Class 12 history chapter 11 notes in hindi, विद्रोही और राज notes

अवध में विद्रोह : –

🔹 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केन्द्र अवध था जिसके बारे में 1851 में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने कहा था “ये फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” 1856 ई. में इस रियासत को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।

🔹 1801 ई. में अवध पर सहायक सन्धि थोप दी गई। सन्धि की शर्तें थीं कि नवाब अपनी सेना समाप्त कर दे, अपनी रियासत में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी को तैनात करे तथा अपने दरबार में विद्यमान ब्रिटिश रेजीडेंट की सलाह पर कार्य करे। अपनी शक्ति के छिन जाने से नवाब अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाने के लिए अंग्रेजों पर निर्भर रहने लगा। अब विद्रोही मुखियाओं और ताल्लुकदारों पर भी नवाब का कोई नियन्त्रण नहीं था ।

अवध पर अधिग्रहण : –

🔹 1850 के दशक के प्रारम्भ तक देश के प्रमुख भागों पर अंग्रेज विजय प्राप्त कर चुके थे। मराठा भूमि, दोआब, कर्नाटक, बंगाल तथा पंजाब सभी अंग्रेजों के पास थे। लगभग एक शताब्दी पहले बंगाल पर जीत के साथ आरम्भ हुई क्षेत्रीय विस्तार की यह प्रक्रिया 1856 ई. में अवध के अधिग्रहण के साथ पूरी हो गई थी।

अवध पर अधिग्रहण के परीणाम : –

🔹 लॉर्ड डलहौजी द्वारा किए गए अधिग्रहण से सभी रियासतों में गहरा असन्तोष व्याप्त था, परन्तु इतना रोष और कहीं नहीं था जितना अवध में था क्योंकि अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुप्रशासन का आरोप लगाकर गद्दी से हटा दिया गया था।

🔹 अवध के अधिग्रहण से केवल नवाब को ही नहीं हटाया गया बल्कि नर्तकों, संगीतकारों, कारीगरों, बावर्चियों, कवियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों की रोजी-रोटी भी जाती रही।

🔹 अवध के अधिग्रहण के तुरन्त बाद ताल्लुकदारों की सेनाओं को भंग कर दिया गया तथा उनके किले ध्वस्त कर दिये गए।

अंग्रेजों द्वारा अवध के अधिग्रहण का स्थानीय जनता पर प्रभाव : –

🔹 अंग्रेजों द्वारा अवध के अधिग्रहण के कारण स्थानीय जनता ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हो गई क्योंकि नवाब को हटाने से दरबार और उसकी संस्कृति नष्ट हो गई। संगीतकारों, नर्तकों, कवियों, कारीगरों, बावर्चियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों एवं अनेक लोगों की रोजी-रोटी समाप्त हो गई थी।

सहायक संधि : –

🔹 सहायक संधि लॉर्ड वेलेज्ली द्वारा 1798 में तैयार की गई एक व्यवस्था थी। अंग्रेज़ों के साथ यह संधि करने वालों को कुछ शर्तें माननी पड़ती थीं। मसलन :

  • (क) अंग्रेज़ अपने सहयोगी की बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से रक्षा करेंगे;
  • (ख) सहयोगी पक्ष के भूक्षेत्र में एक ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी तैनात रहेगी;
  • (ग) सहयोगी पक्ष को इस टुकड़ी के रख-रखाव की व्यवस्था करनी होगी; तथा
  • (घ) सहयोगी पक्ष न तो किसी और शासक के साथ संधि कर सकेगा और न ही अंग्रेज़ों की अनुमति के बिना किसी युद्ध में हिस्सा लेगा ।

सहायक सन्धि द्वारा अवध के नवाब का असहाय होना : –

🔹 सहायक सन्धि के कारण अवध का नवाब – वाजिद अली शाह अपनी सैनिक शक्ति से वंचित हो गया फलस्वरूप वह अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिन-प्रतिदिन अंग्रेजों पर निर्भर होता जा रहा था। नवाब का विद्रोही मुखियाओं एवं ताल्लुकदारों पर कोई नियंत्रण नहीं था ।

1857 के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा अवध के ताल्लुकदारों की सत्ता छीनने की प्रकिया : –

