महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन Notes: Class 12 history chapter 13 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 13 |
Chapter Name | महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 history chapter 13 notes in hindi, महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन notes इस अध्याय मे हम स्वदेशी आन्दोलन , चम्पारण किसान आंदोलन , खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन , रौलेट एक्ट , भारत छोड़ो आंदोलन तथा उसे जुड़ी विषयो पर चर्चा करेेंगे ।
राष्ट्र-निर्माण का श्रेय : –
🔹 राष्ट्रवाद के इतिहास में मुख्य रूप से एक ही व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण का श्रेय दिया जाता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध जॉर्ज वाशिंगटन, इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी तथा वियतनाम को मुक्त कराने के संघर्ष के साथ हो ची मिन्ह का नाम जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता माने जाते हैं।
उग्रपंथी : –
🔹 उग्रपंथी वे राष्ट्रवादी नेता जो अंग्रेजों को हर प्रकार से जवाब देना चाहते थे। इनमें मुख्य नाम हैं- बाल गंगाधर तिलक, अरविन्द घोष, विपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय इत्यादि ।
स्वशासन : –
🔹 स्वशासन अपने समस्त कार्यों की व्यवस्था स्वयं करने का पूर्ण अधिकार अथवा अपने अधिक्षेत्र में शासन व राजनीतिक प्रबन्ध आदि स्वयं करने का पूर्ण अधिकार ।
स्वराज्य : –
🔹 स्वराज्य वह शासन प्रणाली जिसमें किसी देश के निवासी अपने देश का समस्त शासन एवं प्रबन्ध स्वयं करें तथा बिना किसी विदेशी शक्ति के दबाव के निवास करते हों ।
समाजवाद : –
🔹 समाजवाद वह सिद्धान्त जिसमें यह माना जाता है कि समाज के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ी हुई विषमता को दूर करके समता स्थापित की जानी चाहिए।
महात्मा गाँधी : –
🔹 हम जानते है कि गाँधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था । गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था । इनके पिता का नाम करमचंद्र गाँधी और माता का नाम पुतली बाई था। ये बचपन में ही शर्मीले स्वभाव के थे। इनके बचपन का नाम मनु था । इनका अल्प आयु (13 वर्ष) में कस्तूरबा से विवाह करा दिया जाता है ।
गाँधी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है?
🔹 महात्मा गाँधी भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सबसे अग्रगण्य, सर्वाधिक प्रभावशाली व सम्मान योग्य व्यक्तित्व थे इसीलिए उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है।
गांधी जी और दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह : –
🔹 दक्षिण अफ्रीका में 20 वर्ष बिताने के बाद जनवरी 1915 ई. में भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में वे एक वकील के रूप में गए थे और बाद में वे इस क्षेत्र में निवास करने वाले भारतीयों के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए।
🔹 दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने सर्वप्रथम अहिंसात्मक विरोध के विशेष तरीके का प्रयोग किया । दक्षिण अफ्रीका में ही महात्मा गाँधी ने पहली बार अहिंसात्मक विरोध की विशिष्ट तकनीक “सत्याग्रह” का इस्तेमाल किया। सत्याग्रह अर्थात् सत्य के लिए आग्रह । जिसमें विभिन्न धर्मो के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जाति भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के लिए चेतावनी दी। इसलिए चन्द्रन देवनेसन ने कहा है, दक्षिण अफ्रीका ने गांधी जी को महात्मा बनाया।
स्वदेशी आन्दोलन (1905-07) : –
🔹 भारत मे स्वदेशी आन्दोलन 1905 से 1907 तक चला । 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से इसने व्यापक रूप से मध्य वर्गों के बीच अपनी अपील का विस्तार कर लिया था। इस आंदोलन ने कुछ प्रमुख नेताओं को जन्म दिया।
🔹 इस आंदोलन के प्रमुख नेता : –
- बाल गंगाधर तिलक (महाराष्ट्र )
- विपिन चन्द्र पाल ( बंगाल )
- लाला लाजपत राय ( पंजाब )
🔹 इन्ही को लाल, बाल, पाल के नाम से भी जाना गया है । इन नेताओं ने जहाँ औपनिवेशिक शासन के प्रति लड़ाकू विरोध का समर्थन किया वहीं ‘उदारवादियों’ का एक समूह था जो एक क्रमिक व लगातार प्रयास करते रहने के विचार का हिमायती था ।
