Class 12 history chapter 11 notes in hindi, विद्रोही और राज notes

विद्रोही और राज Notes: Class 12 history chapter 11 notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 11
Chapter Nameविद्रोही और राज
CategoryClass 12 History
MediumHindi

Class 12 history chapter 11 notes in hindi, विद्रोही और राज notes In Hindi इस अध्याय मे हम पाठ 1857 के विद्रोह के कारण , स्थान , तथा उसे जुड़ी बातों पर चर्चा करेेंगे ।

फ़िरंगी : –

🔹 फ़िरंगी, फ़ारसी भाषा का शब्द है जो संभवत: फ्रैंक (जिससे फ्रांस का नाम पड़ा है) से निकला है। इसे उर्दू और हिंदी में पश्चिमी लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए कभी-कभी इसका प्रयोग अपमानजनक दृष्टि से भी किया जाता है।

मेरठ में बगावत : –

🔹 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में दोपहर बाद पैदल सेना ने विद्रोह कर दिया तथा शीघ्र ही घुड़सवार सेना ने भी विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह सम्पूर्ण मेरठ शहर में फैल गया।

🔹 मेरठ शहर एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने विद्रोही सैनिकों का साथ दिया। सैनिकों ने शस्त्रागार पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया जहाँ पर हथियार एवं गोला-बारूद रखे हुए थे।

दिल्ली में बगावत : –

🔹 11 मई, 1857 को घुड़सवार सेना ने दिल्ली पहुँचकर मुगल सम्राट बहादुर शाह नमाज़ से अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार करने का निवेदन किया। रमज़ान का महीना था। विद्रोही सैनिकों से घिरे बहादुर शाह के समक्ष उनकी बात मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न था । इस तरह इस विद्रोह ने एक वैधता हासिल कर ली क्योंकि अब उसे मुग़ल बादशाह के नाम पर चलाया जा सकता था।

🔹 12 व 13 मई, 1857 को उत्तर भारत में शान्ति रही, लेकिन जैसे ही यह खबर फैली कि दिल्ली पर विद्रोहियों का कब्जा हो चुका है और बहादुर शाह ने विद्रोह को अपना समर्थन दे दिया है तो परिस्थितियाँ तेजी से बदलने लगी।

1857 के विद्रोह के कारण : –

🔹 1857 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार कारक निम्न हैं : –

🔸 धार्मिक कारण : –

🔹 ईसाई मिशनरियाँ भारत में अपने धर्म प्रसार हेतु लालच देकर लोगों का धर्म परिवर्तन कर रही थी, साथ ही लार्ड डलहौजी द्वारा पारित कानून जिसके अंतर्गत धर्म परिवर्तन के बाद भी व्यक्ति को पैतृक सम्पत्ति में बराबर भाग मिलेगा इस घोषणा ने लोगों के असंतोष को बढ़ा दिया।

🔹 अंग्रेज सरकार ने भारतीय सैनिकों को गाय व सुअर की चर्बी चढ़े कारतूस दिए जिन्हें मुँह से काटना पड़ता था । इससे सैनिकों का धर्म खतरे में पड़ गया तथा उनकी धार्मिक भावना को चोट पहुँची ।

🔸 राजनीतिक कारण : –

🔹 अंग्रेजों ने कई राजाओं के राज्य हड़प कर उनकी पेंशन भी बंद कर दी।

🔹 लॉर्ड वेलेजली व डलहौजी ने विस्तारवादी नीतियों का प्रयोग कर भारतीय शासकों के राज्य छीनना शुरू कर दिया ।

🔹 अंग्रेज सरकार ने नि: संतान शासकों द्वारा बच्चे गोद लिए जाने की परंपरा को अवैध घोषित कर उनके राज्यों पर कब्जा कर लिया था। इससे शासकों व जनता में आक्रोश था ।

🔸 सामाजिक कारण : –

🔹 अंग्रेजों ने बाल विवाह, सती प्रथा तथा पर्दा प्रथा पर रोक लगा दी तथा विधवा विवाह शुरू करवा दिए, जिससे हिन्दू व मुसलमानों की सामाजिक मान्यताओं को चोट पहुँची और उनके मन में विद्रोह की भावना को जन्म दिया।

🔹 पाश्चात्य शिक्षा के आगमन से भारतीयों की रुचि परंपरागत शिक्षा प्रणाली से हटने लगी इसका पाठशालाओं और मदरसों पर बुरा प्रभाव पड़ा।

