Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन Notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 13 |
Chapter Name | महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 History Class 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन Notes In Hindi इस अध्याय मे हम स्वदेशी आन्दोलन , चम्पारण किसान आंदोलन , खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन , रौलेट एक्ट , भारत छोड़ो आंदोलन तथा उसे जुड़ी विषयो पर चर्चा करेेंगे ।
राष्ट्र-निर्माण का श्रेय : –
🔹 राष्ट्रवाद के इतिहास में मुख्य रूप से एक ही व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण का श्रेय दिया जाता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध जॉर्ज वाशिंगटन, इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी तथा वियतनाम को मुक्त कराने के संघर्ष के साथ हो ची मिन्ह का नाम जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता माने जाते हैं।
🔹 उग्रपंथी : –
🔹 उग्रपंथी वे राष्ट्रवादी नेता जो अंग्रेजों को हर प्रकार से जवाब देना चाहते थे। इनमें मुख्य नाम हैं- बाल गंगाधर तिलक, अरविन्द घोष, विपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय इत्यादि ।
स्वशासन : –
🔹 स्वशासन अपने समस्त कार्यों की व्यवस्था स्वयं करने का पूर्ण अधिकार अथवा अपने अधिक्षेत्र में शासन व राजनीतिक प्रबन्ध आदि स्वयं करने का पूर्ण अधिकार ।
स्वराज्य : –
🔹 स्वराज्य वह शासन प्रणाली जिसमें किसी देश के निवासी अपने देश का समस्त शासन एवं प्रबन्ध स्वयं करें तथा बिना किसी विदेशी शक्ति के दबाव के निवास करते हों ।
समाजवाद : –
🔹 समाजवाद वह सिद्धान्त जिसमें यह माना जाता है कि समाज के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ी हुई विषमता को दूर करके समता स्थापित की जानी चाहिए।
महात्मा गाँधी : –
🔹 हम जानते है कि गाँधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था । गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था । इनके पिता का नाम करमचंद्र गाँधी और माता का नाम पुतली बाई था। ये बचपन में ही शर्मीले स्वभाव के थे। इनके बचपन का नाम मनु था । इनका अल्प आयु (13 वर्ष) में कस्तूरबा से विवाह करा दिया जाता है ।
गाँधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है?
🔹 महात्मा गाँधी भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सबसे अग्रगण्य, सर्वाधिक प्रभावशाली व सम्मान योग्य व्यक्तित्व थे इसीलिए उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है।
गांधी जी और दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह : –
🔹 दक्षिण अफ्रीका में 20 वर्ष बिताने के बाद जनवरी 1915 ई. में भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में वे एक वकील के रूप में गए थे और बाद में वे इस क्षेत्र में निवास करने वाले भारतीयों के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए।
🔹 दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने सर्वप्रथम अहिंसात्मक विरोध के विशेष तरीके का प्रयोग किया । दक्षिण अफ्रीका में ही महात्मा गाँधी ने पहली बार अहिंसात्मक विरोध की विशिष्ट तकनीक “सत्याग्रह” का इस्तेमाल किया। सत्याग्रह अर्थात् सत्य के लिए आग्रह । जिसमें विभिन्न धर्मो के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जाति भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के लिए चेतावनी दी। इसलिए चन्द्रन देवनेसन ने कहा है, दक्षिण अफ्रीका ने गांधी जी को महात्मा बनाया।
स्वदेशी आन्दोलन (1905-07) : –
🔹 भारत मे स्वदेशी आन्दोलन 1905 से 1907 तक चला । 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से इसने व्यापक रूप से मध्य वर्गों के बीच अपनी अपील का विस्तार कर लिया था। इस आंदोलन ने कुछ प्रमुख नेताओं को जन्म दिया।
🔹 इस आंदोलन के प्रमुख नेता : –
- बाल गंगाधर तिलक (महाराष्ट्र )
- विपिन चन्द्र पाल ( बंगाल )
- लाला लाजपत राय ( पंजाब )
