Class 12 history chapter 1 notes in hindi, ईंटें मनके तथा अस्थियाँ notes

मुहरें, लिपि तथा बाट

मुहरें और मुद्रांकन : –

🔹 मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था ।

हड़प्पा लिपि ( एक रहस्यमय लिपि ) : –

  • इसमें लगभग 375 से 400 के बीच चिन्ह थे।
  • इसे दाएं से बाएं लिखा जाता था।
  • इस लिपि को आज तक पढ़ा नहीं जा सका है इसीलिए इसे रहस्यमय लिपि कहा जाता है

🔹 हड़प्पाई मुहरों पर कुछ हुआ है जो सम्भवतः मालिक के नाम और पदवी को लिखा दर्शाता है । अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं; सबसे लंबे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं। हालाँकि यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है। इसमें चिह्नों की संख्या लगभग 375 से 400 के बीच है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी।

🔸 वे वस्तुओं जिन पर लिखावट मिली है : – मुहरें, ताँबे के औज़ार, मर्तबानों के अँवठ, ताँबे तथा मिट्टी की लघुपट्टिकाएँ, आभूषण, अस्थि-छड़ें और यहाँ तक कि एक प्राचीन सूचना पट्ट ।

बाट : –

🔹 विनिमय बाटों की एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियन्त्रित थे । ये बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे। ये सामान्यतया घनाकार होते थे । इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी ( 1, 2, 4, 8, 16, 32 इत्यादि 12,800 तक) थे जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे। छोटे बाटों का प्रयोग सम्भवतः आभूषणों और मनकों को तौलने के लिए किया जाता था।

प्राचीन सत्ता : –

🔹 हड़प्पाई समाज में जटिल फैसले लेने और उन्हें कार्यान्वित करने के संकेत मिलते हैं। हड़प्पाई पुरावस्तुओं में जैसे – मुहरों, बाटों, ईंटों आदि में एकरूपता थी । बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं। इन सभी क्रियाकलापों को कोई राजनीतिक सत्ता संगठित करती थी।

हड़प्पा संस्कृति में शासन ( प्रासाद तथा शासक ) : –

🔹 हड़प्पा संस्कृति में शासन को लेकर तीन अलग-अलग मत हैं

🔸 पहला मत : – कुछ पुरातत्वविद इस मत के हैं कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी।

🔸 दूसरा मत : – दूसरे पुरातत्वविद यह मानते हैं कि यहाँ कोई एक नहीं बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे।

🔸 तीसरा मत : – कुछ और यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओं में समानताओं, नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात, तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के समीप संस्थापित होने से स्पष्ट है।

हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक जीवन : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता में परम्परागत परिवार ही सामाजिक इकाई थी। उनका सामाजिक जीवन सुखी एवं सुविधापूर्ण था। उत्खनन में प्राप्त बहुसंख्यक नारी मूर्तियों की प्राप्ति से संकेत मिलता है कि उनका परिवार मातृ सत्तात्मक था । मातृ सत्तात्मक समाज द्रविड़ और प्राक्-आर्य सभ्यता की विशेषता थी ।

हड़प्पाकालीन समाज की प्रमुख विशेषताएँ : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता के लोग शाकाहारी तथा माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे ।

🔹 खुदाई से प्राप्त सुइयों के अवशेष संकेत देते हैं कि ये लोग सिले वस्त्र पहनते थे।

🔹 केश विन्यास प्रचलित था। स्त्रियाँ जूड़ा बाँधती थीं तथा पुरुष लम्बे-लम्बे बाल तथा दाड़ी-मूँछ रखते थे ।

🔹 इस सभ्यता के लोग आभूषणों के शौकीन थे। विविध प्रकार के आभूषण — कण्ठहार, कर्णफूल, हँसुली, भुजबंध, कड़ा, अंगूठी, करधनी आदि पहने जाते थे ।

