राष्ट्रवाद का प्रसार : –
🔹 भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नई शाखाएँ स्थापित की गईं। रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धान्त को बढ़ावा देने हेतु ‘प्रजा मण्डलों’ की एक श्रृंखला स्थापित की गई। गाँधीजी ने राष्ट्रवादी संदेश का संचार मातृभाषा में ही करने को प्रोत्साहित किया। इस तरह देश के सुदूर भागों तक राष्ट्रवाद का प्रसार हुआ तथा अब तक इससे अछूते रहे सामाजिक वर्ग भी इसमें शामिल हो गए।
🔹 कांग्रेस में अमीर वर्ग, उद्योगपति व व्यापारी वर्ग भी शामिल थे। गाँधीजी सोचते थे कि भारत के स्वतन्त्र होने पर अंग्रेजों ने भारतीयों का जो शोषण किया है, वह भी समाप्त हो जायेगा ।
🔹 1917 से 1922 ई. के मध्य भारतीय नेताओं के एक प्रभावशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधीजी से जोड़ लिया। इनमें मुख्य रूप से सुभाषचन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, सरोजनी नायडू, गोविन्द वल्लभ पंत, सी. राजगोपालाचारी, जे. बी. कृपलानी आदि थे।
गाँधी जी की कारागार से रिहाई : –
🔹 फरवरी 1924 में कारागार से रिहा होने पर गाँधीजी ने स्वयं का ध्यान खादी को बढ़ावा देने एवं छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने पर लगाया।
🔹 उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के मध्य भाईचारे पर बल दिया तथा विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने पर जोर दिया।
साइमन कमीशन : –
🔹 1928 ई० के आरंभ में सात सदस्यों का एक कमीशन भारत आया। इसका अध्यक्ष इंग्लैंड का प्रसिद्ध वकील जॉन साइमन था और इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। क्योंकि इस आयोग में एक भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था । इसलिए कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा अन्य सभी राजनीतिक दलों ने निराशा प्रकट की। उन्होंने इसमें अपने राष्ट्र का अपमान समझा और इस गोरे कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय किया।
भारत में साइमन कमीशन का विरोध : –
🔹 साइमन कमीशन का देश के लगभग सभी नगरों में हड़तालों, काली झंडियों तथा साइमन वापस जाओ के नारों से विरोध किया गया। इस प्रबल विरोध के होते हुए भी इस कमीशन ने कुछ सरकारी पिठ्ठुओं की सहायता से भारतवर्ष का दौरा आरंभ किया।
🔹 अपने दौरे के दौरान जब साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा तो वहाँ के लोगों ने लाला राजपत राय के नेतृत्व में एक भारी जुलूस निकाला। लालाजी पर एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स ने लाठियों से प्रहार करके उनको बुरी तरह घायल कर दिया और कुछ ही दिनों के बाद उनका स्वर्गवास हो गया।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव : –
🔹 1929 में दिसंबर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर शहर में किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था :
- जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था;
- और ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा ।
🔹 26 जनवरी, 1930 को देशभर में पहली बार विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत गाकर स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लाहौर अधिवेशन का महत्व : –
🔹 लाहौर अधिवेशन का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में ऐतिहासिक महान है :
- पं. जवाहर लाल नेहरू का अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में चुनाव युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था ।
- इस अधिवेशन में पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया गया।
- कांग्रेस ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया ।
- 26 जनवरी को प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
नमक सत्याग्रह (दांडी) : –
🔹 गाँधीजी ने स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरन्त बाद नमक कानून को तोड़ने की घोषणा की। इस कानून के तहत राज्य का नमक के उत्पादन तथा विक्रय पर एकाधिकार था। हालाँकि नमक पर राज्य का एकाधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था । गाँधीजी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को अपनी ‘नमक यात्रा’ की पूर्व सूचना दे दी थी, किन्तु वह उनकी इस कार्रवाही के महत्त्व को नहीं समझ सका ।
दाण्डी यात्रा : –
🔹 ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया नमक कानून एक घृणित कानून था जिसको भंग करने के लिए 12 मार्च, 1930 को गाँधी जी ने अपने 75 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दाण्डी की ओर चलना प्रारम्भ किया। तीन सप्ताह के पश्चात् वे दाण्डी पहुँचे वहाँ उन्होंने मुट्ठी भर नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा। नमक सत्याग्रह के मामले में गाँधीजी सहित लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
🔹 गाँधीजी ने स्थानीय अधिकारियों से दाण्डी यात्रा के दौरान आह्वान किया था कि वे अपनी सरकारी नौकरियों को छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ।