🔹 इन्ही को लाल, बाल, पाल के नाम से भी जाना गया है । इन नेताओं ने जहाँ औपनिवेशिक शासन के प्रति लड़ाकू विरोध का समर्थन किया वहीं ‘उदारवादियों’ का एक समूह था जो एक क्रमिक व लगातार प्रयास करते रहने के विचार का हिमायती था ।
🔹 उदारवादियों में गाँधीजी के मान्य राजनीतिक सलाहकार (राजनीतिक गुरु ) गोपालकृष्ण गोखले तथा मोहम्मद अली जिन्ना शामिल थे।
गांधी जी का भारत आगमन : –
🔹 9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में सत्यग्रह का सफल प्रयोग करने के पश्चात भारत वापस आए । 1915 में जब महात्मा गाँधी भारत आए तो उस समय का भारत 1893 में जब वे यहाँ से गए थे तब के समय से अपेक्षाकृत भिन्न था। यद्यपि यह अभी भी एक ब्रिटिश उपनिवेश था लेकिन अब यह राजनीतिक दृष्टि से कहीं अधिक सक्रिय हो गया था। अधिकांश प्रमुख शहरों और कस्बों में अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएँ थीं।
🔹 उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया और भारतीय राजनीति के अध्ययन के लिए सारे देश का भ्रमण किया । गोखले ने गाँधी जी को एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा करने की सलाह दी जिससे कि वे इस भूमि और इसके लोगों को जान सकें।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU : –
🔹 गाँधीजी की प्रथम महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दर्ज हुई। गाँधीजी को यहाँ पर दक्षिण अफ्रीका में उनके द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर आमंत्रित किया गया था।
🔹 बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना एक उत्सव का अवसर था क्योंकि यह भारतीय धन और भारतीय प्रयासों से संभव एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय की स्थापना का द्योतक था।
🔹 उन्होंने यहाँ पर भारतीय विशिष्ट वर्ग को गरीब मजदूर वर्ग की ओर ध्यान न देने के कारण आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना ‘निश्चय ही’ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, परन्तु गाँधीजी ने वहाँ उपस्थित धनी व सजे-सँवरे लोगों की उपस्थिति और ‘लाखों गरीब’ भारतीयों की अनुपस्थिति पर अपनी चिन्ता प्रकट की।
गाँधी जी द्वारा दिए गए भाषण का उद्देश्य : –
🔹 दिसम्बर 1916 ई. में गाँधीजी ने अपने वास्तविक मंतव्य को भाषण के जरिये उजागर कर दिया। इसका प्रमुखतः कारण यह था कि भारतीय राष्ट्रवाद डॉक्टर, वकीलों और जमींदारों जैसे विशिष्ट वर्ग का ही प्रतिनिधित्व करता था, परन्तु इस भाषण से गाँधीजी की इच्छा व्यक्त हो गई क्योंकि गाँधीजी ने यह निश्चय किया था कि भारतीय राष्ट्रवाद को सम्पूर्ण लोगों तक पहुँचाया जाये ।
गाँधी जी किसानो के लिए एक राष्ट्रवादी के रूप : –
🔹 दिसम्बर 1916 में लखनऊ में आयोजित की गई वार्षिक कांग्रेस में गाँधीजी को चंपारन (बिहार) से आए एक किसान ने वहाँ अंग्रेजों द्वारा नील उत्पादन के लिए किसानों के साथ किए जाने वाले कठोर व्यवहार के विषय में बताया।
🔹 1917 ई. का अधिकांश समय गाँधीजी का किसानों को काश्तकारी की सुरक्षा तथा अपनी पसंदीदा फसल उगाने की स्वतंत्रता दिलाने में व्यतीत हुआ ।
🔹 1918 ई. में गाँधीजी ने अपने गृह राज्य (गुजरात) में दो अभियानों में भाग लिया। अहमदाबाद के एक श्रम विवाद में उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए कपड़े की मिलों में कार्यरत लोगों की बेहतर स्थितियों की माँग की, जबकि खेड़ा में फसल बर्बाद होने पर उन्होंने राज्य सरकार से किसानों का लगान माफ करने की माँग की।
🔹 चंपारन, अहमदाबाद व खेड़ा में की गई पहल ने गाँधीजी को एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में ला खड़ा किया जो गरीबों के प्रति गहरी भावनाएँ व सहानुभूति रखता है।
रोलेट एक्ट : –
🔹 1914-18 के युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन उपायों को जारी रखा। ब्रिटिश सरकार ने इस अभियान को रॉलेट-एक्ट नाम दिया। रोलेट-एक्ट के कारण प्रांत की स्थिति तनावपूर्ण हो गई।
रौलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह : –
