व्यापार और व्यवसाय : –
🔹 द्वितीय शताब्दी ई.पू. आते-आते हमें कई नगरों में छोटे दानात्मक अभिलेख प्राप्त होते हैं। इनमें दाता के नाम के साथ-साथ प्रायः उसके व्यवसाय का भी उल्लेख होता है। इनमें नगरों में रहने वाले धोबी, बुनकर, लिपिक, बढ़ाई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, धार्मिक गुरु, व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे होते हैं।
🔹 कभी-कभी उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें श्रेणी कहा गया है। ये श्रेणियाँ संभवत: पहले कच्चे माल को खरीदती थीं; फिर उनसे सामान तैयार कर बाज़ार में बेच देती थीं।
उपमहाद्वीप और उसके बाहर का व्यापार : –
🔹 छठी शताब्दी ई.पू. से ही उपमहाद्वीप में नदी मार्गों और भूमार्गों का मानो जाल बिछ गया था और कई दिशाओं में फैल गया था। मध्य एशिया और उससे भी आगे तक भू-मार्ग थे। समुद्रतट पर बने कई बंदरगाहों से जलमार्ग अरब सागर से होते हुए, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया तक फैल गया; और बंगाल की खाड़ी से यह मार्ग चीन और दक्षिणपूर्व एशिया तक फैल गया था।
🔹 इन मार्गों पर चलने वाले व्यापारियों में पैदल फेरी लगाने वाले व्यापारी तथा बैलगाड़ी और घोड़े – खच्चरों जैसे जानवरों के दल के साथ चलने वाले व्यापारी होते थे।
🔹 तमिल भाषा में मसत्थुवन और प्राकृत में सत्थवाह और सेट्ठी के नाम से प्रसिद्ध सफल व्यापारी बड़े धनी हो जाते थे। नमक, अनाज, कपड़ा, धातु और उससे निर्मित उत्पाद, पत्थर, लकड़ी, जड़ी-बूटी जैसे अनेक प्रकार के सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाए जाते थे।
सिक्के और राजा :-
- सिक्के के चलन से व्यापार आसान हो गया ।
- चॉदी । ताँबे के आहत सिक्के प्रयोग में लाए ।
- ये सिक्के खुदाई में मिले है ।
- आहत सिक्के पर प्रतीक चिहन भी थे ।
- सिक्के राजाओं ने जारी किए थे ।
- शासको की प्रतिमा तथा नाम के साथ सबसे पहले सिक्के यूनानी शासको ने जारी किए ।
- सोने के सिक्के सर्वप्रथम कुषाण राजाओ ने जारी किए थे ।
- मूल्यांकन वस्तु के विनिमय में सोने के सिक्के का प्रयोग किया जाता था ।
- दक्षिण भारत मे बड़ी तादात में रोमन सिक्के मीले है।
- सोने के सबसे आकर्षक सिक्के गुप्त शासको ने जारी किए ।
ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ : –
🔹 भारतीय अभिलेख विज्ञान में एक उल्लेखनीय प्रगति 1830 के दशक में हुई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला। इन लिपियों का उपयोग सबसे आरंभिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है।
पियदस्सी :-
🔹 पियदस्सी का मतलब होता है मनोहर मुखाकृति वाला राजा अर्थात जिसका मुह सुंदर हो ऐसा राजा ।
ब्राह्मी लिपि का अध्ययन : –
🔹 आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त लगभग सभी लिपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग असोक के अभिलेखों में किया गया है।
🔹 आरंभिक अभिलेखों का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने कई बार यह अनुमान लगाया कि ये संस्कृत में लिखे हैं जबकि प्राचीनतम अभिलेख वस्तुतः प्राकृत में थे। फिर कई दशकों बाद अभिलेख वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम के बाद जेम्स प्रिंसेप ने असोककालीन ब्राह्मी लिपि का 1838 ई. में अर्थ निकाल लिया।
खरोष्ठी लिपि को कैसे पढ़ा गया?
🔹 पश्चिमोत्तर से पाए गए अभिलेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया था ।
🔹 इस क्षेत्र में हिन्दू – यूनानी शासक शासन करते थे और उनके द्वारा बनवाये गए सिक्को से खरोष्ठी लिपि के बारे में जानकारी मिलती है ।
🔹 उनके द्वारा बनवाये गए सिक्कों में राजाओं के नाम यूनानी और खरोष्ठी में लिखे गए थे ।
🔹 यूनानी भाषा पढने वाले यूरोपीय विद्वानों में अक्षरों का मेल किया ।
अभिलेख : –
🔹 अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेखशास्त्र कहते हैं । अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं जो उन्हें बनवाते हैं। इनमें राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्योरा होता है। यानी अभिलेख एक प्रकार से स्थायी प्रमाण होते हैं।
अभिलेखों से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य : –
- इनमें धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्यौरा होता है ।
- ये स्थाई प्रमाण होते हैं।
- प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत (जनसामान्य ) भाषाओं में लिखे जाते थे ।
- अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियां क्रियाकलाप तथा विचार लिखे जाते है जो इन्हें बनवाते हैं ।
- इन पर ‘इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है।
- तिथि न मिलने पर इनका काल निर्धारण पुरालिपि) अथवा लेखन शैली के आधर पर किया जाता है ।
अभिलेख की साक्ष्य सीमा : –
🔹 तकनीकी सीमा अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है जिन्हें पढ़ पाना मुश्किल होता है।
🔹 कभी-कभी अभिलेख नष्ट भी हो जाते हैं जिनसे अक्षर लुप्त हो जाते हैं।
🔹 शब्दों के वास्तविक अर्थ का पूर्व रूप से ज्ञान नहीं होता कुछ किसी विशेष स्थान या समय से संबंधित ।
🔹 कई हजार अभिलेख प्राप्त हुए हैं लेकिन सभी का अर्थ, प्रकाशन या अनुवाद नहीं किया गया है।
🔹 प्रायः अभिलेख बड़े और विशेष अवसरों का वर्णन करते हैं
🔹 जरूरी नहीं है जिसे आज राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं उन्हें अभिलेखों में अंकित किया गया हो।
🔹 इसके अलावा अभिलेख हमेशा उन्हीं व्यक्तियों के विचार व्यक्त करते हैं जो उन्हें बनवाते थे।
🔹 इनमें खेती की दैनिक क्रियाएं प्रक्रियाएं और रोजमर्रा की जिंदगी के दुख सुख का उल्लेख नही है।
🔹 अभिलेखों में व्यक्त विचारों की समीक्षा अन्य विचारों के परिप्रेक्ष्य में करनी होगी ताकि अपनी अतीत का बेहतर ज्ञान हो सके।
🔹 अनेक अभिलेख जो कालांतर में सुरक्षित नहीं बचे जो अभी उपलब्ध हैं वह संभवत अभिलेखों के अंश मात्र हैं।
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