Class 12 history chapter 4 notes in hindi, विचारक विश्वास और इमारतें notes

विचारक विश्वास और इमारतें Notes: Class 12 history chapter 4 notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 4
Chapter Nameविचारक विश्वास और इमारतें
CategoryClass 12 History
MediumHindi

Class 12 history chapter 4 notes in hindi, विचारक विश्वास और इमारतें notes इस अध्याय मे हम जैन तथा बौद्ध धर्म एवं स्तूप इत्यादि पर विस्तार से चर्चा करेंगे ।

ईसा पूर्व 600 से ईसा संवत् 600 तक का कालखण्ड आरंभिक भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ माना जाता है जिसमें नयी दार्शनिक विचारधाराओं का उद्गम हुआ। इस कालखण्ड के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत बौद्ध, जैन एवं ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त इमारतें एवं अभिलेख हैं। उस युग की बची हुई इमारतों में सबसे सुरक्षित है साँची का स्तूप।

ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि ( एक महत्वपूर्ण काल ) : –

🔹 ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। इस काल में ईरान में जरथुस्त्र जैसे चिंतक, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तु और भारत में महावीर, बुद्ध और कई अन्य चिंतकों का उद्भव हुआ। उन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयास किया।

यज्ञ : –

🔹 पूर्व वैदिक परंपरा जिसकी जानकारी हमें 1500 से 1000 ईसा पूर्व में संकलित ऋग्वेद से मिलती है।

🔹 ऋग्वेद के अंदर अग्नि, इंद्र, सोम, आदि देवताओं को पूजा जाता है।

🔹 यज्ञ के समय लोग मवेशी, बेटे, स्वास्थ्य, और लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करते हैं ।

🔹 शुरू शुरू में यज्ञ सामूहिक रूप से किए जाते थे। बाद में घर के मालिक खुद यज्ञ करवाने लगे ।

🔹 राजसूय और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे। इनके अनुष्ठान के लिए उन्हें ब्राह्मण पुरोहितों पर निर्भर रहना पड़ता था।

राजसूय यज्ञ : –

🔹 उत्तरवैदिक काल में राजा के राज्याभिषेक के समय किया जाने वाला अनुष्ठान जिसमें राजा रथों की दौड़ में भाग लेता था तथा यह आशा की जाती थी कि राजा का रथ सबसे आगे होगा।

अश्वमेध यज्ञ : –

🔹 उत्तर वैदिक काल में राजा व सरदारों द्वारा किये जाने वाला अनुष्ठान जिसमें राजा एक घोड़ा छोड़ता था जो जहाँ-जहाँ जाता था वह क्षेत्र राजा के अधिकार क्षेत्र में माना जाता था तथा जो शासक यज्ञ के घोड़े को पकड़ लेता था उसे यज्ञ करने वाले राजा से युद्ध करना होता था। यज्ञ की समाप्ति के उपरान्त राजा स्वयं को चक्रवर्ती सम्राट घोषित करता था ।

नए प्रश्न : –

🔹 उपनिषदों (छठी सदी ई. पू. से) में पाई गई विचारधाराओं से पता चलता है कि लोग जैसे : –

  • जीवन का अर्थ क्या है ?
  • मृत्यु के बाद जीवन की संभावना,
  • पुनर्जन्म के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे।
  • क्या पुनर्जन्म अतीत के कर्मों के कारण होता था?

🔹 ऐसे मुद्दों पर पुरज़ोर बहस होती थी। वैदिक परंपरा से बाहर के कुछ दार्शनिक यह सवाल उठा रहे थे कि सत्य एक होता है या अनेक लोग यज्ञों के महत्त्व के बारे में भी चिंतन करने लगे।

सम्प्रदाय : –

🔹 किसी विषय या सिद्धान्त के संबंध में एक ही विचार या मत रखने वाले लोगों का समूह, वर्ग या शाखा।

वाद-विवाद और चर्चाएँ : –

🔹 समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें 64 सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं का उल्लेख मिलता है जिनसे हमें जीवन्त चर्चाओं एवं विवादों की एक झाँकी मिलती है। शिक्षक स्थान-स्थान पर घूमकर अपने दर्शन या विश्व के विषय में अपने ज्ञान को लेकर एक-दूसरे से एवं सामान्य लोगों से तर्क-वितर्क करते रहते थे।

🔹 ये चर्चाएँ कुटागारशालाओं (शब्दार्थ- नुकीली छत वाली झोपड़ी) या ऐसे उपवनों में होती थीं जहाँ घुमक्कड़ मनीषी ठहरा करते थे।

🔹 महावीर एवं बुद्ध सहित कई विचारकों ने वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाया और कहा कि जीवन के दुःखों से मुक्ति का प्रयास प्रत्येक व्यक्ति स्वयं कर सकता है।