🔹 गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारम्भ किया जिसने गाँधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभार दिया। इस सफलता से प्रोत्साहित होकर गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक बड़ा आन्दोलन करने का निश्चय किया।
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड : –
🔹 रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह के दौरान जनरल डायर ने अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को हो रही एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस हत्याकाण्ड में 400 से भी अधिक लोग मारे गए।
घटनाएं जिनसे गाँधी जी को एक राष्ट्रवादी एवं सच्चे राष्ट्रीय नेता की छवि मिली : –
🔹 चंपारन, अहमदाबाद एवं खेड़ा के आन्दोलनों ने गाँधी जी को एक ऐसे राष्ट्रवादी नेता की छवि प्रदान की जिनके मन में गरीबों के लिए गहरी सहानुभूति थी ।
🔹 रोलेट एक्ट के खिलाफ अभियान ने गाँधी जी को एक अच्छा राष्ट्रीय नेता बनाया ।
असहयोग आन्दोलन : –
🔹 रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह की सफलता से उत्साहित होकर गाँधीजी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन की माँग कर दी। जो भारतीय उपनिवेशवाद का खात्मा करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएँ तथा कर न चुकाएँ । संक्षेप में सभी को अंग्रेज़ी सरकार के साथ (सभी) ऐच्छिक संबंधों के परित्याग का पालन करने को कहा गया। गाँधी जी ने कहा कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।
🔸 असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम निम्न थे : –
- विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया।
- वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया।
- कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया।
- सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था।
- देहात भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था।
- उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी।
- अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए ।
- कुमाऊँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया।
खिलाफ़त आंदोलन : –
🔹 खिलाफ़त आंदोलन (1919-1920) मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आंदोलन था। इस आंदोलन की निम्नलिखित माँगें थीं : –
- पहले के ऑटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की सुल्तान अथवा खलीफ़ा का नियंत्रण बना रहे,
- जज़ीरात-उल-अरब ( अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन ) इस्लामी सम्प्रभुता के अधीन रहें तथा खलीफ़ा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित करने के योग्य बन सके।
🔹 कांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और गाँधी जी ने इसे असहयोग आंदोलन के साथ मिलाने की कोशिश की।
असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन का मिलना : –
🔹 गाँधी जी ने अपने संघर्ष का विस्तार करते हुए खिलाफत आन्दोलन को भी अपने साथ असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित कर लिया। गाँधीजी को यह पूर्ण विश्वास था कि असहयोग आन्दोलन को खिलाफत के साथ मिलाने से भारतीय हिन्दू व मुस्लिम समुदाय दोनों मिलकर ब्रिटिश शासन का अन्त कर देंगे। इन आन्दोलनों ने निश्चय ही राष्ट्रीय आन्दोलन को एक व्यापक जन आन्दोलन का रूप दे दिया।
चौरी-चौरा की घटना और असहयोग आंदोलन स्थगित होना : –
🔹 5 फरवरी 1922 ई० को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा गांव में कांग्रेस का एक जुलूस निकाला गया। पुलिस ने जुलूस को रोका। लेकिन उत्तेजित भीड़ ने उनको थाने के अंदर खदेड़ दिया।
🔹 जुलूस ने थाने में आग लगा दी। इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। असहयोग आन्दोलन के हिंसक हो जाने के कारण गाँधीजी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। आन्दोलन के दौरान हजारों आन्दोलनकारियों को जेलों में डाल दिया गया। गाँधीजी को भी मार्च, 1922 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 वर्ष की सजा दी गई।
महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया ?
