Class 12 history chapter 1 notes in hindi, ईंटें मनके तथा अस्थियाँ notes

ईंटें मनके तथा अस्थियाँ Notes: Class 12 history chapter 1 notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 1
Chapter Nameईंटें मनके तथा अस्थियाँ
CategoryClass 12 History
MediumHindi

Class 12 history chapter 1 notes in hindi, ईंटें मनके तथा अस्थियाँ notes इस अध्याय मे हम हड़प्पा सभ्यता / सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पड़ेगे तथा हड़प्पा बासी लोगो के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर चर्चा करेंगे ।

  • B. C. ( Before Christ ) – ईसा पूर्व
  • A . D ( Anno Domini) – ईसा मसीह के जन्म वर्ष
  • B. P ( Before Present) – आज से पहले

संस्कृति शब्द का अर्थ : –

🔹 पुरातत्त्वविद संस्कृति शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और सामान्यतया एक साथ , एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल – खण्ड से संबंधित पाए जाते हैं।

पुरातात्विक सामग्री : –

🔹 समकालीन अर्थात् प्रत्यक्षदर्शी सामग्री ही पुरातात्विक सामग्री कहलाती है।

पुरातत्ववेत्ता अथवा पुराविद् : –

🔹 विभिन्न स्थानों पर उत्खनन कर पुरातात्विक सामग्री की खोज करने वाले विद्वान पुरातत्ववेत्ता अथवा पुराविद् कहलाते हैं।

पुरातत्व का अर्थ : –

🔹 पुरातत्व संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है – पुरानी वस्तुओं का तत्व जानना और उनकी रक्षा करना । पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर अतीत के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

🔹 वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होने के कारण पुरातत्व एक अंतिम तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत है , इसके अन्तर्गत खुदाई में प्राप्त सिक्के , अभिलेख , खण्डहर व स्मारक आदि की गणना की जाती है । किसी भी जाति की सभ्यता का इतिहास प्राप्त करने का पुरातत्व एक प्रमुख साधन है।

हड़प्पा सभ्यता / सिंधु घाटी सभ्यता : –

🔹 सिन्धुघाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है। इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी। हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं, जिन्हें क्रमशः आरम्भिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

हड़प्पा सभ्यता का नाम : –

🔸 हड़प्पा सभ्यता : – इस सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक स्थान के नाम पर किया गया है, क्योंकि हड़प्पा नाम के स्थान पर यह संस्कृति सर्वप्रथम खोजी गयी थी।

🔸 सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Velley Civilisation) : – हड़प्पा सभ्यता को ‘सिन्धु घाटी सभ्यता’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस सभ्यता के अधिकांश स्थलों का विकास सिन्धु नदी की घाटी में हुआ था।

🔸 कांस्य युग सभ्यता : – हड़प्पा में लोगों ने औजार बनाने के लिए ताँबे एवं टिन धातु को मिलाकर काँस्य धातु का उपयोग किया था। हड़प्पा में काँस्य से बनी हुई कई पुरावस्तुएँ और औजार प्राप्त हुए है जिन्हें शिल्पियों ने बड़ी मेहनत से बनाया है। इस कारण हड़प्पा सभ्यता को काँस्य युग कहा जाता है।

हड़प्पा सभ्यता की खोज : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921-22 में दया राम साहनी , रखालदास बनर्जी और सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में हुई।

🔹 सर्वप्रथम 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने तत्कालीन भारतीय पुरातत्व विभाग के निदेशक सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में हड़प्पा नामक स्थल की खुदाई कर इस सभ्यता की खोज की।

🔹 हड़प्पा के पश्चात् 1922 ई. में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक स्थल की खोज की।

हड़प्पा सभ्यता का काल : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता का काल ( विकसित सभ्यता ) 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है।

🔹 पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता का समय 2600 ई० पू० से 1900 ई० पू० के मध्य निर्धारित किया गया है। रेडियो कार्बन-14 (सी-14 ) जैसी नवीनतम विश्लेषण पद्धति द्वारा हड़प्पा सभ्यता का समय 2500 ई०पू० से 1750 ई०पू० माना गया है, जो सर्वाधिक मान्य है।

