Class 12 history chapter 2 notes in hindi, राजा किसान और नगर notes

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राजा किसान और नगर Notes: Class 12 history chapter 2 notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 2
Chapter Nameराजा किसान और नगर
CategoryClass 12 History
MediumHindi

Class 12 history chapter 2 notes in hindi, राजा किसान और नगर notes इस अध्याय में हम राजा , किसान और नगर , 16 महाजनपद के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे और जानेंगे की किस प्रकार यहाँ आर्थिक राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था थी एव युद्धों पर भी चर्चा करेंगे ।

छठी शताब्दी ई. पूर्व. एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल : –

🔹 छठी शताब्दी ई. पूर्व. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इसका कारण आरंभिक राज्यों व नगरों का विकास, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों का प्रचलन है ।

🔹 इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है।

जनपद : –

🔹 जनपद का अर्थ एक ऐसा भूखंड है जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है। इस शब्द का प्रयोग प्राकृत व संस्कृत दोनों में मिलता है ।

🔹 लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में नवीन तकनीकों के प्रयोग के कारण अधिशेष उत्पादन होने लगा, जिसके कारण उत्तरवैदिक काल के जनपद महाजनपदों में परिवर्तित हो गए।

महाजनपद ( सोलह महाजनपद ) : –

🔹 महाजनपदों की कुल संख्या 16 थी, जिसका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु एवं जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र में मिलता है। महाजनपदों के नाम की सूची इन ग्रंथों में एकसमान नहीं है लेकिन वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति जैसे नाम प्रायः मिलते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद सबसे महत्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते होंगे।

🔹 प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जिसे प्रायः किले से घेरा जाता था। किलेबंद राजधानियों के रख-रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोत की आवश्यकता होती थी।

महाजनपद एवं उनकी राजधानी : –

महाजनपदराजधानी
1. अंगचंपा
2. मगधराजगृह,वैशाली,पाटलिपुत्र
3. काशीवाराणसी
4. वत्सकौशाम्बी
5. वज्जीवैशाली ,विदेह,मिथिला
6. कोसलश्रावस्ती
7. अवन्तीउज्जैन ,महिष्मति
8. मल्लकुशावती
9. पंचालअहिछत्र ,काम्पिल्य
10. चेदीशक्तिमती
11. कुरुइंद्रप्रस्थ
12. मत्स्यविराट नगर
13. कम्बोजहाटक
14. शूरसेनमथुरा
15. अश्मकपोतन
16. गंधारतक्षशिला

महाजनपदों के शासक : –

🔸 महाजनपदों के प्रमुख शासक : – बिम्बिसार, अजातशत्रु, शिशुनाग (मगध के) चण्डप्रद्योत (अवन्ति के) बानर, अश्वसेन (काशी के); प्रसेनजित ( कोसल के ); ब्रह्मदत्त (अंग के); उपचापर (चेदि के); उदयन (वत्स के); कोरव्य (कुरु के); विराट (मत्स्य के); अवंतीपुत्र ( सुरसेन के ); तथा चन्द्रवर्मन एवं सुदक्षिण (गांधार के) महाजनपदों के प्रमुख शासक थे।

🔹 लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत में ब्राह्मणों ने धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचना शुरू की। इनमें शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही होंगे । शासकों का काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था ।

महाजनपदों में शासन प्रणालियाँ : –

🔹 इस समय तीन प्रकार की शासन प्रणालियाँ अस्तित्व में थीं : –

🔸 (1) राजतंत्रात्मक शासन (Monarchy ) : – इनमें राज्य का प्रमुख राजा था। इनमें अंग, मगध, काशी, कौशल, चेदि, वत्स, कुरु, पंचाल, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवन्ति, गान्धार तथा कम्बोज प्रमुख थे। शासक तानाशाह नहीं थे ।

🔸 (2) गणतन्त्रात्मक शासन (Republic) : – सर्वप्रथम 1903 ई. में रिज डेविड्स ने भारत में गणराज्यों की खोज की। ‘संघ’ गण का पर्यायवाची था । बौद्ध साहित्य में कुछ गणराज्यों का उल्लेख मिलता है । वज्जि संघ में 8 राज्य सम्मिलित थे। प्रत्येक गाँव के सरदार को राजा कहा जाता था। राज्य के सामूहिक कार्य का विचार एक परिषद् में लेना था जिसके सभी सदस्य होते थे ।

🔸 (3) कुलीनतंत्र (Oligarchy) : – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में शासन का संचालन सम्पूर्ण प्रजा द्वारा न होकर किसी कुल विशेष के व्यक्तियों द्वारा किया जाता था। इस प्रकार की शासन व्यवस्था कुलीन तंत्र कहलाती थी। उदाहरण के लिये वैशाली के लिच्छवि का अर्थ है कि यहाँ का शासन लिच्छवि कुल के व्यक्तियों द्वारा किया जाता था। ऐसे ही कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला के विदेह एवं पिप्पलीवन के मोरिय आदि कुलीनतंत्रात्मक शासन थे ।

सोलह महाजनपदों में प्रथम : ( मगध ) : –

🔹 मगध आधुनिक विहार राज्य में स्थित है । छठी से चौथी शताब्दी ई. पू. में मगध ( आधुनिक बिहार ) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया । प्रारंभ में राजगृह मगध की राजधानी थी । पहाड़ियों के बीच बसा राजगृह एक किलेबंद शहर था । बाद में चौथी शताब्दी ई. पू. में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जिसे अब पटना कहा जाता है जिसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर महत्वपूर्ण अवस्थिति थी ।

🔹 मगध का प्ररंभिक इतिहास हर्यक कुल में राजा बिम्बिसार से प्रारंभ होता है मगध को इन्होंने दिग्विजय और उत्कर्ष के जिस मार्ग पर अग्रसर किया, वह तभी समाप्त हुआ जब कलिंग के युद्ध के उपरांत अशोक ने अपनी तलवार को म्यान में शांति दी ।

मगध महाजनपद के समृद्ध और शक्तिशाली महाजनपद बनने के कारण : –

  • मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी।
  • दूसरे यह कि लोहे की खदानें (आधुनिक झारखंड में ) भी आसानी से उपलब्ध थीं जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
  • जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के एक महत्वपूर्ण अंग थे।
  • साथ ही गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था।

🔹 लेकिन आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बताया है। इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार, अजातसत्तु और महापद्मनंद जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक थे, और इनके मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।

एक आरंभिक सम्राज्य (मौर्य साम्राज्य ) 321-185 BC : –

🔹 मगध के विकास के साथ-साथ मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ( लगभग 321 ई.पू.) का शासन पश्चिमोत्तर में अफ़गानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था। उनके पौत्र असोक ने जिन्हें आरंभिक भारत का सर्वप्रसिद्ध शासक माना जा सकता है, कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) पर विजय प्राप्त की ।

चंद्रगुप्त मौर्य : –

🔹 चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ई. पूर्व में पटना ( पाटलीपुत्र ) के बिहार जिले में हुआ था। मौर्य साम्राज्य भारत का पहला साम्राज्य था । इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु (विष्णुगुप्त, कौटिल्य, चाणक्य ) थे ।

मौर्य वंश के बारे में जानकारी के स्रोत : –

🔹 मौर्य साम्राज्य का इतिहास जानने में हमें साहित्य, विदेशी विवरण तथा पुरातात्विक सामग्री इन तीनों से ही पर्याप्त मदद मिलती है।

🔸 साहित्यिक स्रोतों में कौटिल्य (चाणक्य) का अर्थशास्त्र, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, विष्णु पुराण एवं बौद्ध व जैन ग्रन्थों से मौर्य इतिहास की जानकारी मिलती है।

🔸 विदेशी विवरण में राजदूत मैगस्थनीज की इण्डिका मौर्यकालीन इतिहास जानने का प्रमुख स्रोत है। सोमदेव का ‘कथासरित्सागर’ और क्षेमेन्द्र का ‘वृहतकथामंजरी’ भी मौर्य इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।

🔸 पुरातात्विक स्रोतों में चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक एवं रुद्रदामन के अभिलेख एवं सिक्के मौर्यकालीन इतिहास को लिखने में अत्यधिक प्रमाणिक एवं मददगार साबित हुये हैं।

मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्त्रोत ( in short ) : –

  • मेगस्थनीज़ की इंडिका कौटिल्य का अर्थशास्त्र
  • जैन साहित्य
  • बौद्ध साहित्य
  • पौराणिक ग्रंथ
  • अभिलेख (अशोक के )
  • संस्कृत वाङमय

मौर्य साम्राज्य में प्रशासन : –

🔹 मौर्य साम्राज्य का शासन प्रबन्ध चार भागों में बाँटा जा सकता है : –

  • केन्द्रीय शासन,
  • प्रान्तीय शासन,
  • नगर शासन,
  • ग्राम शासन ( सेना व्यवस्था )।