🔹 महात्मा गाँधी ने अन्य नेताओं की तरह पश्चिमी परिधान नहीं अपनाया। बल्कि वे भारत की आम जनता द्वारा पहने जाने वाले परिधान पहनते थे क्योंकि वे जानते थे, कि यदि सामान्य लोगों के बीच पहुँच बनानी है तो उनका परिधान भी सामान्य लोगों जैसा होना चाहिए।
🔹 महात्मा गाँधी जनता के बीच उनके जैसी ही भाषा बोलते थे, जिससे वे उनकी बात को समझ सके तथा उनके साथ आत्मीयता का संबंध स्थापित कर सके। गाँधी जी आम लोगों के समान प्रतिदिन चरखा कातते थे। जिससे आम लोग ये समझ सके कि गाँधी जी कोई बड़े या विशेष व्यक्ति नहीं है बल्कि उनमें से ही एक हैं। गाँधी जी ना केवल उनके जैसा दिखते थे बल्कि वे उनको समझते भी थे।
राष्ट्रवाद का प्रसार : –
🔹 भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नई शाखाएँ स्थापित की गईं। रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धान्त को बढ़ावा देने हेतु ‘प्रजा मण्डलों’ की एक श्रृंखला स्थापित की गई। गाँधीजी ने राष्ट्रवादी संदेश का संचार मातृभाषा में ही करने को प्रोत्साहित किया। इस तरह देश के सुदूर भागों तक राष्ट्रवाद का प्रसार हुआ तथा अब तक इससे अछूते रहे सामाजिक वर्ग भी इसमें शामिल हो गए।
🔹 कांग्रेस में अमीर वर्ग, उद्योगपति व व्यापारी वर्ग भी शामिल थे। गाँधीजी सोचते थे कि भारत के स्वतन्त्र होने पर अंग्रेजों ने भारतीयों का जो शोषण किया है, वह भी समाप्त हो जायेगा ।
🔹 1917 से 1922 ई. के मध्य भारतीय नेताओं के एक प्रभावशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधीजी से जोड़ लिया। इनमें मुख्य रूप से सुभाषचन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, सरोजनी नायडू, गोविन्द वल्लभ पंत, सी. राजगोपालाचारी, जे. बी. कृपलानी आदि थे।
गाँधी जी की कारागार से रिहाई : –
🔹 फरवरी 1924 में कारागार से रिहा होने पर गाँधीजी ने स्वयं का ध्यान खादी को बढ़ावा देने एवं छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने पर लगाया।
🔹 उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के मध्य भाईचारे पर बल दिया तथा विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने पर जोर दिया।
साइमन कमीशन : –
🔹 1928 ई० के आरंभ में सात सदस्यों का एक कमीशन भारत आया। इसका अध्यक्ष इंग्लैंड का प्रसिद्ध वकील जॉन साइमन था और इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। क्योंकि इस आयोग में एक भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था । इसलिए कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा अन्य सभी राजनीतिक दलों ने निराशा प्रकट की। उन्होंने इसमें अपने राष्ट्र का अपमान समझा और इस गोरे कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय किया।
भारत में साइमन कमीशन का विरोध : –
🔹 साइमन कमीशन का देश के लगभग सभी नगरों में हड़तालों, काली झंडियों तथा साइमन वापस जाओ के नारों से विरोध किया गया। इस प्रबल विरोध के होते हुए भी इस कमीशन ने कुछ सरकारी पिठ्ठुओं की सहायता से भारतवर्ष का दौरा आरंभ किया।
🔹 अपने दौरे के दौरान जब साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा तो वहाँ के लोगों ने लाला राजपत राय के नेतृत्व में एक भारी जुलूस निकाला। लालाजी पर एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स ने लाठियों से प्रहार करके उनको बुरी तरह घायल कर दिया और कुछ ही दिनों के बाद उनका स्वर्गवास हो गया।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव : –
🔹 1929 में दिसंबर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर शहर में किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था :
- जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था;
- और ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा ।
🔹 26 जनवरी, 1930 को देशभर में पहली बार विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत गाकर स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लाहौर अधिवेशन का महत्व : –