🔸 आर्थिक कारण : –

🔹 अंग्रेज सरकार ने जागीरदारों की जागीर छीन ली जमींदारों की जमीनों की नीलामी करवा दी तथा भू-राजस्व बढ़ा दिया। जिससे जमींदार, जागीरदार तथा किसान सभी अंग्रेजों के खिलाफ हो गए।

🔹 अंग्रेजों ने अपने यहाँ बने माल की खपत हेतु भारत पर कब्जा किया था इससे उनका व्यापार तो फल-फूल रहा था लेकिन भारतीय उद्योग धंधे चौपट हो गए थे ।

🔹 अंग्रेजों का सभी मुख्य धंधों पर एकाधिकार था तथा भारतीय जो व्यापार करते थे उस पर चुंगी, नाका आदि लगा दिया गया था। जिससे भारतीयों को पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता था ।

🔹 शिक्षित भारतीयों को अंग्रेजों के समान उच्च पद तथा सम्मान नहीं दिया जाता था।

🔸 सैनिक कारण : –

🔹 सेना में अंग्रेज सैनिकों तथा भारतीय सैनिकों के बीच भेदभाव किया जाता था । भारतीय सैनिकों को उनकी तरह पद तथा वेतन नहीं दिया जाता था ।

🔹 उन्हें जानबूझकर चर्बी लगे कारतूस प्रयोग हेतु दिए गए थे।

🔹 यह अफवाह थी कि सैनिकों के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाया जाता था। इन सब कारणों से सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।

सैन्य विद्रोह कैसे शुरू हुए : –

🔹 विद्रोही सिपाहियों ने किसी-न-किसी विशेष संकेत के साथ अपनी कार्यवाही आरम्भ की। कहीं तोप का गोला दागा गया तो कहीं बिगुल बजाकर विद्रोह का संकेत दिया गया।

🔹 सर्वप्रथम विद्रोहियों ने शस्त्रागार पर कब्जा किया और सरकारी खजाने को लूटा। फिर जेल, टेलीग्राफ, कार्यालय, रिकॉर्ड रूम, बंगलों तथा सरकारी इमारतों पर हमले किये गए और सभी रिकॉर्ड जला डाले।

🔹 लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार और धनी लोग भी विद्रोहियों के क्रोध का शिकार बनने लगे।

🔹 किसान साहूकारों व अमीरों को अपना उत्पीड़क मानते थे। अधिकतर स्थानों पर अमीरों के घर-बार लूटकर ध्वस्त कर दिए गए। इन छोटे-छोटे विद्रोहों ने चारों तरफ एक बड़े विद्रोह का रूप ले लिया।

विद्रोह के स्वरूप में समानता : –

🔹 पृथक-पृथक जगहों पर विद्रोह के स्वरूप में समानता का कारण आंशिक रूप से उसकी योजना थी। विभिन्न छावनियों के सिपाहियों के बीच अच्छा समन्वय बना हुआ था। सभी सिपाही पुलिस लाइन में रहते थे और उनकी जीवनशैली एक जैसी थी।

नेता और अनुयायी का विद्रोह में नेतृत्व : –

🔹 अंग्रेजों के साथ मुकाबला करने के लिए उचित नेतृत्व एवं संगठन आवश्यक था। इस उद्देश्य से विद्रोहियों ने कई बार ऐसे शक्तिशाली व्यक्तियों की मदद ली, जो पहले से ही अंग्रेजों से किसी बात पर नाराज थे।

🔹 इसी कारण कानपुर के विद्रोही सैनिकों तथा लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहब को कानपुर से विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।

🔹 झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को आम जनता द्वारा झाँसी से विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। इसी प्रकार बिहार में स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह को भी मजबूर किया गया।

🔹 लखनऊ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के युवा बेटे बिरजिस कादिर को जनता ने अपना नेता घोषित किया।

विद्रोह के संदेश का फैलना : –

🔹 सभी जगहों पर नेता दरबारों से जुड़े व्यक्ति रानियाँ, राजा, नवाब, ताल्लुक़दार नहीं थे। अकसर विद्रोह का संदेश आम पुरुषों एवं महिलाओं के ज़रिए और कुछ स्थानों पर धार्मिक लोगों के ज़रिए भी फैल रहा था

🔹 लखनऊ में अवध पर क़ब्ज़े के बाद बहुत सारे धार्मिक नेता और स्वयंभू पैगम्बर – प्रचारक ब्रिटिश राज को नेस्तनाबूद करने का अलख जगा रहे थे।

🔹 अन्य स्थानों पर किसानों, ज़मींदारों और आदिवासियों को विद्रोह के लिए उकसाते हुए कई स्थानीय नेता सामने आ चुके थे।

शाहमल कौन था ?

