उत्पीड़न के प्रतीकों के ख़िलाफ़ : –
🔹 जनता के मध्य इस बात को लेकर भी रोष विद्यमान था कि ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने सभी बड़े भू-स्वामियों को जमीन से बेदखल कर दिया था।
🔹 विदेशी व्यापार ने गरीब दस्तकारों और बुनकरों को भी बर्बाद कर दिया।
🔹 भारतीय जनता ने अंग्रेजों पर आरोप लगाया कि उन्होंने भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है।
🔹 कई दफ़ा विद्रोही शहर के संभ्रांत को जान-बूझकर बेइज्जत करते थे। गाँवों में उन्होंने सूदखोरों के बहीखाते जला दिए और उनके घर तोड़-फोड़ डाले । इससे पता चलता है कि विद्रोही तमाम उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ थे और परंपरागत सोपानों (ऊँच-नीच) को ख़त्म करना चाहते थे।
वैकल्पिक सत्ता की तलाश : –
🔹 ब्रिटिश शासन ध्वस्त होने के बाद विद्रोहियों ने दिल्ली, लखनऊ तथा कानपुर जैसी जगहों पर एक तरह की सत्ता तथा शासन संरचना की स्थापना करने की कोशिश की जिसका प्राथमिक उद्देश्य युद्ध की आवश्यकताओं की पूर्ति करना था ।
🔹 इन नेताओं ने पुरानी दरबारी संस्कृति का सहारा लिया।
- विभिन्न पदों पर नियुक्तियाँ की गई।
- भूराजस्व वसूली और सैनिकों के वेतन के भुगतान का इंतजाम किया गया।
- लूटपाट बंद करने के लिए हुक्मनामे जारी किए गए।
- इसके साथ-साथ अंग्रेजों के ख़िलाफ़ युद्ध जारी रखने की योजनाएँ भी बनाई गई।
- सेना की कमान श्रृंखला तय की गई।
🔹 इन सारे प्रयासों में विद्रोही अठारहवीं सदी के मुग़ल जगत से ही प्रेरणा ले रहे थे यह जगत उन तमाम चीजों का प्रतीक बन गया जो उनसे छिन चुकी थीं।
अंग्रेजों द्वारा दमन : –
🔹 उत्तर भारत को दोबारा जीतने के लिए टुकड़ियों को रवाना करने से पहले अंग्रेज़ों ने उपद्रव शांत करने के लिए फ़ौजियों की आसानी के लिए कई क़ानून पारित कर दिए थे।
🔹 मई व जून 1857 ई. में पारित किए गए कई कानूनों के तहत भारतीयों द्वारा किये जा रहे विद्रोह को कुचलने के लिए उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू किया गया। फौजी अधिकारियों के साथ-साथ अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने का व दण्ड देने का अधिकार दे दिया गया था, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का सन्देह था । विद्रोह के लिए केवल एक ही सजा दी जाती थी- सजा-ए-मौत ।
विद्रोह को कुचलना : –
🔹 इन नए विशेष क़ानूनों और ब्रिटेन से मँगाई गई नयी टुकड़ियों से लैस अंग्रेज़ सरकार ने विद्रोह को कुचलने का काम शुरू कर दिया।
🔹 अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने का काम शुरू करने के बाद जून 1857 में दिल्ली को कब्जे में करने का भरसक प्रयास किया, जो सितम्बर के अंत में जाकर सफल हुआ। अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया।
अंग्रेजों द्वारा विद्रोह को कुचलने के लिए उठाए गए कदम : –
🔹 अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटेन से बड़ी संख्या में सैन्य सहायता मँगवाई।
🔹 इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई नए कानून जारी किए तथा उत्तर भारत पर मार्शल लॉ लागू कर दिया।
🔹 मेजर रेनांड ने जनरल नाईल के आदेश पर उन सभी क्षेत्रों में घोर अत्याचार किए जहाँ विद्रोह फैला था।
🔹 विद्रोह के लिए केवल एक ही सजा दी जाती थी- सजा-ए-मौत ।
🔹 विद्रोही सैनिकों को पकड़कर हजारों लोगों के सामने उन्हें तोप से उड़ा दिया गया।
🔹 अंग्रेजों ने ‘फूट डालो राज करो’ की नीति अपनाते हुए हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश की।
कला और साहित्य के माध्यम से विद्रोह का विवरण : –
🔹 अंग्रेजों तथा भारतीयों द्वारा सैनिक विद्रोह के चित्र बनाये गये, जो कि एक महत्त्वपूर्ण रिकॉर्ड रहे हैं। इस विद्रोह के कई चित्र, जैसे- पेंसिल से बने रेखांकन, उत्कीर्ण चित्र, पोस्टर, कार्टून तथा बाजार प्रिंट उपलब्ध हैं।
रक्षकों का अभिनंदन : –
🔹 अंग्रेजों के द्वारा बनाये गए चित्रों में अंग्रेजों को बचाने वाले तथा विद्रोह व विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों का गुणगान किया जाता था। 1859 ई. में टॉमस जोंस बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र ‘रिलीफ ऑफ लखनऊ’ (लखनऊ की राहत) इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
अंग्रेज़ औरतें तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा : –
🔹 समाचार-पत्रों में जो खबरें छपी, उनका जनता की कल्पना शक्ति तथा मनोदशा पर गहरा प्रभाव पड़ा। भारत में औरतों एवं बच्चों के साथ हुई हिंसा की कहानियों को ‘पढ़कर ब्रिटेन की जनता सबक सिखाने के लिए प्रतिशोध की माँग करने लगी।
🔹 जोजेफ नोएल पेटन ने सैनिक विद्रोह के दो साल पश्चात् ‘इन मेमोरियम’ नामक चित्र बनाया जिसमें अंग्रेज औरतें तथा बच्चे एक घेरे में एक-दूसरे से लिपटे दिखाई देते हैं जैसे वे घोर संकट में हों। अंग्रेज कलाकारों ने सदमे तथा पीड़ा की अपनी चित्रात्मक अभिव्यक्तियों द्वारा इन भावनाओं को आकार प्रदान किया।
दया के लिए कोई जगह नहीं : –
🔹 गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग द्वारा विद्रोही सिपाहियों के साथ नरमी का सुझाव दिया गया जिसका मजाक बनाया गया। ब्रिटिश पत्रिका ‘पन्च’ में उसका कार्टून छपा, जिसमें लॉर्ड केनिंग को एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया, जो एक विद्रोही सिपाही के सिर पर हाथ रखे हुए था।
राष्ट्रवादी दृश्य कल्पना : झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई : –
🔹 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी आन्दोलन को 1857 ई. के विद्रोह से प्रेरणा मिल रही थी, जिसे भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के रूप में याद किया गया। इस विद्रोह में सभी वर्गों के लोगों ने साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध मिलकर लड़ाई लड़ी थी।
🔹 चित्रों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मर्दाना व्यक्तित्व के रूप में दर्शाया गया जिसमें वह शत्रुओं का पीछा करते हुए ब्रिटिश सिपाहियों को मौत के घाट उतारते हुए आगे बढ़ रही है।
🔹 भारत के विभिन्न भागों में बच्चे कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की इन पंक्तियों को पढ़ते हुए बड़े हो रहे थे “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।”
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