दाण्डी यात्रा का महत्व : –
🔹 गाँधीजी की दाण्डी यात्रा कम-से-कम तीन कारणों से महत्त्वपूर्ण थी-
- दाण्डी यात्रा के कारण गाँधीजी दुनिया की नजर में आये। इस यात्रा के समाचारों को यूरोप व अमेरिकी प्रेसों ने व्यापक रूप से प्रकाशित किया।
- दाण्डी यात्रा प्रथम राष्ट्रवादी घटना थी, जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
- इस यात्रा के कारण अंग्रेजों को यह आभास हो गया था कि उनके दिन लद गए। अब वे ज्यादा दिन तक भारत पर राज नहीं कर पायेंगे।
1930 में गाँधी जी द्वारा चलाए गए नमक आंदोलन के कारण : –
- प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य ।
- भारतीयों को नमक कानून के तहत घरेलू प्रयोग के लिए नमक बनाने पर रोक ।
- भारतीय दुकानों से अधिक मूल्य पर नमक खरीदने को बाध्य ।
- नमक उत्पादन और विक्रय पर राज्य का एकाधिकार ।
- अंग्रेज सरकार द्वारा लाभ पर न बिकने वाला नमक नष्ट किया जाना ।
- प्रकृति द्वारा बिना श्रम के उत्पादित नमक को नष्ट करना ।
- बहुमूल्य राष्ट्रीय संपदा को राष्ट्रीय खर्चे से नष्ट करना ।
- उपर्युक्त कारणों से गाँधी जी द्वारा नमक एकाधार के मुद्दे का चयन ।
- नमक कानून आम जनता में बेहद अलोकप्रिय ।
- इस असंतोष का गाँधीजी ने शासन के खिलाफ सांघातित किया ।
1930 में गाँधी जी द्वारा चलाए गए नमक आंदोलन के परिणाम : –
- महात्मा गाँधी दुनिया की नजर में आए।
- अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम ने गाँधीजी का “तकुए जैसे शरीर और मकड़ी जैसे पेडू” शब्दों से मजाक बनाया।
- दाण्डी यात्रा के पश्चात् इस पत्रिका की सोच में बदलाव ।
- गाँधीजी को मिला जनसमर्थन देख हैरत में ।
- गाँधीजी एक ऐसे राजनेता जो “ईसाई धर्मावलंबियों के खिलाफ ईसाई तरीकों का ही हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।”
- इस यात्रा का यूरोप और अमेरिकी प्रेस द्वारा व्यापक कवरेज ।
- पहली राष्ट्रवादी गतिविधि जिसमें औरतों की भागीदारी ।
- अंग्रेजी हुकूमत को आन्दोलन की व्यापकता का अहसास होना ।
- उनका राज बहुत दिन तक कायम नहीं ।
- भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना निश्चित ।
पहला गोलमेज सम्मेलन : –
🔹 पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लन्दन में आयोजित हुआ, जिसमें देशभर के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए थे। इसी कारण यह सम्मेलन असफल हो गया।
गाँधी-इरविन समझौते : –
🔹 जनवरी 1931 में गाँधीजी जेल से रिहा हुए जिसके बाद फरवरी 1931 में गाँधी और वायसराय इरविन के बीच कई लम्बी बैठकें हुई जिनके बाद ‘गाँधी-इरविन समझौते’ पर सहमति बनी। समझौते की शर्तों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना, सभी कैदियों को रिहा करना तथा तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति प्रदान करना शामिल था।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन : –
🔹 1931 ई. में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन भी लन्दन में किया गया जिसमें गाँधीजी द्वारा कांग्रेस का नेतृत्व किया गया। गाँधीजी ने कहा था कि उनकी पार्टी सम्पूर्ण भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है, परन्तु दूसरे पक्षों ने उनके इन दावों का खण्डन किया। इस सम्मेलन का कोई भी परिणाम नहीं निकला इसीलिए लन्दन से लौटने पर गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया।
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट : –
🔹 सन् 1935 ई. में नया गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ जिसमें सीमित प्रतिनिधि शासन व्यवस्था का आश्वासन दिया गया। 1937 ई. में सीमित मताधिकार के आधार पर चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली। 11 में से 8 प्रान्तों में कांग्रेस के प्रधानमन्त्री सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देखरेख में काम करते थे।
द्वितीय विश्व युद्ध ओर भारत : –
🔹 सितम्बर 1939 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। इस दौरान गाँधीजी और नेहरू ने फैसला किया कि अगर अंग्रेज युद्ध खत्म होने के बाद भारत को आजाद कर दें तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में मदद कर सकती है। उनके इस प्रस्ताव को सरकार ने खारिज कर दिया जिसके विरोध में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने अक्टूबर 1939 ई. में इस्तीफा दे दिया।
मुस्लिम लीग का प्रस्ताव : –
🔹 मार्च 1940 ई. में मुस्लिम लीग द्वारा ‘पाकिस्तान’ नाम से एक पृथक राष्ट्र की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया और इसे अपना लक्ष्य घोषित कर दिया। इससे राजनीतिक स्थिति बहुत अधिक जटिल हो गई।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन : –
🔸 सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रथम चरण : –
- साईमन कमीशन का गठन ।
- अधिराज्य की मांग की विफलता ।
- सामाजिक क्रांतिकारियों को कारावास देने के विरुद्ध ।
- आन्दोलन गाँधी जी की दाण्डी यात्रा से प्रारम्भ ।
- गाँधी जी ने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा और जेल गये।
