सोवियत संघ में सुधारों के लिए गोर्बाचेव को बाध्य करने वाली परिस्थितियाँ : –
- गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए : –
🔹 सोवियत संघ में धीरे – धीरे नौकरशाही का प्रभाव बढ़ता गया तथा पूरी व्यवस्था नौकरशाही के शिकंजे में फँसती चली गई । इससे सोवियत प्रणाली सत्तावादी हो गई तथा लोगों का जीवन कठिन होता चला गया ।
🔹 सोवियत व्यवस्था में लोकतंत्र एवं विचार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं पाई जाती थी । अतः इसमें सुधार की आवश्यकता थी ।
🔹 सोवियत संघ में एक दल , साम्यवादी दल का प्रभुत्व था । यह दल किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं था । यद्यपि सोवियत संघ में 15 गणराज्य शामिल थे , परन्तु प्रत्येक विषय में रूस का प्रभुत्व था तथा वही सब प्रकार के महत्वपूर्ण निर्णय लेता था । इससे बाकी के गणराज्य स्वयं को दमित एवं अपमानित अनुभव करते थे ।
🔹 सोवियत संघ ने समय – समय पर अत्याधुनिक एवं खतरनाक हथियार बनाकर अमेरिका की बराबरी की , परन्तु धीरे – धीरे उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । हथियारों पर अत्यधिक खर्चों के कारण सोवियत संघ बुनियादी ढाँचे एवं तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ता गया ।
🔹 सोवियत संघ राजनीतिक एवं आर्थिक तौर पर अपने नागरिकों के समक्ष पूरी तरह सफल नहीं हो पाया ।
🔹 सन् 1979 में अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप के कारण सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था और भी कमजोर हो गई । सोवियत संघ में निर्यात कम होता गया तथा आयात बढ़ता गया ।
सोवियत संघ समाप्ति की घोषणा : –
🔹 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस , यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की ।
सोवियत संघ का विघटन : –
🔹 सोवियत संघ के गणराज्यों में चल रहे संघर्ष ने देश के विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी । गणराज्यों के संघर्ष से सोवियत संघ की केन्द्रीय सत्ता दुर्बल हो गयी । एक के बाद एक करके सोवियत संघ के गणराज्य स्वतंत्र होते गए । 25 दिसंबर , 1991 को सोवियत संघ का विघटन हो गया ।
🔹 जिन 15 गणराज्यों को मिलाकर सोवियत संघ एक ‘ बहुराष्ट्रीय राज्य ‘ हुआ करता था , उनमें से 12 राज्यों ने मिलकर ‘ स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल ‘ ( CIS ) की स्थापना की । तीन बाल्टिक गणराज्य ( लातविया , एस्तोनिया और लिथुआनिया ) उसमें शामिल नहीं हुए ।
सोवियत संघ का विघटन : एक दृष्टि में : –
- मार्च , 1985 : गोर्बाचेव कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए । बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया । सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की ।
- जनवरी , 1987 : ‘ पेरेस्त्रोइका ‘ का अर्थ है- पुनर्रचना । इसके अन्तर्गत आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों पर वल दिया गया ।
- सितम्बर , 1988 : गोर्बाचेव अब देश के राष्ट्रपति बन गए । लिथुआनिया में आज़ादी के लिए आंदोलन शुरू । एस्टोनिया और लताविया में भी फैला ।
- अक्टूबर , 1989 : गोर्बाचेव ने पूर्वी यूरोप के देशों से सेनाएँ हटा ली थीं । ‘ वारसा संधि ‘ में शामिल देशों को अपने बारे में स्वयं निर्णय लेने का अधिकार मिल गया । फलस्वरूप , इन देशों में सोवियत संघ का दबदबा समाप्त हो गया ।
- नवम्बर , 1989 : बर्लिन की दीवार गिरा दी गई ।
- फरवरी , 1990 : सोवियत संघ में 72 वर्षों से चला आ रहा कम्युनिस्ट पार्टी का एकाधिकार समाप्त हो गया । सोवियत चुनावों के लिए ‘ बहुदलीय व्यवस्था ‘ का मार्ग खुल गया ।
- मार्च , 1990 : लिथुआनिया ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी । आजादी की घोषणा करने वाला वह पहला सोवियत गणराज्य था ।
- जून , 1990 : रूसी संघीय गणराज्य ने सोवियत संघ से अलग हो जाने की घोषणा कर दी ।
- जून , 1991 : बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति बने ।
- अगस्त , 1991 : कम्युनिस्ट कट्टरपंथियों ने गोबांचेव के खिलाफ विद्रोह कर दिया । विद्रोह असफल रहा ।
- सितम्बर , 1991 : तीन बाल्टिक गणराज्य ( लातविया , एस्तोनिया और लिथुआनिया ) जो सोवियत संघ से अलग हो गए थे , संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बन गए ।
- दिसम्बर , 1991 : 8 दिसम्बर को तीन गणराज्यों ( रूस , यूक्रेन और बेलारूस ) ने 1922 की उस संधि को रद्द करने का फैसला किया जिससे ‘ सोवियत संघ ‘ का निर्माण हुआ था । उन्होंने स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल ( Commonwealth of Independent States CIS ) की स्थापना की । बाद में आठ अन्य गणराज्य ‘ राष्ट्रकुल ‘ में शामिल हो गए । इस प्रकार राष्ट्रकुल की सदस्य संख्या 11 हो गई ।
- 25 दिसम्बर , 1991 : 25 दिसम्बर को गोर्बाचेव ने राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दे दिया । इसी के साथ औपचारिक तौर पर सोवियत संघ का अस्तित्व समाप्त हो गया । 1993 में जार्जिया भी राष्ट्रकुल का सदस्य बन गया ।
