Class 12 history chapter 8 notes in hindi, किसान जमींदार और राज्य notes

किसान जमींदार और राज्य Notes: Class 12 history chapter 8 notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 8
Chapter Nameकिसान जमींदार और राज्य
CategoryClass 12 History
MediumHindi

Class 12 history chapter 8 notes in hindi, किसान जमींदार और राज्य notes इस अध्याय मे हम मुगल शासक व्यवस्था और कृषि , जमीदार , ग्रामीण दस्तकार , पंचायत मुखिया इत्यादि के बारे में जानेंगे ।

परिचय : –

🔹 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में भारत की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी । इस काल में छोटे-छोटे किसान एवं बड़े भू-स्वामी सभी कृषि कार्य में संलग्न रहते थे।

🔹 इस समय हमारे देश के अधिकांश भाग पर मुगलों का शासन था; जिनकी अर्थ- व्यवस्था कृषि से प्राप्त राजस्व पर आधारित थी।

🔹 मुगल शासन में राजस्व निर्धारित करने वाले, राजस्व वसूली करने वाले एवं लेखा-जोखा रखने वाले अधिकारी ग्रामीण समाज को नियंत्रण में रखने का पूरा प्रयास करते थे। साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखते थे कि खेतों की जुताई समय पर हो एवं राज्य को उपज से अपने हिस्से का कर समय पर मिल जाए।

ग्रामीण भारत में कृषि समाज ( किसान और कृषि उत्पादन ) : –

🔹 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में खेतिहर समाज की बुनियादी इकाई गाँव थी; जिनमें किसान निवास करते थे। किसान जमीन की जुताई, बुआई, फसल की कटाई आदि का कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन भी हिस्सेदारी रखते थे जो कृषि पर आधारित थीं; जैसे- शक्कर, तेल आदि ।

🔹 मैदानी क्षेत्रों में बसे किसानों की खेती के अतिरिक्त सूखी जमीन के विशाल भागों से पहाड़ियों वाले क्षेत्र तथा जंगलों से घिरा भू-खंड का एक वृहद् हिस्सा भी ग्रामीण भारत की खासियतों में सम्मिलित था।

ग्रामीण समाज ओर कृषि इतिहास को जानने का मुख्य स्रोत : –

🔹 इस काल के ग्रामीण समाज के क्रियाकलापों और कृषि इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें मुगल दरबार की निगरानी में लिखित ऐतिहासिक ग्रन्थों एवं दस्तावेजों का सहारा लेना पड़ता है।

🔹 कृषि इतिहास से संबंधित ऐतिहासिक स्रोतों में अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ प्रमुख है, जिसे संक्षेप में ‘आइन’ कहा जाता है।

जानकारी के अन्य स्त्रोत : –

🔹 आइन-ए-अकबरी के अतिरिक्त कृषि इतिहास के अन्य स्रोतों में ईस्ट इण्डिया कम्पनी एवं गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों से मिलने वाले दस्तावेज प्रमुख हैं। 17वीं – 18वीं शताब्दियों के ये स्रोत भारत में कृषि से संबंधित उपयोगी विवरण प्रदान करते हैं एवं सरकार की आमदनी की विस्तृत जानकारी देते हैं।

ये स्रोत क्यों महत्वपूर्ण हैं?

🔹 ये स्रोत हमें पूर्वी भारत में कृषि संबंधों का उपयोगी विवरण प्रदान करते हैं। ये सभी स्रोत किसानों, जमींदारों और राज्य के बीच संघर्ष के उदाहरण दर्ज करते हैं। लगे हाथ, ये स्रोत यह समझने में हमारी मदद करते हैं कि किसान राज्य को किस नज़रिये से देखते थे और राज्य से उन्हें कैसे न्याय की उम्मीद थी।

आईने-ए-अकबरी : –

  • अकबर के हुक्म पर अबुल फजल द्वारा रचित ।
  • 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद पूर्ण हुई।
  • अकबरनामा की तीन जिल्दों में से तीसरी आइन-ए-अकबरी थी ।
  • आइन-ए-अकबरी को शाही नियम कानून के सारांश और साम्राज्य के एक राजपत्र की सूरत में संकलित किया गया है।

आइन की विषय वस्तु : –

  • दरबार प्रशासन
  • सूबों की पेचीदा तथा आंकड़ें बद्ध सूचनाएँ
  • सरकार के तमाम विभागों तथा प्रान्तों के बारे में
  • साहित्यिक सांस्कृतिक तथा धार्मिक रिवाज
  • प्रान्तों का भूगोल
  • राजस्व के स्त्रोत
  • सेना का संगठन

आइन पाँच भागों का संकलन : –

🔸 प्रथम भाग में अकबर के पूर्वजों तथा उसके आरंभिक जीवन का वर्णन है।

🔸 दूसरा भाग अकबर काल के घटनाक्रमों से संबंधित है।

🔸 तीसरे भाग अर्थात् आईन-ए-अकबरी में अकबर के शासनकाल से संबंधित आँकड़े तथा शासन-व्यवस्था संबंधी अन्य नियमों का वर्णन है।