🔹 शृंगार प्रसाधन के भी हड़प्पावासी शौकीन थे। मोहनजोदड़ो की नारियाँ काजल, पाउडर आदि से परिचित थीं। शीशे, कंघे एवं ताँबे के दर्पण का प्रयोग होता था। चन्हूदड़ो से लिपस्टिक के अस्तित्व का भी संकेत मिलता है।

🔹 इनके आभूषण बहुमूल्य पत्थरों, हाथी दाँत, हड्डी एवं शंख आदि के बनते थे।

🔹 मिट्टी एवं धातुओं से निर्मित तरह-तरह के बर्तनों का प्रयोग करते थे। फर्श पर बैठने के लिए चटाइयों के साथ-साथ पलंग व चारपाई से भी परिचित थे।

🔹 सैंधव निवासी आमोद-प्रमोद के प्रेमी थे, पाँसा इस काल का प्रमुख खेल था ।

🔹 यहाँ प्राप्त नर्तकी की मूर्ति से संकेत मिलता है कि नृत्य भी मनोरंजन का प्रिय साधन रहा होगा। गाने-बजाने के भी ये शौकीन थे ।

सिंधु घाटी सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक विशेषताऐ : –

🔹 आर्थिक संपन्नता तथा धार्मिक विशेषताओं के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं।

🔹 शवाधानों के अध्ययन से समाज में आर्थिक भिन्नताओं का पता चलता है।

🔹 महिलाएँ तथा पुरुष आभूषणों का प्रयोग करते थे। आज की तरह उस समय भी स्वर्ण एक कीमती वस्तु थी ।

🔹 कीमती वस्तुओं, पत्थर, धतु आदि का अंतर्देशीय तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता था ।

🔹 मुहरों पर अनुष्ठान के दृश्य प्राप्त हुए हैं जो धर्म एवं उपासना के संकेत हैं।

🔹 आभूषणों से लदी मृण्मूर्तियां मिली हैं जिन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गयी हैं ।

🔹 कुछ साक्ष्यों से शिव उपासना के संकेत भी मिलते हैं।

हड़प्पा सभ्यता का अंत : –

🔹 लगभग 1800 ई. पूर्व तक चोलिस्तान में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थलों को त्याग दिया गया था। सम्भवतः उत्तरी हड़प्पा के क्षेत्र 1900 ई. पूर्व के बाद भी अस्तित्व में रहे। इसके साथ ही गुजरात, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नयी बस्तियों में जनसंख्या बढ़ने लगी थी ।

🔹 कुछ चुने हुए हड़प्पा स्थलों की भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आया था जैसे : –

  • सभ्यता की विशिष्ट पुरावस्तुओं – बाटों, मुहरों तथा विशिष्ट मनकों का समाप्त हो जाना ।
  • लेखन, लंबी दूरी का व्यापार तथा शिल्प विशेषज्ञता भी समाप्त हो गई।
  • सामान्यतः थोड़ी वस्तुओं के निर्माण के लिए थोड़ा ही माल प्रयोग में लाया जाता था।
  • आवास निर्माण की तकनीकों का ह्रास हुआ था।
  • बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बंद हो गया।

हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण थे : –

  • जलवायु परिवर्तन
  • वनों की कटाई
  • भीषण बाढ़
  • नदियों का सूख जाना
  • नदियों का मार्ग बदल लेना
  • भूमि का अत्यधिक उपयोग
  • सुदृढ़ एकीकरण के तत्त्व का अन्त होना ।

हड़प्पा सभ्यता की मुख्य देन या उपलब्धियाँ : –

  • नगर निर्माण योजना।
  • शिल्प उत्पादन शैली।
  • सार्वजनिक भवनों का निर्माण।
  • उत्कृष्ट जल निकासी।
  • मुहरों का निर्माण।
  • अंतर्देशीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार।
  • एक नगरीय सभ्यता की संकल्पना।
  • कृषि एवं पशु पालन।
  • आभूषणों का प्रयोग।
  • निपुण नागरिक प्रबंधन।
  • भवन निर्माण कला एवं स्थापत्य कला।