सोवियत संघ के विघटन के कारण : –
- नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना ।
- सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा ।
- कम्यूनिस्ट पार्टी का अंकुश ।
- संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर ।
- प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के मुकाबले पीछे रहना ।
- पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह ना होना ।
- रूस की प्रमुखता ।
- गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना ।
- अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी ।
- राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार ।
- सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना ।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम : –
- शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया । दूसरी दुनिया का पतन ।
- एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमरीकी वर्चस्व का उदय ।
- हथियारों की होड़ की समाप्ति ।
- सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय ।
- विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्था ताकतवर देशो की सलाहकार बन गई ।
- रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना ।
- विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए ।
- समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व ।
- शॉक थेरेपी को अपनाया गया ।
- उदारवादी लोकतंत्र का महत्व बढा ।
सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन की कमियाँ : –
🔹 सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के जवाबदेह नहीं रह गई थी ।
🔹 इसकी निम्नलिखित कमियाँ थी : –
- कम्युनिस्ट शासन में सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनितिक रूप से गतिरुद्ध हो चूका था ।
- भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था और गलतियों को सुधारने में शासन व्यवस्था अक्षम थी ।
- विशाल देश में केन्द्रीयकृत शासन प्रणाली थी ।
- सत्ता का जनाधार खिसकता जा रहा था । कम्युनिष्ट पार्टी में कुछ तानाशाह प्रकृति के नेता भी थे जिनकों जनता से कोई सरोकार नहीं था ।
- ‘ पार्टी के अधिकारीयों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे ।
भारत जैसे विकासशील देशों पर सावियत संघ के विघटन के परिणाम : –
- विकासशील देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका को हस्तक्षेप का अधिक अवसर मिल गया ।
- कम्यूनिस्ट विचारधारा को धक्का ।
- विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व ( I.M.F. , World Bank )
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा ।
हथियारों की होड़ की कीमत :-
🔹 सोवियत संघ ने हथियारों की होड़ में अमरीका को कड़ी टक्कर दी परन्तु प्रोद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में वह पश्चिमी देशों से पिछड़ गया ।
🔹 उत्पादकता और गुणवता के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया ।
शॉक थेरेपी :-
🔹 शॉक थेरेपी शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना । साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण ( परिवर्तन ) के मॉडल को अपनाने को कहा गया । इसे ही शॉक थेरेपी कहते है ।
🔹 शॉक थेरेपी के अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात की गई , जिसके अंतर्गत ‘ सामूहिक फार्म ‘ को ‘ निजी फार्म ‘ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती आरंभ की गई ।
शॉक थेरेपी की विशेषताएँ : –
- मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व । राज्य की संपदा का निजीकरण ।
- सामूहिक फार्म को निजी फार्म में बदल दिया गया ।
- पूंजीवादी पद्धति से खेती की जाने लगी ।
- मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना ।
- मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता ।
- पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव ।
- पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया ।
शॉक थेरेपी के परिणाम : –
- पूर्णतया असफल , रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया ।
- रूसी मुद्रा रूबल में गिरावट ।
- समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट ।
- सरकारी रियायत खत्म हो गई ज्यादातर लोग गरीब हो गए ।
- 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को कम दामों ( औने – पौने ) दामों में बेचा गया जिसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा जाता है ।
- आर्थिक विषमता बढ़ी ।
- खाद्यान्न संकट हो गया ।
- माफिया वर्ग का उदय ।
- अमीर और गरीब के बीच तीखा विभाजन हो गया ।
- कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन ।