व इतना ही चौड़ा एक वर्गाकार कक्ष का अवशेष प्राप्त हुआ है। जिसमे 20 सतम्भ है। एक अनुमान के अनुसार इस भवन का उपयोग आपसी विचार विमर्श धार्मिक आयोजन , सामाजिक आयोजन के लिए किया जाता होगा।

हड़प्पा सभ्यता में विशाल स्नानागार : –

🔹 विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। मोहनजोदड़ो का एक प्रमुख सार्वजनिक स्थल है यहाँ के विशाल दुर्ग (54.86 x 33 मीटर) में स्थित विशाल स्नानागार। यह 39 फुट (11.88 मीटर लम्बा, 23 फुट (7.01 मीटर) चौड़ा एवं 8 फुट (2.44 मीटर) गहरा है। इसमें उतरने के लिए उत्तर एवं दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ बनी हैं। जलाशय के किनारों पर ईंटों को जमाकर तथा जिप्सम के गारे के प्रयोग से इसे जलबद्ध किया गया था।

🔹 इसके तीनों ओर कक्ष बने हुए थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशय से पानी एक बड़े नाले में बह जाता था। इसके उत्तर में एक गली के दूसरी ओर एक अपेक्षाकृत छोटी संरचना थी जिसमें आठ स्नानघर बनाए गए थे। एक गलियारे के दोनों ओर चार-चार स्नानघर बने थे । प्रत्येक स्नानघर से नालियाँ, गलियारे के साथ-साथ बने एक नाले में मिलती थीं।

हड़प्पा सभ्यता की नगर निर्माण योजना : –

  • एक नगरीय सभ्यता ।
  • बस्तियाँ दो भागों में विभाजित – दुर्ग एवं निचला शहर
  • सड़कें ग्रिड पद्धति पर आधारित ।
  • पक्की ईंटों से बनी ढकी हुई नालियाँ ।
  • जल निकासी का उत्तम प्रबंध ।
  • विशेष प्रकार के भवनों का निर्माण जैसे स्नानागार, अन्नागार इत्यादि ।
  • घरों की नालियाँ गली की मुख्य नाली से जुड़ी ।
  • पक्की ईंटों तथा मिट्टी से बने मकान ।
  • दो मंजिला मकानों का निर्माण ।
  • ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियों का प्रयोग ।

मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ : –

🔶 एक नियोजित शहरी केन्द्र : – मोहनजोदड़ो एक विस्तृत तथा नियोजित शहर था। यह शहर दो टीलों पर बना था। एक टीला ऊँचा किन्तु छोटा था । पुरातत्वविद् इसे दुर्ग मानते हैं। यह टीला मजबूत किलेबन्दी अथवा दीवारों से घिरा है, निचला टीला अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत तथा नीचे बना था। यह विस्तृत क्षेत्र मुख्य नगर माना जाता है।

🔶सुनियोजित निचला शहर : – मोहनजोदड़ो के निचले – भाग में अनेक मकान प्राप्त हुए हैं। ये मकान सुनियोजित प्रकार से निर्मित किए गए थे। मुख्यतः यहाँ के मकान एक मंजिल के होते थे। कुछ मकान दो तथा तीन मंजिलों के भी थे। सुरक्षा की दृष्टि से घरों के दरवाजे सामने सड़क पर न खुलकर पीछे गली में खुलते थे। घरों में सामान्यत: मध्य में एक विस्तृत आँगन हुआ करता था जिसके चारो ओर कमरे होते थे। घरों में ही पीने के पानी के लिए कुएँ होते थे। |

🔶सुदृढ़ जल निकास व्यवस्था : – मोहनजोदड़ो की जल निकास व्यवस्था अत्यन्त सुदृढ़ थी। सड़कों के किनारे पक्की ईंटों से बनी तथा ढँकी हुई नालियाँ होती थी। ये नालियाँ मोहनजोदड़ो नगर को स्वच्छ रखने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।

🔶 विस्तृत सड़क निर्माण : – मोहनजोदड़ो में सड़कों का विस्तृत जाल बिछा हुआ था। सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। सड़कों की चौड़ाई 9 से 33 फुट तक हुआ करती थी। 33 फुट चौड़ी सड़क को विद्वान राजकीय सड़क मानते हैं।

