समकालीन विश्व में सुरक्षा Notes: Class 12 Political science chapter 7 notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | समकालीन विश्व में सुरक्षा |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
Class 12 political science chapter 7 notes in hindi, समकालीन विश्व में सुरक्षा notes इस अध्याय मे हम सुरक्षा – अर्थ और प्रकार , आतंकवाद के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
सुरक्षा का अर्थ : –
🔹 सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी । परन्तु केवल उन चीजों को ‘ सुरक्षा ‘ से जुड़ी चीजों का विषय बनाया जाय जिनसे जीवन के ‘ केन्द्रीय मूल्यों को खतरा हो ।
🔹 सुरक्षा का अर्थ है मानव जीवन में व्याप्त खतरों को दूर करना ताकि मनुष्य शांतिपूर्ण जीवनयापन कर सकें ।
रक्षा : –
🔹 युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है ।
निःशस्त्रीकरण क्या है ?
🔹 निःशस्त्रीकरण का अर्थ है “ अस्त्र – शस्त्रों का अभाव या अस्त्र – शस्त्रों को नष्ट करना । ”
आतंकवाद क्या है ?
🔹 आतंकवाद का अभिप्राय भय या आतंक उत्पन्न करना है । आतंक उत्पन्न करने के पीछे किस संगठन अथवा समूह का कोई निश्चित लक्ष्य प्राप्त करना होता है ।
मानव अधिकार क्या है ?
🔹 मानव अधिकार का अर्थ अपने जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के साथ – साथ अपने व्यक्तित्व का अधिकाधिक विकास करना है ।
अप्रवासी किसे कहा जाता है ?
🔹 जो लोग अपनी मर्जी से स्वदेश छोड़ते हैं , उन्हें अप्रवासी कहा जाता है ।
शरणार्थी किसे कहते हैं ?
🔹 जो लोग युद्ध , प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण स्वदेश छोड़ने पर मजबूर होते हैं , उन्हें शरणार्थी कहा जाता है ।
सुरक्षा की धारणाएँ : –
🔹 सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं को दो कोटियों में रखकर समझा जा सकता है , जो की सुरक्षा की पारंपरिक और अपारंपरिक धारणा है ।
🔹 1 . पारंपरिक धारणा
- ( i ) बाहरी खतरा :-
- सैन्य हमला
- जनसंहार
- शक्ति – संतुलन
- गठबंधन
- शस्त्रीकरण
- ( ii ) आंतरिक खतरा :-
- कानून व्यवस्था
- अलगाववाद
- गृहयुद्ध
🔹 2 . गैर पारंपरिक धारणा
- ( i ) मानवता की सुरक्षा :- व्यापक अर्ध में भूखा /महामारी और प्राकृतिक विपदा से सुरक्षा ।
- ( ii ) विश्व सुरक्षा :- नवीन चुनौतियों , आतंकवाद , बीमारियों , जलवायु संकट से सुरक्षा शामिल है ।
सुरक्षा के पारंपरिक धारणा – { ( i ) बाहरी सुरक्षा }
🔹 इस धारणा से हमारा तात्पर्य है राष्ट्रीय सुरक्षा की धरणा से होता है । सुरक्षा की पारंपरिक अवधरणा में सैन्य ख़तरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा ख़तरनाक माना जाता है । इस ख़तरे का स्रोत कोई दूसरा मुल्क होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता , स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए ख़तरा पैदा करता है ।
सुरक्षा के पारंपरिक धारणा – { ( ii ) आतंरिक सुरक्षा }
🔹 इस धारणा से हमारा तात्पर्य है देश के भीतर अंदरूनी खतरों से जिसमें आपसी लड़ियाँ , गृह युद्ध , सरकार के प्रति असंतुष्टि से है । यह सुरक्षा आंतरिक शांति और कानून – व्यवस्था पर निर्भर करता है । इसमें अपने ही देश के लोगों से खतरा होता है ।
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा : –
🔹 सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा में उन सभी खतरों को शामिल किया जाता है जो किसी एक देश नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरनाक है और इनका समाधान कोई एक देश अकेले नहीं कर सकता । दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे खतरे जो कि पूरी मानव जाति के लिए खतरनाक हो ।
🔹 सुरक्षा सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के अन्तर्गत विश्व की सुरक्षा के समक्ष प्रमुख प्रमुख खतरे है क ) आतंकवाद ख ) मानव अधिकार ग ) वैश्विक निर्धनता घ ) शरणार्थियों की समस्या ड ) बीमारियाँ जैसे :- एड्स , बर्ड फ्लू एवं सार्स ( सीवियर एक्यूट रेसपिरेटरी सिंड्रोम – SARS )।
गैर – पारंपरिक धारणाएँ : –
🔹 सुरक्षा की गैर – पारंपरिक धारणाएं सैन्य खतरों से परे जाती हैं जिनमें मानव अस्तित्व की स्थिति को प्रभावित करने वाले खतरों और खतरों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है । सुरक्षा के गैर – पारंपरिक विचारों को मानव सुरक्षा ‘ या ‘ वैश्विक सुरक्षा ‘ कहा गया है ।
🔹 मानव सुरक्षा से हमारा मतलब है कि राज्यों की सुरक्षा से ज्यादा लोगों की सुरक्षा ।
- मानव सुरक्षा की संकीर्ण अवधारणा के समर्थकों ने व्यक्तियों को हिंसक खतरों पर ध्यान केंद्रित किया ।
- दूसरी ओर , मानव सुरक्षा की व्यापक अवधारणा के समर्थकों का तर्क है कि खतरे के एजेंडे में भूख , बीमारी और प्राकृतिक आपदा शामिल होनी चाहिए ।
🔹 वैश्विक सुरक्षा का विचार 1990 के दशक में ग्लोबल वार्मिंग , एड्स और इतने पर जैसे खतरों की वैश्विक प्रकृति के जवाब में उभरा ।
किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में विकल्प : –
🔹 बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते है।
- ( i ) आत्मसमर्पण करना दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना ।
- ( ii ) युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से बाज आये ।
- ( iii ) युद्ध ठन जाय तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावार को पराजित कर देना ।
अपरोध : –
🔹युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे लेकिन वह इसे अपने देश की नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी । इस कारण , सुरक्षा – नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे ‘ अपरोध ‘ कहा जाता है ।
परम्परागत सुरक्षा निति के तत्व : –
- ( i ) शक्ति – संतुलन
- ( ii ) गठबंधन बनाना
( i ) शक्ति – संतुलन : –
🔹 कोई देश अपने ऊपर होने वाले संभावित युद्ध या किसी अन्य खतरों के प्रति सदैव संवेदनशील रहता है । वह कई तरीकों से निर्णय अथवा शक्ति – संतुलन को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता रहता है । अपने उपर खतरे वाले देश से शक्ति संतुलन को बनाये रखने के लिए वह अपनी सैन्य शक्ति बढाता है , आर्थिक और प्रोद्योगिकी शक्ति को बढाता है और मित्र देशों से ऐसी स्थितयों से निपटने के लिए संधियाँ करता है ।
( ii ) गठबंधन बनाना : –
🔹 गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं । अधिकांश गठबन्धनों को लिखित संधि से एक औपचारिक रूप मिलता है और ऐसे गठबंधन को यह बात बिलकुल स्पष्ट रहती है कि खतरा किससे है । किसी देश अथवा गठबंधन की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं ।
गठबंधन का आधार : –
- ( i ) किसी देश अथवा गठबंधन की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं ।
- ( ii ) गठबंधन राष्ट्रिय हितों पर आधारित होते है और राष्ट्रिय हितों के बदल जाने पर गठबंधन भी बदल जाते है ।
एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ : –
🔹 एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ यूरोपीय देशों के मुकाबले दो मायनों में विशिष्ट थीं ।
- ( i ) एक तो इन देशों को अपने पड़ोसी देश से सैन्य हमले की आशंका थी ।
- ( ii ) दूसरे , इन्हें अंदरूनी सैन्य – संघर्ष की भी चिंता करनी थी ।
सुरक्षा की परंपरागत धारणा में युद्ध निति : –
🔹 सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का इस्तेमाल यथासंभव सीमित होना चाहिए । इसमें ‘ न्याय – युद्ध ‘ की यूरोपीय परंपरा का ही यह परवर्ती विस्तार है कि आज लगभग पूरा विश्व मानता है : –
( i ) किसी देश को युद्ध उचित कारणों यानी आत्म – रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए ।
( ii ) इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी युद्ध में युद्ध – साधनों का सीमित इस्तेमाल होना चाहिए ।
( iii ) युद्धरत् सेना को चाहिए कि वह संघर्षविमुख शत्रु , निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्मसपर्मण करने वाले शत्रु को न मारे ।
( iv ) सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जरुरी हो और उसे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए ।
( v ) सुरक्षा की परंपरागत धरणा इस संभावना से इन्कार नहीं करती कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हो । इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है – निरस्त्रीकरण , अस्त्र – नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली ।
निःशस्त्रीकरण क्या है ?
🔹 निःशस्त्रीकरण का अर्थ है “ अस्त्र – शस्त्रों का अभाव या अस्त्र – शस्त्रों को नष्ट करना । ”
निःशस्त्रीकरण का आशय : –
🔹 निःशस्त्रीकरण वह कार्यक्रम है , जिसका उद्देश्य शस्त्रों के अस्तित्व और उसकी प्रकृति से उत्पन्न कुछ विशिष्ट खतरों को कम अथवा समाप्त करना है ।
निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता ( या पक्ष में तर्क ) : –
🔹 विश्व शांति की स्थापना के लिए :- अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिद्वन्द्विता और तनावपूर्ण स्थितियाँ ही युद्ध के वास्तविक कारण हैं , क्योंकि इनसे ही शस्त्रास्त्रों की प्रतिस्पर्धा आरम्भ होती है जिसका अन्तिम परिणाम युद्ध और विनाश होता है । नि : शस्त्रीकरण के माध्यम से इसे रोककर विश्व शान्ति स्थापित की जा सकती है ।
🔸 आर्थिक हानि से बचने के लिए :- अस्त्र – शस्त्रों के निर्माण में बहुत पैसा बर्बाद होता है । निःशस्त्रीकरण से इस बर्बादी से बचा जा सकता है ।
🔸 आण्विक अस्त्र – शस्त्रों से बचने के लिए :- वर्तमान युग में आण्विक युद्ध एवं विनाश से बचने का एकमात्र मार्ग निःशस्त्रीकरण ही प्रभावशाली नियन्त्रण है ।
🔸 पर्यावरण की रक्षा के लिए आवश्यक :- परमाणु परीक्षणों ने पर्यावरण को बहुत दूषित कर दिया है । निःशस्त्रीकरण के माध्यम से इससे बचा जा सकता है ।