(1) केन्द्रीय शासन : –

🔸 राजा : – राजा सत्ता का केन्द्र था। वह निरंकुश नहीं था। उस पर मंत्रिपरिषद् का अंकुश था। चाणक्य ने राज्य के सात अंग- राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना और मित्र, बताये हैं।

🔸 मंत्रिपरिषद् : – इसमें 12 से 20 तक मंत्री होते थे। प्रत्येक मंत्री को 12,000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।

🔸 अमात्य मण्डल (तीर्थ) : – केन्द्रीय शासन सुविधा की दृष्टि से कई भागों में विभक्त था जिन्हें तीर्थ कहा जाता था। प्रत्येक तीर्थ (विभाग) का अध्यक्ष महामात्र (अमात्य) कहलाता था। अर्थशास्त्र में कुल 18 तीर्थों का उल्लेख है। उदाहरण के लिये एक तीर्थ का प्रधान समाहर्ता था जिसका कार्य राज्य के आय-व्यय का ब्यौरा रखना था । यह राजस्व भी एकत्रित करता था ।

(2) प्रान्तीय शासन : –

  • तक्षशिला और उज्जयिनी दोनो लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग थे ।
  • सुवर्णगिरी (सोने का पहाड़ ) कर्नाटक में सोने की खाने थी
  • साम्राज्य के संचालन में भूमि और नदियों दोनों मार्गों से आवागमन बना रहना आवश्यक था ।
  • राजधानी से प्रांतो तक जाने में कई सप्ताह या महीने का समय लगता होगा ।

🔹 साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे । राजधानी – पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र – तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि, स्वर्णगिरी । इन सब का उल्लेख अशोक के अभिलेखो में किया जाता है । पश्चिम में पाक से आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखण्ड तक हर स्थान पर एक जैसे संदेश उत्कीर्ण किर गए थे । ऐसा माना जाता है इस साम्राज्य में हर जगह एक समान प्रशासनिक व्यवस्था नहीं रही होगी क्योकि अफगानिस्तान का पहाड़ी इलाका दूसरी तरफ उडीसा तटवर्ती क्षेत्र ।

(3) नगर शासन : –

  • शिल्पकला समिति,
  • जनसंख्या समिति,
  • विदेश समिति,
  • उद्योग-व्यापार समिति,
  • वस्तु-निरीक्षक समिति एवं
  • कर निरीक्षक समिति ।

🔹 मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन किया है। नगर का प्रमुख अधिकारी एस्ट्रोनोमोई तथा जिले का अधिकारी एग्रोनोमोई था। पाटलिपुत्र नगर का प्रशासन 30 सदस्यों के समूह द्वारा होता था । इसकी कुल 6 समितियाँ होती थीं तथा प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे। ये समितियाँ थीं : –

सेना व्यवस्था : –

🔹 मेगास्थनीज़ के अनुसार मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए 1 समिति और 6 उप्समीतियाँ थी ।

  • इनमें से एक का काम नौसेना का संचालन करना था ।
  • तो दूसरी यातायात और खान-पान का संचालन करती थी ।
  • तीसरी का काम पैदल सैनिकों का संचालन, करना ।
  • चौथी का काम अश्वरोही का संचालन करना ।
  • पाँचवी का काम रथारोही का संचालन करना ।
  • छठवी का काम हथियारो का संचालन करना ।

अन्य उपसमितियां : –

🔹 दूसरी उपसमिति का दायित्व विभिन्न प्रकार का था जैसे :- उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।

मेगस्थनीज : –

🔹 गस्थनीज यूनानका राजदूत और एक महान इतिहासकार था ।

🔹 मेगस्थनीज ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम इंडिका था , इस पुस्तक से हमें मौर्य साम्राज्य की जानकारी मिलती है ।

🔹 मेगस्थनीज ने बताया की मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए 1 समिति और 6 उप्समीतियाँ थी ।

मौर्य साम्राज्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएं : –

  • एक केन्द्रीयकृत प्रशासनिक व्यवस्था ।
  • सत्ता के पाँच राजनीतिक केन्द्र पाटलिपुत्र, तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि ।
  • सड़कमार्ग एवं नौसेना का विकास करके सुदूर केन्द्रों तक नियंत्रण ।
  • प्रशासनिक नियंत्रण के लिए संगठित सेना का गठन ।
  • ‘धम्म’ के द्वारा जनता तक पहुंचना ।
  • न्यायालयों की स्थापना ।
  • उच्च अधिकारियों की नुियक्ति ।
  • वित्त व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने हेतु व्यवस्थित कर प्रणाली ।
  • सैन्य गतिविधियों का उचित संचालन ।

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