जातक : –

🔹 महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानियों का संग्रह जिनकी कुल संख्या 550 के लगभग है।

त्रिपिटक : –

🔹 बुद्ध के किसी भी संभाषण को उनके जीवन काल में लिखा नहीं गया। उनकी मृत्यु के बाद (पाँचवीं चौथी सदी ई.पू.) उनके शिष्यों ने ‘ज्येष्ठों’ या ज्यादा वरिष्ठ श्रमणों की एक सभा वेसली (बिहार स्थित वैशाली का पालि भाषा में रूप) में बुलाई। वहाँ पर ही उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया। इन संग्रहों को ‘त्रिपिटक’ कहा जाता था।

त्रिपिटक का अर्थ : –

🔹 त्रिपिटक शब्दार्थ भिन्न प्रकार के ग्रंथों को रखने के लिए ‘तीन टोकरियाँ’ अर्थात त्रिपिटक को तीन टोकरियाँ भी कहा जाता है जहां बुद्ध संग्रहों को रहा गया है।

🔸 विनय पिटक : – विनय पिटक में संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था।

🔸 सुन पिटक : – सुन पिटक में बुद्ध की शिक्षाएँ रखी गईं ।

🔸 अभिधम्मपिटक : – दर्शन से जुड़े विषय अभिधम्मपिटक में आए।

दीपवंश : –

🔹 इसका अर्थ है – दीपों का इतिहास । यह एक सिंहली बौद्ध ग्रन्थ है। आरंभिक काल में बौद्ध धर्म जब श्रीलंका में प्रसारित हुआ उस समय इसकी रचना हुई थी।

महावंश : –

🔹 महावंश का शाब्दिक अर्थ है महान इतिहास। यह भी एक सिंहली बौद्ध ग्रन्थ है। इसके अनेक विवरण महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित हैं।

नियतिवादी : –

🔹 बौद्ध धर्म से संबंधित आजीवक परम्परा के लोग जिनके अनुसार जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित है। इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता नियतिवादी कहलाते थे।

भौतिकवादी : –

🔹 लोकायत परम्परा के वे लोग जो दान, दक्षिणा, चढ़ावा आदि देने को खोखला, झूठ एवं मूल्यों का सिद्धान्त मानते थे। वे जीवन का भरपूर आनन्द लेने में विश्वास करते थे ।

लोकायत : –

🔹 बौद्ध धर्म से संबंधित वह धार्मिक सम्प्रदाय जो अपने उपदेश गद्य में देते हैं। इन्हें भौतिकवादी भी कहा जाता है।

तीर्थंकर : –

🔹 जैन परम्परा के अनुसार महावीर स्वामी से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे जिन्हें तीर्थंकर कहा जाता है। इसका अर्थ है कि वे महापुरुष जो पुरुषों और महिलाओं को जीवन की नदी के पार पहुँचाते हैं

जैन धर्म : –

🔹 जैन धर्म के मूल सिद्धांत वर्द्धमान महावीर के जन्म से पूर्व छठी ई. पू. में प्रचलित थे । महावीर के पहले 23 तीर्थंकर हो चुके थे। पहले तीर्थंकर ऋषभदेव तथा 23वें पार्श्वनाथ थे।

🔹 प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने जैन धर्म को तथा इसकी शिक्षाओं को जन मानस तक पहुँचाया।

🔹 जैन विद्वानों ने संस्कृत, प्राकृत एवं तमिल जैसी भाषाओं में साहित्य का सृजन किया ।

जैन दर्शन की अवधारणा : –

🔹 जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि संपूर्ण विश्व प्राणवान है। यह माना जाता है कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है। जीवों के प्रति अहिंसा – खासकर इनसानों, जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े-मकोड़ों को न मारना जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है।

🔹 जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की ज़रूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है।

जैन साधु और साध्वी के पाँच व्रत : –

🔹 जैन साधु और साध्वी पाँच व्रत करते थे : –

  • अहिंसा – हत्या ना करना।
  • सत्य – झूठ ना बोलना।
  • अस्तेय – चोरी ना करना।
  • अपरिग्रह – धन इकट्ठा ना करना।
  • अमृषा – ब्रह्मचर्य का पालन करना।

जैन धर्म का विस्तार : –

🔹 धीरे-धीरे जैन धर्म भारत के कई हिस्सों में फैल गया। बौद्धों की तरह ही जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल जैसी अनेक भाषाओं में काफ़ी साहित्य का सृजन किया। सैकड़ों वर्षों से इन ग्रंथों की पांडुलिपियाँ मंदिरों से जुड़े पुस्तकालयों में संरक्षित हैं।

🔹 भारतीय उपमहाद्वीप के कई भागों में पायी गई जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि जैन धर्म भारत के कई भागों में फैला हुआ था।

