शालभंजिका : –
🔹 लोक परम्परा के अनुसार इस स्त्री द्वारा छुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और वृक्ष फल देने लगते हैं। साँची में इसकी मूर्तियाँ मिली हैं।
महापरिनिर्वाण : –
🔹 483 ई. पू. बुद्ध ने 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर ( देवरिया, उत्तर प्रदेश) में अपने शरीर का त्याग किया जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है।
उपनिषद् : –
🔹 जीवन, मृत्यु एवं पारब्रह्म से संबंधित गहन विचारों वाले ग्रन्थ जिनमें आर्यों की दार्शनिक विचारधारा का भी विवरण मिलता है।
महायान बौद्ध मत का विकास : –
🔹 प्रारम्भ में महात्मा बुद्ध को भी एक साधारण मानव समझा गया, लेकिन धीरे-धीरे एक मुक्तिदाता के रूप में बुद्ध की कल्पना उभरने लगी। यह विश्वास किया जाने लगा कि वे सांसारिक लोगों को मुक्ति प्रदान करने में सक्षम हैं।
🔹 साथ ही साथ बोधिसत्त की अवधारणा भी उभरने लगी तथा बुद्ध और बोधिसंतों की मूर्तियों की पूजा होने लगी। बौद्ध चिन्तन की इस परम्परा को ‘महायान’ के नाम से जाना गया। जिन लोगों ने इन विश्वासों को अपनाया उन्होंने पुरानी परम्परा को ‘हीनयान’ नाम से सम्बोधित किया।
हीनयान : –
🔹 बौद्ध धर्म की प्राचीन शाखा जिसके अनुयायी न तो देवताओं में विश्वास रखते थे और न ही बुद्ध को देवता मानते थे । वे बुद्ध को मनुष्य मानते थे, जिसने व्यक्तिगत प्रयास से प्रबोधन व निर्वाण प्राप्त किया था।
महायान : –
🔹 बौद्ध धर्म की वह नयी परम्परा जिसके अनुयायी बुद्ध को देवता मानते – थे तथा उनकी मूर्ति की पूजा करते थे। इस शाखा की हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों से समानता है।
बोधिसत्त : –
🔹 बौद्ध धर्म की हीनयान परम्परा में बोधिसत्त को एक दयावान जीव माना गया जो सत्कर्मों से पुण्य कमाते थे, परन्तु वे इस पुण्य का प्रयोग संन्यास लेकर निर्वाण प्राप्त करने के लिए नहीं करते अपितु वे इससे दूसरों की सहायता करते थे।
पौराणिक हिंदू धर्म का उदय : –
🔹 पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय एक मुक्तिदाता की कल्पना के रूप में हुआ। हिन्दू धर्म में दो परम्पराएँ सम्मिलित थी वैष्णव व शैव । वैष्णव परम्परा में विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना गया, जबकि शैव संकल्पना में शिव परमेश्वर हैं।
🔹 वैष्णव और शैव मत में देवता की पूजा-आराधना में भक्त और भगवान के मध्य प्रेम और समर्पण का संबंध माना जाता था, जिसे हम भक्ति भी कह सकते हैं।
वैष्णव धर्म : –
🔹 भगवान विष्णु की पूजा करने वालों को वैष्णव एवं विष्णु से संबंधित धर्म को वैष्णव धर्म कहा गया है।
शैव धर्म : –
🔹 भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव एवं शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया है।
अवतार : –
🔹 ईश्वर या किसी परम सर्वोच्च देव का मनुष्य रूप में संसार के लोगों के कल्याण के लिए जन्म लेना अवतार कहलाता है।
भक्ति : –
🔹 जिस आराधना में उपासना और ईश्वर के मध्य का रिश्ता प्रेम का रिश्ता माना जाता है उसे भक्ति कहते हैं।
भगवान के अलग-अलग रूपों में अवतार : –