🔸 चौथी तथा पाँचवीं किताबों में भारत के लोगों के मजहबी, साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाज तथा अन्त में अकबर के शुभ वचन’ लिखे हैं।

आइन-ए-अकबरी में कृषि इतिहास से जुड़ी जानकारी : –

🔹 आइन-ए-अकबरी में कृषि के सुव्यवस्थित प्रबन्धन के लिए राज्य द्वारा बनाए गए नियमों का पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।

🔹 खेतों की जुताई, करों की वसूली, राज्य और जमींदारों के बीच संबंधों का नियमन आदि का पूर्ण विवरण भी आइन-ए-अकबरी में दिया गया है।

🔹 आइन का मुख्य उद्देश्य अकबर के सम्राज्य का एक ऐसा खाका पेश करना था जहाँ एक मज़बूत सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बना कर रखता था। किसानों के बारे में जो कुछ हमें आइन से पता चलता है वह सत्ता के ऊँचे गलियारों का नज़रिया है।

किसानो के बारे में जानकारी : –

🔹 मुग़ल काल के भारतीय फ़ारसी स्रोत किसान के लिए आमतौर पर रैयत ( बहुवचन, रिआया) या मुज़रियान शब्द का इस्तेमाल करते थे। इसके अतिरिक्त किसानों के लिए आसामी शब्द का प्रयोग भी किया जाता था।

किसानो के प्रकार : –

🔹 17वीं शताब्दी के स्रोतों में दो प्रकार के किसानों का उल्लेख मिलता है – खुद काश्त व पाहि- काश्त

  • खुद काश्त : – वे किसान जो उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी ज़मीन थीं।
  • पाहि – काश्त : – वे किसान थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे।

🔸 नोट : – लोग अपनी मर्जी से भी पाहि- काश्त बनते थे (मसलन, अगर करों की शर्तें किसी दूसरे गाँव में बेहतर मिलें ) और मजबूरन भी (मसलन, अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी से ) ।

किसानों की संपत्ति : –

🔹 उत्तर भारत के एक औसत किसान के पास एक जोड़ी बैल तथा दो हल से अधिक कुछ भी नहीं होता था। अधिकांश किसानों के पास इससे भी कम था।

🔹 गुजरात में जिन किसानों के पास 6 एकड़ तक जमीन थी; वे धनवान माने जाते थे, वहीं दूसरी तरफ बंगाल में एक औसत किसान की जमीन की ऊपरी सीमा 5 एकड़ थी तथा 10 एकड़ जमीन वाले किसान को धनवान माना जाता था।

खेती के बारे में जानकारी : –

🔹 खेती निजी (व्यक्तिगत) मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी । अन्य संपत्ति मालिकों की तरह ही किसानों की जमीन भी खरीदी और बेची जाती थी ।

🔹 ज़मीन की बहुतायत, मजदूरों की मौजूदगी, और किसानों की गतिशीलता की वजह से कृषि का लगातार विस्तार हुआ। चूँकि खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था, इसलिए रोज़मर्रा के खाने की जरूरतें जैसे चावल, गेहूँ, ज्वार इत्यादि फ़सलें सबसे ज़्यादा उगाई जाती थीं।

🔹 जिन इलाकों में प्रति वर्ष 40 इंच या उससे ज़्यादा बारिश होती थी, वहाँ कमोबेश चावल की खेती होती थी। कम और कमतर बारिश वाले इलाकों में क्रमश: गेहूँ व ज्वार – बाजरे की खेती ज़्यादा प्रचलित थी।

सिंचाई की जानकारी : –

🔹 आज की भाँति मुगलकाल में भी मानसून को भारतीय कृषि की रीढ़ माना जाता था, परन्तु जिन फसलों के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती थी उनके लिए सिंचाई के कृत्रिम साधन अपनाए गए। उत्तरी भारत में कई नयी नहरें व नाले का निर्माण हुआ और पुरानी नहरों की मरम्मत कराई गई; जैसे कि शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान पंजाब में शाह नहर

कृषि के निरंतर विस्तार के लिए उत्तरदायी कारक : –

  • भूमि की प्रचुरता
  • उपलब्ध श्रम
  • किसानों की गतिशीलता.