कार्बन-14 विधि ( Carbon – 14 Method) : –

🔹 तिथि निर्धारण की वैज्ञानिक विधि को कार्बन-14 विधि कहा जाता है। इस विधि की खोज अमेरिका के प्रख्यात रसायनशास्त्री बी. एफ. लिवी द्वारा सन् 1946 ई. में की गई थी। इस विधि के अनुसार किसी भी जीवित वस्तु में कार्बन- 12 एवं कार्बन-14 समान मात्रा में पाया जाता है। मृत्यु अथवा विनाश की अवस्था में C-12 तो स्थिर रहता है, मगर C-14 का निरन्तर क्षय होने लगता है।

🔹 कार्बन का अर्ध-आयु काल 5568 ° 30 वर्ष होता है, अर्थात् इतने वर्षों में उस पदार्थ में C-14 की मात्रा आधी रह जाती है। इस प्रकार वस्तु के काल की गणना की जाती है। जिस पदार्थ में कार्बन – 14 की मात्रा जितनी कम होती है, वह उतना ही प्राचीनतम माना जाता है। पदार्थों में C-14 के क्षय की प्रक्रिया को रेडियोधर्मिता (Radio Activity) कहा जाता है।

हड़प्पा संस्कृति के भाग /चरण : –

🔹 सभ्यता की अवधि मोटे तौर पर तीन हिस्सों में विभाजित है : –

  • प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता ( 3300 ई.पू. – 2600 ई.पू. तक )
  • परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता ( 2600 ई.पू – 1900 ई.पू. तक )
  • उत्तर हड़प्पाई सभ्यता ( 1900 ई.पू. – 1300 ई.पू. तक )

हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के प्रमुख स्त्रोत : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के प्रमुख स्त्रोत : – खुदाई में मिली इमारतें , मृद भाण्ड , औजार , आभूषण , मूर्तियाँ , मुहरें इत्यादि हैं।

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार क्षेत्र : –

🔹 उत्खनन में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, कालीबंगा, रोपड़, संघोल, बणावली, राखीगढ़ी, रंगपुर, धौलावीरा, लोथल आदि अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं।

🔹 इसके आधार पर पुरातत्वविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तर भारत में गंगा घाटी तक व्याप्त था।

हड़प्पा सभ्यता की सीमा : –

  • उत्तरी सीमा : – सरायखोला , गुमला घाटी , डाबर कोट।
  • दक्षिणी सीमा : – मालवण ( ताप्ती नदी घाटी ) , भगवत राव ( नर्मदा घाटी )।
  • पूर्वी सीमा : – आलमगीरपुर ( हिण्डन नदी के किनारे )।
  • पश्चिमी सीमा : – सुत्कांगेडोर ( मकरान का समुद्री तट )।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख केन्द्र : –

  • जम्मू में अखनूर एवं मांडा ,
  • पंजाब ( भारत ) में रोपड़ , संधोल ,
  • पंजाब ( पाकिस्तान ) में हड़प्पा ,
  • गुजरात में रंगपुर , लोथल , सुरकोतड़ा , मालवड़ रोवड़ी ,
  • राजस्थान में कालीबंगान ,
  • उत्तर प्रदेश में आलमगीरपुर ,
  • हरियाणा में मीतांथल , वनबाली , राखीगढ़ी ,
  • बलूचिस्तान ( पाकिस्तान ) में डाबरकोट , सुत्काकोह , सुत्कांगेडोर ,
  • सिन्ध ( पाकिस्तान ) में मोहनजोदड़ो , कोटदीजी , अलीमुराद , चन्हूदड़ो आदि।

हड़प्पा सभ्यता में निर्वाह के तरीके : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता के लोगों के निर्वाह के मुख्य तरीके निम्नलिखित थे : –

  • पेड़ पौधों से प्राप्त उत्पाद,
  • माँस तथा मछली,
  • गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, बाजरा, चावल, तिल आदि खाद्य पदार्थ।

🔹 हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पादों तथा जानवरों से प्राप्त माँस आदि का सेवन करते थे। ये लोग मछली का भी सेवन करते थे। हड़प्पा स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि अनाज के दानें प्राप्त हुए हैं।