🔶 विशाल एवं सार्वजनिक स्नानागार : – मोहनजोदड़ो में एक विशाल तथा सार्वजनिक स्नानागार भी प्राप्त हुआ है। यह विशाल स्नानागार 39 फुट लम्बा 23 फुट चौड़ा तथा 8 फुट गहरा है। इसके प्रत्यके ओर जल तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ थी। स्नानागार से पानी को बाहर निकालने के लिए समुचित व्यवस्था भी की गई थी। स्नानागार में जल समीप ही बने कुआँ से आता था। स्नानागार के उत्तर तथा दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी थी। स्नानागार के ऊपर छोटे-छोटे कमरे बने थे जो कपड़े बदलने के लिए प्रयोग किए जाते थे।

🔶 विशाल अन्नागार : – मोहनजोदड़ो में ही 45.72 मीटर लम्बा एवं 22.86 मीटर चौड़ा एक अन्नागार मिला है। हड़प्पा के दुर्ग में भी 12 धान्य कोठार खोजे गये हैं। ये दो कतारों में छः-छः की संख्या में हैं। ये धान्य कोठार ईंटों के चबूतरों पर हैं एवं प्रत्येक का आकार 15.23 मी. × 6.09 मी. है। इस अन्नागार में आस-पास के स्रोतों से प्राप्त खाद्यान्न भरा जाता था। यह विशाल अन्नागार यह भी दर्शाता है कि मोहनजोदड़ो एक अत्यधिक उपजाऊ भू-क्षेत्र में स्थित था।

🔶 सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न शहरी केन्द्र : – मोहन जोदड़ो सांस्कृतिक रूप से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण शहरी केन्द्र था। यहाँ से हमें अनेक प्रकार की मृणमूर्तियाँ, मृदभाण्ड सूती कपड़े के अवशेष पशुओं की अस्थियाँ इत्यादि प्राप्त हुई है। आद्य- शिव, पुजारी की मूर्ति तथा मातृदेवी की अनेक प्रतिमाएँ भी हमें मोहनजोदड़ो से ही प्राप्त हुई है।

🔹 उपर्युक्त बिन्दु स्पष्ट करते हैं कि मोहनजोदड़ो अत्यधिक विशिष्ट नगर था। मोहनजोदड़ो की यह विशिष्टता हमें सुनियोजित नगर निर्माण, किलेबन्दी, अद्भुत जल निकासी, विस्तृत सड़कों तथा समृद्ध सांस्कृतिक पुरातात्विक सामग्री के रूप में दिखाई देता है।

सामाजिक भिन्नताओं का अवलोकन : –

🔹 पुरातत्वविद यह जानने के लिए कि क्या किसी संस्कृति विशेष में रहने वाले लोगों के बीच सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताएँ थीं, सामान्यत: कई विधियों का प्रयोग करते हैं। इन्हीं विधियों में से एक शवाधानों का अध्ययन है। सामाजिक भिन्नता को पहचानने की एक अन्य विधि है ऐसी पुरावस्तुओं का अध्ययन जिन्हें पुरातत्वविद मोटे तौर पर, उपयोगी तथा विलास की वस्तुओं में वर्गीकृत करते हैं।

शवाधान : –

🔹 सामान्यतया मृतकों को गर्तों में दफनाया जाता था । मृतकों के साथ मृदभाण्ड, आभूषण, शंख छल्ले, तांबे के दर्पण आदि वस्तुएँ भी दफनाई जाती थीं । शवाधानों में मृतकों को दफनाते समय उनके साथ विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ रखी जाती थीं। वे वस्तुएँ बहुमूल्य भी हो सकती हैं और साधारण भी हड़प्पा स्थलों के जिन गर्तों में शवों को दबाया गया था, वहाँ भी यह भिन्नता दिखाई देती है। बहुमूल्य वस्तुएँ मृत्तक की मजबूत आर्थिक स्थिति को व्यक्त करती हैं, जबकि साधारण वस्तुएँ उसकी साधारण आर्थिक स्थिति की प्रतीक हैं।

विलासिता की वस्तुओं की खोज : –

🔹 सामाजिक भिन्नता को पहचानने का एक और तरीका होता है विलासिता की वस्तुएं। मुख्य रूप से दो प्रकार की वस्तुएं होती हैं : –

🔸 रोजमर्रा प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं : – पहले वर्ग में उपयोग की वस्तुएँ शामिल हैं। इन्हें पत्थर या मिट्टी आदि साधारण पदार्थों से आसानी से बनाया जा सकता है। इनमें चक्कियाँ, मृदभांड, सुइयाँ, झाँवा आदि शामिल हैं। ये वस्तुएँ प्रायः सभी बस्तियों में पाई गई हैं पुरातत्वविद् उन वस्तुओं को कीमती मानते हैं, जो दुर्लभ हों अथवा महँगी हों या फिर स्थानीय स्तर पर न मिलने वाले पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हों। इस दृष्टि से फयॉन्स के छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था।