कृषि में उपयोग तकनीकों की जानकारी : –

🔹 तत्कालीन समय में किसान कृषि में ऐसी तकनीकों का प्रयोग भी करते थे जो प्रायः पशुबल पर आधारित होती थीं, जैसे- लकड़ी का हल्का हल। इसे एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर बनाया जाता था। ऐसे हल मिट्टी को बहुत गहरा नहीं खोदते थे जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में भी मिट्टी में नमी बनी रहती थी ।

🔹 बीज बोने के लिए बैलों की जोड़ी से खींचे जाने वाले बरमे का उपयोग होता था लेकिन बीजों को हाथ से छिड़क कर बोने का प्रचलन अधिक था ।

🔹 मिट्टी की गुड़ाई और साथ-साथ निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार काम में लाए जाते थे ।

फसलें के प्रकार : –

🔹 फसलें मौसम के चक्रों पर आधारित थीं एक खरीफ़ ( पतझड़ में) और दूसरी रबी ( वसंत में)। अधिकांश क्षेत्रों में दो फसलें उगाई जाती थीं, परन्तु जहाँ सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती थी वहाँ तीन फसलें भी उगाई जाती थीं। इस कारण पैदावार में बड़े स्तर पर विविधता मिलती थी।

फसलों की विशाल विविधता का उदाहरण : –

🔸 पैदावार में बड़े स्तर पर विविधता का उदहारण : – आइन हमें बताती है कि दोनों मौसम मिलाकर, मुग़ल प्रांत आगरा में 39 किस्म की फ़सलें उगाई जाती थीं जबकि दिल्ली प्रांत में 43 फ़सलों की पैदावार होती थीबंगाल में सिर्फ चावल की 50 किस्में पैदा होती थीं।

राजस्व उत्पन्न करने के लिए नकदी फसलें : –

1. मुग़ल राज्य भी किसानों को ऐसी फ़सलों की खेती करने के लिए बढ़ावा देता था क्योंकि इनसे राज्य को ज़्यादा कर मिलता था। कपास और गन्ने जैसी फ़सलें बेहतरीन जिन्स-ए-कामिल थीं।

2. मध्य भारत और दक्कनी पठार में फैले हुए ज़मीन के बड़े-बड़े टुकड़ों पर कपास उगाई जाती थी, जबकि बंगाल अपनी चीनी के लिए मशहूर था। तिलहन (जैसे सरसों) और दलहन भी नकदी फ़सलों में आती थीं।

🔹 इससे पता चलता है कि एक औसत किसान की ज़मीन पर किस तरह पेट भरने के लिए होने वाले उत्पादन और व्यापार के लिए किए जाने वाले उत्पादन एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

भारत उपमहाद्वीप में पहुंची नई फसलें : –

🔹 सत्रहवीं सदी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से कई नयी फ़सलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँचीं। मसलन, मक्का भारत में अफ्रीका और स्पेन के रास्ते आया और सत्रहवीं सदी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फ़सलों में होने लगी। टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्ज़ियाँ नयी दुनिया से लाई गईं। इसी तरह अनानास और पपीता जैसे फल वहीं से आए

जिन्स-ए-कामिल : –

🔹 नकदी फसलें को मुगल स्रोतों में जिन्स-ए-कामिल अर्थात् सर्वोत्तम फसलें कहा गया है। गन्ना, कपास, तिलहन (जैसे-सरसों तथा दलहन ) की फसलें भी जिन्स-ए- कामिल कही जाती थीं ।

तम्बाकू का प्रसार : –

🔹 यह पौधा सबसे पहले दक्कन पहुँचा और वहाँ से सत्रहवीं सदी के शुरुआती वर्षों में इसे उत्तर भारत लाया गया। आइन उत्तर भारत की फ़सलों की सूची में तम्बाकू का ज़िक्र नहीं करती है।

🔹 अकबर और उसके अभिजातों ने 1604 ई. में पहली बार तम्बाकू देखा। ऐसा लगता है कि इसी समय तम्बाकू का धूम्रपान (हुक्के या चिलम में) करने की लत ने ज़ोर पकड़ा।

🔹 जहाँगीर इस बुरी आदत के फैलने से इतना चिंतित हुआ कि उसने इस पर पाबंदी लगा दी। यह पाबंदी पूरी तरह से बेअसर साबित हुई क्योंकि हम जानते हैं कि सत्रहवीं सदी के अंत तक, तम्बाकू पूरे भारत में खेती, व्यापार और उपयोग की मुख्य वस्तुओं में से एक था।

ग्रामीण समुदाय : –

🔹 किसान का अपनी जमीन पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता था और वे एक सामूहिक ग्रामीण समुदाय के घटक होते थे।  ग्राम समुदाय में तीन घटक होते थे : – किसान, पंचायत, गाँव का मुखिया (मुकद्दम या मंडल) आदि सम्मिलित होते थे।

आगे पढ़ने के लिए नीचे पेज 2 पर जाएँ

⇓⇓⇓⇓⇓⇓⇓

Legal Notice

This is copyrighted content of GRADUATE PANDA and meant for Students use only. Mass distribution in any format is strictly prohibited. We are serving Legal Notices and asking for compensation to App, Website, Video, Google Drive, YouTube, Facebook, Telegram Channels etc distributing this content without our permission. If you find similar content anywhere else, mail us at info@graduatepanda.com. We will take strict legal action against them.