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नमक उत्पादन किया गया ।
- यह अंग्रेजी सरकार के खिलाफ असहयोग का एक प्रतीक बन गया।
- लाहौर के वार्षिक अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की।
🔸 सविनय अवज्ञा आन्दोलन की विशेषता : –
- पहला राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, अन्य आन्दोलन शहरों तक सीमित ।
- ग्रामीण इलाकों के लोगों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की।
- महिलाओं ने बड़ी संख्या में प्रथम बार भाग लिया।
🔸 सविनय अवज्ञा आन्दोलन का दूसरा चरण : –
- गाँधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से भारत वापस आए।
- दूसरा गोलमेज सम्मेलन भारतीयों की दृष्टि से विफल ।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन का यह चरण 1934 तक रहा।
- सभी उच्च कांग्रेस लीडर्स को जेल भेज दिया गया ।
- गाँधी जी ने 1942 में अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन भारत छोड़ो छेड़ा।
- यह आन्दोलन युवा कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया गया।
- उन्होंने देश भर में हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्यवाही की ।
- उन्होंने कॉलेज छोड़ जेल का रास्ता अपनाया।
- इन्हीं सालों में मुस्लिम लीग ने पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाई ।
भारत छोड़ो आन्दोलन ( भारत को ब्रिटिश दासता से स्वतंत्रता : –
🔹 यह आन्दोलन अगस्त, 1942 में प्रारम्भ हुआ. जिसे ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का नाम दिया गया। यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा जन आन्दोलन था, जिसमें लाखों भारतीय शामिल थे जिनमें युवा वर्ग की संख्या बहुतायत में थी, परन्तु गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
🔹 जून 1944 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर था तो गाँधीजी को कारागार से रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के तुरन्त बाद गाँधीजी ने कांग्रेस व मुस्लिम लीग के मध्य की खाई को पाटने के लिए जिन्ना से लगातार वार्ता की। 1945 ई. में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी जो भारत को स्वतन्त्र करने के पक्ष में थी। इस दौरान वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के मध्य कई बैठकें आयोजित की।
🔹 1946 ई. में कैबिनेट मिशन भारत आया जिसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर सहमत करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रान्तों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। कैबिनेट मिशन का यह प्रयास विफल रहा।
🔹 मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया जिसके लिए 16 अगस्त, 1946 का दिन तय हुआ। इसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष प्रारम्भ हुआ। ये हिन्दू-मुस्लिम दंगे बिहार, संयुक्त प्रान्त तथा पंजाब तक फैल गए।
🔹 फरवरी, 1947 ई. में वावेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय बने जिन्होंने घोषणा की कि भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन भारत व पाकिस्तान के रूप में उसका विभाजन भी होगा।
🔹 15 अगस्त को भारत को ब्रिटिश दासता से स्वतन्त्र कर दिया गया तथा दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि से संबोधित किया।
देश का विभाजन और गाँधीजी की हत्या : –
🔹 गाँधीजी ने जीवनभर स्वतन्त्र और अखण्ड भारत के लिए युद्ध लड़ा फिर भी जब देश का भारत व पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो गया तो उनकी यही इच्छा थी कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ सम्मानजनक व मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखें।
🔹 कुछ भारतीयों को उनका यह आचरण पसन्द नहीं आया और 30 जनवरी, 1948 की शाम को गाँधीजी की दैनिक प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
🔹 एक समय में गाँधीजी की कद-काठी एवं कथित रूप से बेतुके विचारों के लिए आलोचना करने वाली ‘टाइम्स पत्रिका’ ने उनके बलिदान की तुलना अब्राहम लिंकन के बलिदान से की।
भारत छोड़ो आंदोलन को स्वतः स्फूर्त आंदोलन क्यों : –
- 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया ।
- क्रिप्स मिशन के साथ कांग्रेस की वार्ता विफल रही।
- गाँधी जी का तीसरा बड़ा आन्दोलन अगस्त 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ ।
- आन्दोलन के शुरू होते ही गाँधी जी गिरफतार ।
- देश भर के युवा कार्यकर्ताओं द्वारा आन्दोलन जारी।
- कांग्रेस के समाजवादी सदस्य जय प्रकाश नारायण भूमिगत प्रतिरोध गतिविधियों में सक्रिय ।
- पश्चिम में सतारा व पूर्व में मेदिनीपुर जिलों में “स्वतंत्र सरकार की स्थापना ।
- एक जन आन्दोलन – हजारों आम हिन्दुस्तानी शामिल ।
- युवाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी ।
- सभी बड़े नेताओं के जेल में होने से आन्दोलन अगुआरहित । जनमानस द्वारा आन्दोलन चलाया गया ।
🔹 मूलतः स्वतः स्फूर्ति पूरक बना।
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