🔹 लाहौर अधिवेशन का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में ऐतिहासिक महान है :
- पं. जवाहर लाल नेहरू का अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में चुनाव युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था ।
- इस अधिवेशन में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया गया।
- कांग्रेस ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया ।
- 26 जनवरी को प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
नमक सत्याग्रह (दांडी) : –
🔹 गाँधीजी ने स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरन्त बाद नमक कानून को तोड़ने की घोषणा की। इस कानून के तहत राज्य का नमक के उत्पादन तथा विक्रय पर एकाधिकार था। हालाँकि नमक पर राज्य का एकाधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था । गाँधीजी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को अपनी ‘नमक यात्रा’ की पूर्व सूचना दे दी थी, किन्तु वह उनकी इस कार्रवाही के महत्त्व को नहीं समझ सका ।
दाण्डी यात्रा : –
🔹 ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया नमक कानून एक घृणित कानून था जिसको भंग करने के लिए 12 मार्च, 1930 को गाँधी जी ने अपने 75 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दाण्डी की ओर चलना प्रारम्भ किया। तीन सप्ताह के पश्चात् वे दाण्डी पहुँचे वहाँ उन्होंने मुट्ठी भर नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा। नमक सत्याग्रह के मामले में गाँधीजी सहित लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
🔹 गाँधीजी ने स्थानीय अधिकारियों से दाण्डी यात्रा के दौरान आह्वान किया था कि वे अपनी सरकारी नौकरियों को छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ।
दाण्डी यात्रा का महत्व : –
🔹 गाँधीजी की दाण्डी यात्रा कम-से-कम तीन कारणों से महत्त्वपूर्ण थी-
- दाण्डी यात्रा के कारण गाँधीजी दुनिया की नजर में आये। इस यात्रा के समाचारों को यूरोप व अमेरिकी प्रेसों ने व्यापक रूप से प्रकाशित किया।
- दाण्डी यात्रा प्रथम राष्ट्रवादी घटना थी, जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
- इस यात्रा के कारण अंग्रेजों को यह आभास हो गया था कि उनके दिन लद गए। अब वे ज्यादा दिन तक भारत पर राज नहीं कर पायेंगे।
1930 में गाँधी जी द्वारा चलाए गए नमक आंदोलन के कारण : –
- प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य ।
- भारतीयों को नमक कानून के तहत घरेलू प्रयोग के लिए नमक बनाने पर रोक ।
- भारतीय दुकानों से अधिक मूल्य पर नमक खरीदने को बाध्य ।
- नमक उत्पादन और विक्रय पर राज्य का एकाधिकार ।
- अंग्रेज सरकार द्वारा लाभ पर न बिकने वाला नमक नष्ट किया जाना ।
- प्रकृति द्वारा बिना श्रम के उत्पादित नमक को नष्ट करना ।
- बहुमूल्य राष्ट्रीय संपदा को राष्ट्रीय खर्चे से नष्ट करना ।
- उपर्युक्त कारणों से गाँधी जी द्वारा नमक एकाधार के मुद्दे का चयन ।
- नमक कानून आम जनता में बेहद अलोकप्रिय ।
- इस असंतोष का गाँधीजी ने शासन के खिलाफ सांघातित किया ।
1930 में गाँधी जी द्वारा चलाए गए नमक आंदोलन के परिणाम : –
- महात्मा गाँधी दुनिया की नजर में आए।
- अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम ने गाँधीजी का “तकुए जैसे शरीर और मकड़ी जैसे पेडू” शब्दों से मजाक बनाया।
- दाण्डी यात्रा के पश्चात् इस पत्रिका की सोच में बदलाव ।
- गाँधीजी को मिला जनसमर्थन देख हैरत में ।
- गाँधीजी एक ऐसे राजनेता जो “ईसाई धर्मावलंबियों के खिलाफ ईसाई तरीकों का ही हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।”
- इस यात्रा का यूरोप और अमेरिकी प्रेस द्वारा व्यापक कवरेज ।
- पहली राष्ट्रवादी गतिविधि जिसमें औरतों की भागीदारी ।
- अंग्रेजी हुकूमत को आन्दोलन की व्यापकता का अहसास होना ।
- उनका राज बहुत दिन तक कायम नहीं ।
- भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना निश्चित ।
पहला गोलमेज सम्मेलन : –