कनिंघम : –

🔹 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रथम जनरल अलेक्जेन्डर कनिंघम को ‘भारतीय पुरातत्व का जनक’ कहा जाता है। कनिंघम ने 19वीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक खनन आरंभ किया। यह लिखित स्रोतों का प्रयोग अधिक पसंद करते थ। कनिंघम की मुख्य रुचि भी आरंभिक ऐतिहासिक (लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से संबंधित पुरातत्व में थी।

कनिंघम का भ्रम : –

🔹 हड़प्पाई पुरावस्तुएँ उन्नीसवीं शताब्दी में कभी-कभी मिलती थीं और इनमें से कुछ तो कनिंघम तक पहुँची भी थीं, फिर भी वह समझ नहीं पाए कि ये पुरावस्तुएँ कितनी प्राचीन थीं।

🔹 एक अंग्रेज़ ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। उन्होंने मुहर पर ध्यान तो दिया पर उन्होंने उसे एक ऐसे काल-खंड में, दिनांकित करने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे। वे उसके महत्व को समझ ही नहीं पाए कि वह मुहर कितनी प्राचीन थी ।

🔹 कनिंघम ने यह सोचा कि यह मुहर भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा घाटी में पनपे पहले शहरों से संबंधित है जबकि यह मुहर गंगा घाटी के शहरों से भी पहले की थी ।

🔹 उनकी सुनिश्चित अवधारणा के चलते यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वह हड़प्पा के महत्त्व को समझने में चूक गए।

एक नवीन प्राचीन सभ्यता : –

🔹 बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में पुरातत्त्वविदों ने हड़प्पा में मुहरें खोज निकालीं जो निश्चित रूप से आरम्भिक ऐतिहासिक स्तरों से कहीं अधिक प्राचीन स्तरों से सम्बद्ध थीं एवं इनके महत्त्व को समझा जाने लगा । खोजों के आधार पर 1924 में भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिन्धु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

नई तकनीकें तथा प्रश्न : –

🔹 हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल अब पाकिस्तान के क्षेत्र में हैं । इसी कारण से भारतीय पुरातत्वविदों ने भारत में पुरास्थलों को चिह्नित करने का प्रयास किया । कच्छ में हुए सर्वेक्षणों से कई हड़प्पा बस्तियाँ प्रकाश में आईं तथा पंजाब और हरियाणा में किए गए अन्वेषणों से हड़प्पा स्थलों की सूची में कई नाम और जुड़ गए हैं। कालीबंगन, लोथल, राखीगढ़ी, धौलावीरा की खोज इन्हीं प्रयासों का हिस्सा है। 1980 के दशक से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में उपमहाद्वीप के तथा विदेशी विशेषज्ञ संयुक्त रूप से कार्य करते रहे हैं।

अतीत को जोड़कर पूरा करने की समस्याएँ : –

🔹 मृदभाण्ड, औजार, आभूषण, घरेलू सामान आदि भौतिक साक्ष्यों से हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है ।

खोजों का वर्गीकरण : –

🔹 वर्गीकरण का एक सामान्य सिद्धान्त प्रयुक्त पदार्थों जैसे- पत्थर, मिट्टी, धातु, अस्थि, हाथीदाँत आदि के सम्बन्ध में होता है। दूसरा सिद्धान्त उनकी उपयोगिता के आधार पर होता है। कभी-कभी पुरातत्वविदों को अप्रत्यक्ष साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है । पुरातत्वविदों को संदर्भ की रूपरेखाओं को विकसित करना पड़ता है।

व्याख्या की समस्याएँ : –

🔹 पुरातात्विक व्याख्या की समस्याएँ सम्भवतः सबसे अधिक धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण के प्रयासों में सामने आती हैं। कुछ वस्तुएँ धार्मिक महत्त्व की होती थीं। इनमें आभूषणों से लदी हुई नारी मृण्मूर्तियाँ शामिल हैं। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई है। कुछ मुहरों पर पेड़-पौधे उत्कीर्ण हैं । ये प्रकृति की पूजा के संकेत देते हैं। कुछ मुहरों पर एक व्यक्ति योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है । उसे ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी गई है। पत्थर की शंक्वाकार वस्तुओं को लिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।


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