🔹 शाहमल उत्तरप्रदेश में बड़ौत परगना के एक – बड़े गाँव का रहने वाला था। उसने चौरासी गाँव के मुखियाओं और काश्तकारों को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध व्यापक विद्रोह का नेतृत्व किया। जुलाई 1857 ई. में शाहमल को युद्ध में अंग्रेजों ने मार दिया।

अफ़वाहें और भविष्यवाणियाँ : –

🔹 लोगों को विद्रोह में भाग लेने के लिए तरह-तरह की अफवाहों एवं भविष्यवाणियों द्वारा इकट्ठा किया गया।

🔸 उदाहरण के लिए : – मेरठ से दिल्ली आने वाले सिपाहियों ने बहादुर शाह को उन कारतूसों के बारे में बताया था जिन पर गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगा था। उनका कहना था कि अगर वे इन कारतूसों को मुँह से लगाएँगे तो उनकी जाति और मज़हब, दोनों भ्रष्ट हो जाएँगे। सिपाहियों का इशारा एन्फ़ील्ड राइफ़ल के उन कारतूसों की तरफ़ था जो हाल ही में उन्हें दिए गए थे। अंग्रेज़ों ने सिपाहियों को लाख समझाया कि ऐसा नहीं है लेकिन यह अफ़वाह उत्तर भारत की छावनियों में जंगल की आग की तरह फैलती चली गई।

🔹 यह अफवाह भी जोरों पर थी कि अंग्रेजों के द्वारा हिन्दुओं एवं मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट किया जा रहा था। इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया है। चारों ओर सन्देह और भय का वातावरण था कि अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों को ईसाई बनाया जा रहा है।

🔹 किसी बड़ी कार्रवाई के आह्वान को इस भविष्यवाणी से और बल मिला कि प्लासी की जंग के 100 साल पूरा होते ही 23 जून 1857 को अंग्रेज़ी राज ख़त्म हो जाएगा।

भारतीय समाज को सुधारने के लिए अंग्रेजों द्वारा विशेष प्रकार की नीति लागू करना : –

🔹 गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक द्वारा पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचारों एवं पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से भारतीय समाज को सुधारने के लिए विशेष प्रकार की नीति लागू की जा रही थी। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय खोले जा रहे थे।

🔹 अंग्रेजों के द्वारा सती प्रथा ( 1829 ई.) को समाप्त किया गया तथा हिन्दू विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए कानून बनाये गए। इन्हीं नीतियों के कारण जनता में असन्तोष व्याप्त था।

🔹 डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स, जिसे व्यपगत का सिद्धान्त या हड़पनीति भी कहा जाता था, के द्वारा लॉर्ड डलहौजी ने झाँसी, अवध जैसी रियासतों के पुत्र गोद लेने को अवैध घोषित करके हड़प लिया।

लोग अफ़वाहों में विश्वास क्यों कर रहे थे?

🔹 ये अफ़वाहें और भविष्यवाणियाँ उनके भय, उनकी आशंकाओं, उनके विश्वासों और प्रतिबद्धताओं के बारे में क्या बताती हैं। अफ़वाह तभी फैलती हैं जब उसमें लोगों के ज़हन में गहरे दबे डर और संदेह की अनुगूँज सुनाई देती है।

🔹 जैसे : – लोगों को लगता था कि वे अब तक जिन चीज़ों की क़द्र करते थे, जिनको पवित्र मानते थे चाहे राजे-रजवाड़े हों, सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाज हों या भूस्वामित्व, लगान अदायगी की प्रणाली हो उन सबको ख़त्म करके एक ऐसी व्यवस्था लागू की जा रही थी जो ज़्यादा हृदयहीन, परायी और दमनकारी थी। इस सोच को ईसाई प्रचारकों की गतिविधियों से भी बल मिल रहा था। ऐसे अनिश्चित हालात में अफ़वाहें रातोंरात फैलने लगती थीं।

रेज़ीडेंट : –

🔹 रेज़ीडेंट गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि को कहा जाता था। उसे ऐसे राज्य में तैनात किया जाता था जो अंग्रेज़ों के प्रत्यक्ष शासन के अंतर्गत नहीं था।

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