🔸 दुर्लभ हों अथवा महँगी वस्तुएं : – फयॉन्स (घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र सम्भवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था । महंगे पदार्थों से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में ही मिलती हैं, छोटी बस्तियों में ये विरले ही मिलती हैं । जिन बस्तियों में ऐसी कीमती वस्तुएँ मिली हैं, वहाँ के समाजों का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा रहा होगा।

शिल्प-उत्पादन के विषय में जानकारी : –

🔹 चन्हूदड़ो नामक बस्ती पूरी तरह से शिल्प – उत्पादन में लगी हुई थी । शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना सम्मिलित थे ।

मनके : –

🔸 मनकों के निर्माण प्रयुक्त पदार्थ : – कार्नीलियन (सुंदर लाल रंग का ), जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज़ तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर; ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ; तथा शंख, फ़यॉन्स और पकी मिट्टी, सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था। कुछ मनके दो या उससे अधिक पत्थरों को आपस में जोड़कर बनाए जाते थे और कुछ सोने के टोप वाले पत्थर के होते थे।

🔸 मनकों के आकार : – चक्राकार, बेलनाकार, गोलाकार, ढोलाकार तथा खंडित । कुछ को उत्कीर्णन या चित्रकारी के माध्यम से सजाया गया था और कुछ पर रेखाचित्र उकेरे गए थे।

🔸 मनके बनाने की विधि : – पुरातत्वविदों द्वारा किए गए प्रयोगों ने यह दर्शाया है कि कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पका कर प्राप्त किया जाता था। पत्थर के पिंडों को पहले अपरिष्कृत आकारों में तोड़ा जाता था, और फिर बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अंतिम रूप दिया जाता था। घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही यह प्रक्रिया पूरी होती थी ।

शिल्प – उत्पादन के केंद्रों की पहचान : –

🔹 शिल्प – उत्पादन के केंद्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद सामान्यतः निम्नलिखित को ढूँढ़ते हैं: प्रस्तर पिंड, पूरे शंख तथा ताँबा -अयस्क जैसा कच्चा इस माल; औज़ार; अपूर्ण वस्तुएँ; त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा-करकट।

माल प्राप्त करने सम्बन्धी नीतियाँ : –

🔹 बैलगाड़ियाँ सामान तथा लोगों के लिए स्थलमार्गों द्वारा परिवहन का एक महत्त्वपूर्ण साधन थीं । सिन्धु नदी तथा इसकी उपनदियों के आस-पास बने नदी – मार्गों और तटीय मार्गों का भी प्रयोग किया जाता था ।

उपमहाद्वीप तथा उसके आगे से आने वाला माल : –

🔹 नागेश्वर तथा बालाकोट से शंख प्राप्त किये जाते थे। नीले रंग का कीमती पत्थर लाजवर्द मणि को शोर्तुघई (सुदूर अफगानिस्तान) से, गुजरात में स्थित भड़ौच से कार्नीलियन, दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से सेलखड़ी और धातु राजस्थान से मंगाई जाती थी । लोथल इनके स्रोतों के निकट स्थित था । राजस्थान के खेतड़ी आँचल (ताँबे के लिए) तथा दक्षिणी भारत (सोने के लिए) को अभियान भेजे जाते थे ।

  • सोना – अफगानिस्तान, फारस, दक्षिण भारत ( कोलार खान ) ।
  • चाँदी – ईरान, अफगानिस्तान ।
  • ताँबा – बलूचिस्तान, अरब, खेतड़ी ( राजस्थान ) ।
  • लाजवर्द (नील रत्न) – बदख्शां (अफगानिस्तान) ।
  • सीसा – ईरान, अफगानिस्तान ।
  • सेलखड़ी – बलूचिस्तान, राजस्थान ।
  • सुलेमानी पत्थर – सौराष्ट्र, पश्चिमी भारत ।
  • नीलमणि – महाराष्ट्र ।
  • अलाबास्टर – बलूचिस्तान ।
  • शंख, कौड़ियाँ – सौराष्ट्र, दक्षिण भारत ।

सुदूर क्षेत्रों से सम्पर्क : –

🔹 पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि ताँबा सम्भवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण- पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से भी लाया जाता था । मेसोपोटामिया के लेख से ज्ञात होता है कि कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना आदि मेलुहा से प्राप्त किये जाते थे । मेसोपोटामिया के लेख मेलुहा को नाविकों का देश कहते हैं।

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