🔹 वैष्णववाद में कई अवतारों के आसपास पूजा पद्धतियाँ विकसित हुईं। इस परम्परा में दस अवतारों की रचना की गई है। यह माना जाता था कि संसार में पापों के बढ़ने पर अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती है। तब संसार की रक्षा हेतु भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते हैं।
🔹 हिन्दू धर्म में कई अवतारों एवं देवताओं को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में दर्शाया गया है, लेकिन उन्हें कई बार मानव के रूप में भी दिखाया गया है।
पुराण : –
🔹 प्रथम सहस्राब्दि के मध्य ब्राह्मणों ने पुराणों की रचना की। सामान्यतः संस्कृत श्लोकों में लिखे गए पुराणों को ऊँची आवाज में पढ़ा जाता था जिन्हें कोई भी सुन सकता था । यहाँ तक कि महिलाएँ व शूद्र (जिन्हें वैदिक साहित्य पढ़ने-सुनने की अनुमति नहीं थी) भी इन्हें सुन सकते थे ।
पौराणिक हिन्दू धर्म की मुख्य विशेषताएँ : –
- मुख्य रूप से दो परंपराएँ – वैष्णव एवं शैव ।
- समर्पण के भाव को ही भक्ति कहते हैं ।
- वैष्णववाद में ईश्वर के दस अवतारों का वर्णन हैं ।
- विश्वरक्षा का काम विष्णु भगवान का है ।
- कई अवतारों को मूर्तियों में दिखाया गया है।
- शिव के प्रतीक के रूप में लिंग की पूजा होती है ।
- वेदों एवं पुराणों में हिन्दू धर्म के नियम मौजूद हैं।
- भारत के विभिन्न भागों में मंदिरों के निर्माण हुए ।
गर्भ गृह : –
🔹 यह एक प्रकार का चौकोर कमरा (मन्दिर) था जिसमें देव माता रखी जाती थी । उपासक वहीं बैठकर मूर्ति की पूजा करता था।
शिखर : –
🔹 गर्भगृह के ऊपर बना एक ऊँचा ढाँचा । इस प्रकार के शिखर : दक्षिण भारत के मन्दिरों में अधिक देखने को मिलते हैं जिसमें मन्दिरों की मीनार पर्वत चौटियों की भाँति ऊपर की ओर संकरी होती जाती हैं अर्थात् ऊपर की ओर उत्तरोत्तर गोलाई कम होती जाती हैं।
मंदिरों का बनाया जाना : –
🔹 देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए मन्दिरों का भी निर्माण किया जाने लगा। आरंभिक मन्दिर एक चौकोर कमरे के रूप में होते थे जिसे ‘गर्भगृह’ कहा जाता था। इसमें एक दरवाजा होता था जिसमें से होकर भक्तजन मूर्ति की पूजा करने के लिए अन्दर जा सकते थे। धीरे-धीरे मन्दिर स्थापत्य कला के विकसित होने पर गर्भगृह के ऊपर गुम्बद के आकार की एक संरचना निर्मित होने लगी जिसे ‘शिखर’ कहा जाता था।
कृत्रिम गुफा : –
🔹 कुछ प्रारंभिक मन्दिरों का निर्माण पहाड़ियों को काटकर उन्हें खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में किया गया। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा बहुत पुरानी है। सबसे प्राचीन गुफाएँ सम्राट अशोक के आदेश से तीसरी शताब्दी ई. पू. में आजीवक सम्प्रदाय के सन्तों के लिए बनाई गई थीं।
🔹 कृत्रिम गुफा निर्माण की परम्परा अलग-अलग चरणों में विकसित होती रही । जिसका सबसे विकसित रूप हमें आठवीं शताब्दी के कैलाशनाथ मन्दिर (एलोरा, महाराष्ट्र) में दिखाई देता है। इसमें सम्पूर्ण पहाड़ी को काटकर उसे मन्दिर का रूप दिया गया था।
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