🔹 उदारवादियों में गाँधीजी के मान्य राजनीतिक सलाहकार (राजनीतिक गुरु ) गोपालकृष्ण गोखले तथा मोहम्मद अली जिन्ना शामिल थे।
गांधी जी का भारत आगमन : –
🔹 9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में सत्यग्रह का सफल प्रयोग करने के पश्चात भारत वापस आए । 1915 में जब महात्मा गाँधी भारत आए तो उस समय का भारत 1893 में जब वे यहाँ से गए थे तब के समय से अपेक्षाकृत भिन्न था। यद्यपि यह अभी भी एक ब्रिटिश उपनिवेश था लेकिन अब यह राजनीतिक दृष्टि से कहीं अधिक सक्रिय हो गया था। अधिकांश प्रमुख शहरों और कस्बों में अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएँ थीं।
🔹 उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया और भारतीय राजनीति के अध्ययन के लिए सारे देश का भ्रमण किया । गोखले ने गाँधी जी को एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा करने की सलाह दी जिससे कि वे इस भूमि और इसके लोगों को जान सकें।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU : –
🔹 गाँधीजी की प्रथम महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दर्ज हुई। गाँधीजी को यहाँ पर दक्षिण अफ्रीका में उनके द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर आमंत्रित किया गया था।
🔹 बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना एक उत्सव का अवसर था क्योंकि यह भारतीय धन और भारतीय प्रयासों से संभव एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय की स्थापना का द्योतक था।
🔹 उन्होंने यहाँ पर भारतीय विशिष्ट वर्ग को गरीब मजदूर वर्ग की ओर ध्यान न देने के कारण आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना ‘निश्चय ही’ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, परन्तु गाँधीजी ने वहाँ उपस्थित धनी व सजे-सँवरे लोगों की उपस्थिति और ‘लाखों गरीब’ भारतीयों की अनुपस्थिति पर अपनी चिन्ता प्रकट की।
गाँधी जी द्वारा दिए गए भाषण का उद्देश्य : –
🔹 दिसम्बर 1916 ई. में गाँधीजी ने अपने वास्तविक मंतव्य को भाषण के जरिये उजागर कर दिया। इसका प्रमुखतः कारण यह था कि भारतीय राष्ट्रवाद डॉक्टर, वकीलों और जमींदारों जैसे विशिष्ट वर्ग का ही प्रतिनिधित्व करता था, परन्तु इस भाषण से गाँधीजी की इच्छा व्यक्त हो गई क्योंकि गाँधीजी ने यह निश्चय किया था कि भारतीय राष्ट्रवाद को सम्पूर्ण लोगों तक पहुँचाया जाये ।
गाँधी जी किसानो के लिए एक राष्ट्रवादी के रूप : –
🔹 दिसम्बर 1916 में लखनऊ में आयोजित की गई वार्षिक कांग्रेस में गाँधीजी को चंपारन (बिहार) से आए एक किसान ने वहाँ अंग्रेजों द्वारा नील उत्पादन के लिए किसानों के साथ किए जाने वाले कठोर व्यवहार के विषय में बताया।
🔹 1917 ई. का अधिकांश समय गाँधीजी का किसानों को काश्तकारी की सुरक्षा तथा अपनी पसंदीदा फसल उगाने की स्वतंत्रता दिलाने में व्यतीत हुआ ।
🔹 1918 ई. में गाँधीजी ने अपने गृह राज्य (गुजरात) में दो अभियानों में भाग लिया। अहमदाबाद के एक श्रम विवाद में उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए कपड़े की मिलों में कार्यरत लोगों की बेहतर स्थितियों की माँग की, जबकि खेड़ा में फसल बर्बाद होने पर उन्होंने राज्य सरकार से किसानों का लगान माफ करने की माँग की।
🔹 चंपारन, अहमदाबाद व खेड़ा में की गई पहल ने गाँधीजी को एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में ला खड़ा किया जो गरीबों के प्रति गहरी भावनाएँ व सहानुभूति रखता है।
रोलेट एक्ट : –
🔹 1914-18 के युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन उपायों को जारी रखा। ब्रिटिश सरकार ने इस अभियान को रॉलेट-एक्ट नाम दिया। रोलेट-एक्ट के कारण प्रांत की स्थिति तनावपूर्ण हो गई।
रौलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह : –
🔹 गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारम्भ किया जिसने गाँधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभार दिया। इस सफलता से प्रोत्साहित होकर गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक बड़ा आन्दोलन करने का निश्चय किया।
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड : –
🔹 रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह के दौरान जनरल डायर ने अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को हो रही एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस हत्याकाण्ड में 400 से भी अधिक लोग मारे गए।