संतचरित्र : –

🔹 संतचरित्र किसी संत या धार्मिक नेता की जीवनी है। संतचरित्र संत की उपलब्धियों का गुणगान करते हैं, जो तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह सही नहीं होते। ये इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि ये हमें उस परंपरा के अनुयायियों के विश्वासों के बारे में बताते हैं।

बौद्ध धर्म : –

🔹 बौद्ध धर्म भारत की श्रावक परंपरा से निकला ज्ञान धर्म और दर्शन है।

🔹 बौद्ध धर्म की स्थापना लगभग 6वीं शताब्दी ई० पु० में हुई।

🔹 इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोग चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल, इंडोनेशिया, म्यांमार, और भारत से हैं ।

महात्मा बुद्ध : –

  • बौद्ध धर्म के संस्थापक = महात्मा बुद्ध
  • पूरा नाम = गौतम बुद्ध
  • बचपन का नाम = सिद्धार्थ
  • जन्म = 563 ई . पू
  • जन्म स्थान = लुम्बिनी , नेपाल
  • पिता का नाम = शुशोधन
  • माँ का नाम = मायादेवी ( बुद्ध के जन्म के 7 दिन बाद इनकी मृत्यु हुई )
  • सौतेली माँ = महाप्रजापती गौतमी ( जिन्होंने इनका लालन – पोषण किया )
  • वंश = शाक्य वंश
  • पत्नी = यशोधरा
  • पुत्र का नाम = राहुल
  • गोत्र = गौतम
  • राज्य का नाम = शाक्य गणराज्य
  • राजधानी = कपिलवस्तु
  • ज्ञान प्राप्ति = निरंजना / पुनपुन: नदी के किनारे वट व्रक्ष के नीचे उरन्वेला ( बोधगया ) नामक स्थान पर
  • प्रथम उपदेश = सारनाथ, काशी अथवा वाराणसी के 10 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया जाता है ।
  • उपदेश की भाषा = पाली
  • अंतिम उपदेश = कुशीनगर
  • मृत्यु = कुशीनगर में 483 ई० पु० में
  • बौद्ध त्रिरत्न = बुद्ध , धम्म , संघ
  • बुद्ध के प्रिय शिष्य = आनंद

बुद्ध द्वारा देखे गए 4 दृश्य : –

  • बूढा व्यक्ति
  • एक बीमार व्यक्ति
  • एक लाश
  • एक सन्यासी

बुद्ध की शिक्षाएँ : –

  • बुद्ध की शिक्षाओं को सुत्त पिटक में दी गई कहानियों के आधार पर पुनर्निर्मित किया गया है।

🔹 बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य है और लगातार बदल रहा है।

🔹 यह आत्माविहीन (आत्मा) है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है।

🔹 इस क्षणभंगुर दुनिया में दुख मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित तत्व है।

🔹 घोर तपस्या और विषयासक्ति के बीच मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य दुनिया के दुखों से मुक्ति पा सकता है।

🔹 बौद्ध धर्म की प्रारंभिक परंपराओं में भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक था ।

🔹 बुद्ध मानते थे कि समाज का निर्माण इनसानों ने किया था न कि ईश्वर ने ।

🔹 दयावान एवं आचारणवान बनाने पर बल देना ।

🔹 ऐसा माना जाता था कि व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था।

निर्वाण : –

🔹 आत्मा का ज्ञान। बुद्ध के अनुसार मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है। निर्वाण प्राप्ति से उनका अभिप्राय सच्चे ज्ञान से है। निर्वाण का मतलब था अहं और इच्छा का खत्म हो जाना जिससे गृहत्याग करने वालों के दुख के चक्र का अंत हो सकता था।

संघ : –

🔹 धम्म के शिक्षक बने भिक्षुओं के लिए बुद्ध द्वारा स्थापित संस्था जिसे मठ भी कहा जाता था।

धम्म : –

🔹 बौद्ध धर्म में इसका अर्थ है – बुद्ध की शिक्षाएँ ।

भिक्खु : –

🔹 बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन्होंने संन्यास ग्रहण किया, उन्हें भिक्षु या भिक्षुक कहा जाता है। ये श्रमण एक सादा जीवन बिताते थे। उनके पास जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक चीज़ों के अलावा कुछ नहीं होता था। जैसे कि दिन में एक बार उपासकों से भोजन दान पाने के लिए वे एक कटोरा रखते थे। चूँकि वे दान पर निर्भर थे इसलिए उन्हें भिक्खु कहा जाता था ।

भिक्खुनी : –

🔹 बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए संन्यास ग्रहण करने वाली महिलाएँ । बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में आने वाली पहली भिक्खुनी बनीं। कई स्त्रियाँ जो संघ में आईं, वे धम्म की उपदेशिकाएँ बन गईं। आगे चलकर वे थेरी बनी जिसका मतलब है ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो ।

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