🔹 हड़प्पा निवासी भेड़, बकरी, भैंस तथा सुअर के माँस का सेवन करते थे। इस बात की पुष्टि हड़प्पा स्थलों से मिली इन जानवरों की हड्डियों से होती है। इसके अलावा हिरण, घड़ियाल आदि की हड्डियाँ भी मिली हैं। सम्भवतः हड़प्पा निवासी इन जानवरों के माँस का भी सेवन करते थे।

हड़प्पा सभ्यता में कृषि प्रौद्योगिकी : –

🔹 हड़प्पा – निवासी बैल से परिचित थे। पुरातत्वविदों की मान्यता है कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। चोलिस्तान के कई स्थलों से तथा बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं। कालीबंगन नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है।

🔹 कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों तथा धातु के औजारों का प्रयोग करते थे। सिंचाई के लिए नहरों एवं कुओं का प्रयोग करते थे। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते हुए विद्यमान थे जो दर्शाते हैं कि एक साथ दो अलग-अलग फ़सलें उगाई जाती थीं ।

हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों से कृषि उत्पादन के पर्याप्त अवशेष / साक्ष्य : –

  • गेहूँ जौ, दाल, सफेद चने, तिल इत्यादि के इस्तेमाल का अनुमान है।
  • कुछ स्थानों पर चावल की खेती के अवशेष भी मिले हैं।
  • कृषि के साथ पशुपालन के भी साक्ष्य हैं।
  • शिकार के भी पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं।
  • प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर अनुमान है कि जोतने के लिए बैल का प्रयोग होता था।
  • खेत जोतने के लिए धातु अथवा पत्थर के हल का उपयोग होता था ।
  • सिंचाई के लिए नहरों, कुँओं तथा जलाशयों के भी प्रमाण मिले हैं।

मोहनजोदड़ो शब्द का अर्थ : –

🔹 मोहन जोदड़ो सिन्धी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- ‘मृतकों का टीला’ , ‘मुर्दो का टीला’ , ‘प्रेतो का टीला’ , ‘सिंध का बाग’ , ‘सिंध ना नक्लस्थान’

मोहनजोदड़ो : एक नियोजित शहर : –

🔹 मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता के दो मुख्य शहरों में से एक है। हालाँकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है, सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था। मोहनजोदड़ो बस्ती दो भागों में विभाजित है । एक छोटा परन्तु ऊँचाई पर बनाया गया। दूसरा अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया । पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है।

दुर्ग शहर : –

  • दुर्ग आकार में छोटा था।
  • इसे ऊंचाई पर बनाया गया था।
  • दुर्ग को चारों तरफ दीवार से घेरा गया था।
  • यह दीवार ही इसे निचले शहर से अलग करती थी।

🔹 दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनी थीं । दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था।

🔹 मोहनजोदड़ो में दुर्ग पर अनेक संरचनाएँ थीं जिनमें माल गोदाम तथा विशाल स्नानागार उल्लेखनीय थे माल गोदाम एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं। विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। जलाशय के तल तक जाने के लिए दो सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। इसके उत्तर में एक छोटी संरचना थी जिसमें आठ स्नानागार बने हुए थे ।

निचला शहर : –

  • निचला शहर आकार में दुर्ग से बड़ा था।
  • यह सामान्य लोगों के लिए बनाया गया था।
  • यहां की मुख्य विशेषताएं इसकी जल निकासी प्रणाली थी।

🔹 निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे।

सड़क व्यवस्था : –

🔹 मोहनजोदड़ो की एक प्रमुख विशेषता उसकी समतल एवं चौड़ी सड़कें थीं। यहाँ की मुख्य सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी जिसे पुराविदों ने राजपथ कहा है। अन्य सड़कों की चौड़ाई 2.75 से 3.66 मीटर तक थी। जाल पद्धति के आधार पर नगर नियोजन होने के कारण सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं जिनसे नगर कई खण्डों में विभक्त हो गया था। इस पद्धति को ‘ऑक्सफोर्ड सर्कस’ का नाम दिया गया है। सड़कें मिट्टी की बनी थीं एवं इनकी सफाई की समुचित व्यवस्था थी। गलियाँ भी खुली तथा चौड़ी थीं।

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