घटनाएं जिनसे गाँधी जी को एक राष्ट्रवादी एवं सच्चे राष्ट्रीय नेता की छवि मिली : –
🔹 चंपारन, अहमदाबाद एवं खेड़ा के आन्दोलनों ने गाँधी जी को एक ऐसे राष्ट्रवादी नेता की छवि प्रदान की जिनके मन में गरीबों के लिए गहरी सहानुभूति थी ।
🔹 रोलेट एक्ट के खिलाफ अभियान ने गाँधी जी को एक अच्छा राष्ट्रीय नेता बनाया ।
असहयोग आन्दोलन : –
🔹 रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह की सफलता से उत्साहित होकर गाँधीजी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन की माँग कर दी। जो भारतीय उपनिवेशवाद का खात्मा करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएँ तथा कर न चुकाएँ । संक्षेप में सभी को अंग्रेज़ी सरकार के साथ (सभी) ऐच्छिक संबंधों के परित्याग का पालन करने को कहा गया। गाँधी जी ने कहा कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।
🔸 असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम निम्न थे : –
- विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया।
- वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया।
- कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया।
- सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था।
- देहात भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था।
- उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी।
- अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए ।
- कुमाऊँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया।
खिलाफ़त आंदोलन : –
🔹 खिलाफ़त आंदोलन (1919-1920) मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आंदोलन था। इस आंदोलन की निम्नलिखित माँगें थीं : –
- पहले के ऑटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की सुल्तान अथवा खलीफ़ा का नियंत्रण बना रहे,
- जज़ीरात-उल-अरब ( अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन ) इस्लामी सम्प्रभुता के अधीन रहें तथा खलीफ़ा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित करने के योग्य बन सके।
🔹 कांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और गाँधी जी ने इसे असहयोग आंदोलन के साथ मिलाने की कोशिश की।
असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन का मिलना : –
🔹 गाँधी जी ने अपने संघर्ष का विस्तार करते हुए खिलाफत आन्दोलन को भी अपने साथ असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित कर लिया। गाँधीजी को यह पूर्ण विश्वास था कि असहयोग आन्दोलन को खिलाफत के साथ मिलाने से भारतीय हिन्दू व मुस्लिम समुदाय दोनों मिलकर ब्रिटिश शासन का अन्त कर देंगे। इन आन्दोलनों ने निश्चय ही राष्ट्रीय आन्दोलन को एक व्यापक जन आन्दोलन का रूप दे दिया।
चौरी-चौरा की घटना और असहयोग आंदोलन स्थगित होना : –
🔹 5 फरवरी 1922 ई० को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा गांव में कांग्रेस का एक जुलूस निकाला गया। पुलिस ने जुलूस को रोका। लेकिन उत्तेजित भीड़ ने उनको थाने के अंदर खदेड़ दिया।
🔹 जुलूस ने थाने में आग लगा दी। इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। असहयोग आन्दोलन के हिंसक हो जाने के कारण गाँधीजी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। आन्दोलन के दौरान हजारों आन्दोलनकारियों को जेलों में डाल दिया गया। गाँधीजी को भी मार्च, 1922 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 वर्ष की सजा दी गई।
महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया ?
🔹 महात्मा गाँधी ने अन्य नेताओं की तरह पश्चिमी परिधान नहीं अपनाया। बल्कि वे भारत की आम जनता द्वारा पहने जाने वाले परिधान पहनते थे क्योंकि वे जानते थे, कि यदि सामान्य लोगों के बीच पहुँच बनानी है तो उनका परिधान भी सामान्य लोगों जैसा होना चाहिए।
🔹 महात्मा गाँधी जनता के बीच उनके जैसी ही भाषा बोलते थे, जिससे वे उनकी बात को समझ सके तथा उनके साथ आत्मीयता का संबंध स्थापित कर सके। गाँधी जी आम लोगों के समान प्रतिदिन चरखा कातते थे। जिससे आम लोग ये समझ सके कि गाँधी जी कोई बड़े या विशेष व्यक्ति नहीं है बल्कि उनमें से ही एक हैं। गाँधी जी ना केवल उनके जैसा दिखते थे बल्कि वे उनको समझते भी थे।