  • अंग्रेजों द्वारा सहायक संधि के तहत अवध का अधिग्रहण ।
  • अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटा कलकत्ता निर्वसन ।
  • अंग्रेजों द्वारा नवाब को अपनी जनता में अलोकप्रिय बताकर उन पर राज अच्छी तरह न चलाने का आरोप ।
  • अवध के ताल्लुकदारों की सत्ता पर भी प्रहार ।
  • समूचें देहात में ताल्लुकदारों की जागीरें और किले ।
  • इलाकों की जमीन और सत्ता पर जमींदारों का नियंत्रण ।
  • ताल्लुकदारों के पास अपने हथियारबंद सिपाही ।
  • नवाब की संप्रभुता स्वीकार का और राजस्व चुकाते रहने पर स्वायत्तता का होना ।
  • अंग्रेज ताल्लुकदारों की सत्ता को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं ।
  • अधिग्रहरण के फौरन बाद अंग्रेजों द्वारा ताल्लुकदारों की सेनाएँ भंग ।
  • 1856 में एकमुश्त बंदोबस्त के नाम से ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू ।
  • बंदोबस्त के अनुसार ताल्लुकदार सिर्फ बिचौलिया ।
  • जमीन पर उनका मालिकाना नहीं।
  • बल और धोखाधड़ी के जरिए इनका प्रभुत्व ।
  • एकमुश्त बंदोबस्त के तहत ताल्लुकदार जमीनों से बेदखल ।
  • दक्षिण अवध के ताल्लुकदारों को सबसे बुरी मार।
  • अंग्रेजों के आने से पहले का प्रतिशत गाँव ताल्लुकदारों के पास ।
  • एकमुश्त बंदोबस्त के बाद संख्या घटकर 38 प्रतिशत ।
  • ताल्लुकदारों की सत्ता छीनने से एक पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग ।

एकमुश्त बन्दोबस्त : –

🔹 1856 ई. में एकमुश्त बन्दोबस्त के नाम से ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू कर दी गई। यह बन्दोबस्त इस मान्यता पर आधारित था कि ताल्लुकदार बिचौलिए थे जिनके पास जमीन का स्वामित्व नहीं था। उन्होंने धोखा देकर तथा शक्ति के बल पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया हुआ था।

🔹 एकमुश्त बन्दोबस्त के तहत ताल्लुकदारों को उनकी जमीनों से बेदखल किया जाने लगा, इस कारण दक्षिण अवध के ताल्लुकदारों को सबसे अधिक क्षति उठानी पड़ी। ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से एक पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग हो गई।

अवध एक बड़ी क्रान्ति : –

🔹 अवध जैसे प्रदेशों में, जहाँ 1857 ई. के दौरान प्रतिरोध अत्यधिक लम्बा चला, लड़ाई की जिम्मेदारी वास्तव में ताल्लुकदारों और किसानों के ही हाथों में थी । बहुत से ताल्लुकदार अवध के नवाब के प्रति निष्ठा रखते थे, इसलिए वे अंग्रेजों के साथ मुकाबला करने के लिए लखनऊ जाकर नवाब की पत्नी बेगम हजरत महल के साथ मिल गए।

🔹 किसानों का विद्रोह अब सैनिक बैरकों तक पहुँचने लगा क्योंकि बहुत से सिपाही अवध के गाँवों से ही भर्ती किये गए थे। बहुत से सिपाही कम वेतन और समय पर छुट्टी न मिलने के कारण असन्तुष्ट थे। 1850 के दशक तक कई कारणों ने मिलकर एक बड़ी क्रान्ति का रूप धारण कर लिया।

विद्रोह में सिपाहियों की भूमिका : –

🔹 1857 के जनविद्रोह से पहले के वर्षों में सिपाहियों के अपने अंग्रेज अफसरों के साथ रिश्तों में बहुत बदलाव आ चुका था।

🔹 उत्तर भारत में सिपाहियों तथा ग्रामीण जगत के मध्य गहरे संबंध थे। अवध तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों से बड़ी संख्या में बंगाल आर्मी में सिपाही थे जिनमें से अधिकांश ब्राह्मण ‘ऊँची जाति’ के थे। अवध तो ‘बंगाल आर्मी की पौधशाला’ के तौर पर जाना जाता था।

🔹 सिपाहियों तथा ग्रामीण जनता के मध्य संबंधों से जनविद्रोह के स्वरूप पर गहरा प्रभाव पड़ा। जब सिपाहियों के द्वारा अपने अफसरों के आदेश की अवज्ञा की जाती थी और अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिए जाते थे तब विद्रोहियों के सगे-संबंधी, रिश्तेदार तथा गाँव की आम जनता भी विद्रोह में शामिल हो जाती थी।

विद्रोही क्या चाहते थे ?