🔹 पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लन्दन में आयोजित हुआ, जिसमें देशभर के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए थे। इसी कारण यह सम्मेलन असफल हो गया।
गाँधी-इरविन समझौते : –
🔹 जनवरी 1931 में गाँधीजी जेल से रिहा हुए जिसके बाद फरवरी 1931 में गाँधी और वायसराय इरविन के बीच कई लम्बी बैठकें हुई जिनके बाद ‘गाँधी-इरविन समझौते’ पर सहमति बनी। समझौते की शर्तों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना, सभी कैदियों को रिहा करना तथा तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति प्रदान करना शामिल था।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन : –
🔹 1931 ई. में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन भी लन्दन में किया गया जिसमें गाँधीजी द्वारा कांग्रेस का नेतृत्व किया गया। गाँधीजी ने कहा था कि उनकी पार्टी सम्पूर्ण भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है, परन्तु दूसरे पक्षों ने उनके इन दावों का खण्डन किया। इस सम्मेलन का कोई भी परिणाम नहीं निकला इसीलिए लन्दन से लौटने पर गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया।
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट : –
🔹 सन् 1935 ई. में नया गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ जिसमें सीमित प्रतिनिधि शासन व्यवस्था का आश्वासन दिया गया। 1937 ई. में सीमित मताधिकार के आधार पर चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली। 11 में से 8 प्रान्तों में कांग्रेस के प्रधानमन्त्री सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देखरेख में काम करते थे।
द्वितीय विश्व युद्ध ओर भारत : –
🔹 सितम्बर 1939 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। इस दौरान गाँधीजी और नेहरू ने फैसला किया कि अगर अंग्रेज युद्ध खत्म होने के बाद भारत को आजाद कर दें तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में मदद कर सकती है। उनके इस प्रस्ताव को सरकार ने खारिज कर दिया जिसके विरोध में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने अक्टूबर 1939 ई. में इस्तीफा दे दिया।
मुस्लिम लीग का प्रस्ताव : –
🔹 मार्च 1940 ई. में मुस्लिम लीग द्वारा ‘पाकिस्तान’ नाम से एक पृथक राष्ट्र की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया और इसे अपना लक्ष्य घोषित कर दिया। इससे राजनीतिक स्थिति बहुत अधिक जटिल हो गई।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन : –
🔸 सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रथम चरण : –
- साईमन कमीशन का गठन ।
- अधिराज्य की मांग की विफलता ।
- सामाजिक क्रांतिकारियों को कारावास देने के विरुद्ध ।
- आन्दोलन गाँधी जी की दाण्डी यात्रा से प्रारम्भ ।
- गाँधी जी ने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा और जेल गये।
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नमक उत्पादन किया गया ।
- यह अंग्रेजी सरकार के खिलाफ असहयोग का एक प्रतीक बन गया।
- लाहौर के वार्षिक अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की।
🔸 सविनय अवज्ञा आन्दोलन की विशेषता : –
- पहला राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, अन्य आन्दोलन शहरों तक सीमित ।
- ग्रामीण इलाकों के लोगों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की।
- महिलाओं ने बड़ी संख्या में प्रथम बार भाग लिया।
🔸 सविनय अवज्ञा आन्दोलन का दूसरा चरण : –
- गाँधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से भारत वापस आए।
- दूसरा गोलमेज सम्मेलन भारतीयों की दृष्टि से विफल ।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन का यह चरण 1934 तक रहा।
- सभी उच्च कांग्रेस लीडर्स को जेल भेज दिया गया ।
- गाँधी जी ने 1942 में अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन भारत छोड़ो छेड़ा।
- यह आन्दोलन युवा कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया गया।