🔹 1857 का विद्रोह एक ऐसा विद्रोह था जिसने कंपनी की नींव को हिलाकर रख दिया था । विद्रोह की शुरुआत तो सैनिक विद्रोह के रूप में हुई थी, लेकिन धीरे- धीरे यह राष्ट्रीय विद्रोह बन गया, समाज के सभी वर्ग इसमें शामिल हो गए थे।

🔹 विद्रोही देश को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना चाहते थे। वे जानते थे कि समाज का प्रत्येक वर्ग किसी ना किसी रूप में अंग्रेजों के शोषण का सामना कर रहे थे इसलिए उन्होंने सभी वर्गों में एकता व समन्वय की भावना उत्पन्न करने की कोशिश की चूँकि विद्रोह में अनेक वर्गों तथा सामाजिक समूहों ने भाग लिया था इसलिए उनके स्वार्थ तथा दृष्टिकोण भी भिन्न-भिन्न थे। उनकी चाहत तथा उद्देश्य में भी पर्याप्त भिन्नता थी।

विद्रोहीयो के विद्रोह करने के उद्देश्य को लेकर विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में फर्क : –

🔸 शासक वर्ग : – इस विद्रोह में सैनिकों के आह्वान पर बहादूर शाह जफर, नाना साहेब, लक्ष्मीबाई, कुँवरसिंह आदि शासकों ने नेतृत्व प्रदान किया लेकिन इनके विद्रोह में शामिल होने का उद्देश्य अपनी खोई हुई सत्ता की पुन: प्राप्ति था ।

🔸 जमींदार, ताल्लुकदार : – अंग्रेजी सरकार ने ताल्लुकदारों के भू-भाग तथा संपदाएँ छीन ली तथा जमींदारों की जमीनें नीलाम कर दी थी । इसलिए वे अंग्रेजी राज को समाप्त करके अपनी संपदाओं को पुनः प्राप्त करना चाहते थे ।

🔸 किसान : – विद्रोह में किसानों के जुड़ने का उद्देश्य यह था कि किसान अंग्रेजी सरकार की नीतियों से परेशान थे वे चाहते थे कि उन्हें भूमि से बेदखल ना किया जाए तथा सरकार, जमींदार, जोतदार, भूमि सुधारों की तरफ ध्यान दे बाजार में फसल के उचित मूल्य पर बिकने की सुविधा हो । साहूकारों तथा ऋणदाताओं पर सरकार का नियंत्रण हो तथा प्राकृतिक विपदा के समय उनका लगान माफ़ किया जाए।

🔸 व्यापारी : – अंग्रेजी सरकार ने कीमती उद्योगों को अपने हाथ में रखा था जिससे व्यापारियों को छोटे-मोटे व्यापार करने पड़ रहे थे तथा उन पर भी चुंगी नाका आदि लगा दिए थे, जिससे उन्हें अधिक लाभ नहीं होता था, इसलिए वे विद्रोह में शामिल होकर अंग्रेजों को भगाकर व्यापार पर एकाधिकार करना चाहते थे ।

🔸 पंडित व मौलवी : – पंडित तथा मौलवी भारत में ईसाई धर्म फैलाने के विरुद्ध थे । वे मानते थे कि अंग्रेज भारतीय संस्कृति व सभ्यता को रौंदकर पाश्चात्य सभ्यता का प्रसार कर रहे हैं वे धर्म के बचाव हेतु विद्रोह में शामिल हुए थे ।

एकता की कल्पना : –

🔹 1857 ई. में विद्रोही जाति तथा धर्म का भेद किए बिना समाज के सभी वर्गों का आह्वान कर घोषणाएँ जारी करते थे। बहुत सारी घोषणाएँ मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की तरफ़ से या उनके नाम पर जारी की गई थीं । परंतु उनमें भी हिंदुओं की भावनाओं का ख़याल रखा जाता था। बहादुरशाह के नाम से जारी घोषणा में मुहम्मद व महावीर दोनों के नाम पर जनता से इस लड़ाई में भाग लेने का आह्वान किया गया।

🔹 अंग्रेज शासन ने दिसंबर 1857 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित बरेली के हिंदुओं को मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काने के लिए 50,000 रुपये खर्च किए। उनकी यह कोशिश नाकामयाब रही।

विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए अपनाए गए तरीके : –

🔹 विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए अग्रलिखित तरीके अपनाए गए :

  • भारतीय समाज के सभी वर्गों से जातीय भेद-भाव न करते हुए एकता बनाए रखने की अपील की गई ।
  • मुस्लिम राजाओं द्वारा की गई घोषणा में भी हिंदुओं की भावनाओं का ध्यान रखा गया था।
  • हिंदुओं और मुसलमान दोनों की भावनाओं के लाभ और हानि को ध्यान में रखते हुए विद्रोह आरंभ किया।
  • बहादुर शाह द्वितीय के नेतृत्व में लोगों को मुहम्मद तथा महावीर दोनों के नामों पर विद्रोह में शामिल होने की अपील की। यद्यपि अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों में दरारें डालने के प्रयत्न किए परंतु उस विद्रोह में हिंदुओं और मुसलमानों में कोई भी धार्मिक अंतर देखने को न मिला।

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