- उन्होंने देश भर में हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्यवाही की ।
- उन्होंने कॉलेज छोड़ जेल का रास्ता अपनाया।
- इन्हीं सालों में मुस्लिम लीग ने पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाई ।
भारत छोड़ो आन्दोलन ( भारत को ब्रिटिश दासता से स्वतंत्रता : –
🔹 यह आन्दोलन अगस्त, 1942 में प्रारम्भ हुआ. जिसे ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का नाम दिया गया। यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा जन आन्दोलन था, जिसमें लाखों भारतीय शामिल थे जिनमें युवा वर्ग की संख्या बहुतायत में थी, परन्तु गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
🔹 जून 1944 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर था तो गाँधीजी को कारागार से रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के तुरन्त बाद गाँधीजी ने कांग्रेस व मुस्लिम लीग के मध्य की खाई को पाटने के लिए जिन्ना से लगातार वार्ता की। 1945 ई. में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी जो भारत को स्वतन्त्र करने के पक्ष में थी। इस दौरान वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के मध्य कई बैठकें आयोजित की।
🔹 1946 ई. में कैबिनेट मिशन भारत आया जिसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर सहमत करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रान्तों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। कैबिनेट मिशन का यह प्रयास विफल रहा।
🔹 मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया जिसके लिए 16 अगस्त, 1946 का दिन तय हुआ। इसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष प्रारम्भ हुआ। ये हिन्दू-मुस्लिम दंगे बिहार, संयुक्त प्रान्त तथा पंजाब तक फैल गए।
🔹 फरवरी, 1947 ई. में वावेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय बने जिन्होंने घोषणा की कि भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन भारत व पाकिस्तान के रूप में उसका विभाजन भी होगा।
🔹 15 अगस्त को भारत को ब्रिटिश दासता से स्वतन्त्र कर दिया गया तथा दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि से संबोधित किया।
देश का विभाजन और गाँधीजी की हत्या : –
🔹 गाँधीजी ने जीवनभर स्वतन्त्र और अखण्ड भारत के लिए युद्ध लड़ा फिर भी जब देश का भारत व पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो गया तो उनकी यही इच्छा थी कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ सम्मानजनक व मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखें।
🔹 कुछ भारतीयों को उनका यह आचरण पसन्द नहीं आया और 30 जनवरी, 1948 की शाम को गाँधीजी की दैनिक प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
🔹 एक समय में गाँधीजी की कद-काठी एवं कथित रूप से बेतुके विचारों के लिए आलोचना करने वाली ‘टाइम्स पत्रिका’ ने उनके बलिदान की तुलना अब्राहम लिंकन के बलिदान से की।
भारत छोड़ो आंदोलन को स्वतः स्फूर्त आंदोलन क्यों : –
- 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया ।
- क्रिप्स मिशन के साथ कांग्रेस की वार्ता विफल रही।
- गाँधी जी का तीसरा बड़ा आन्दोलन अगस्त 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ ।
- आन्दोलन के शुरू होते ही गाँधी जी गिरफतार ।
- देश भर के युवा कार्यकर्ताओं द्वारा आन्दोलन जारी।
- कांग्रेस के समाजवादी सदस्य जय प्रकाश नारायण भूमिगत प्रतिरोध गतिविधियों में सक्रिय ।
- पश्चिम में सतारा व पूर्व में मेदिनीपुर जिलों में “स्वतंत्र सरकार की स्थापना ।
- एक जन आन्दोलन – हजारों आम हिन्दुस्तानी शामिल ।
- युवाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी ।
- सभी बड़े नेताओं के जेल में होने से आन्दोलन अगुआरहित । जनमानस द्वारा आन्दोलन चलाया गया ।
🔹 मूलतः स्वतः स्फूर्ति पूरक बना।
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