Class 12 political science chapter 2 notes in hindi, दो ध्रुवीयता का अंत notes

सोवियत संघ में सुधारों के लिए गोर्बाचेव को बाध्य करने वाली परिस्थितियाँ : –

  • गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए : –

🔹 सोवियत संघ में धीरे – धीरे नौकरशाही का प्रभाव बढ़ता गया तथा पूरी व्यवस्था नौकरशाही के शिकंजे में फँसती चली गई । इससे सोवियत प्रणाली सत्तावादी हो गई तथा लोगों का जीवन कठिन होता चला गया । 

🔹 सोवियत व्यवस्था में लोकतंत्र एवं विचार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं पाई जाती थी । अतः इसमें सुधार की आवश्यकता थी ।

🔹 सोवियत संघ में एक दल , साम्यवादी दल का प्रभुत्व था । यह दल किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं था । यद्यपि सोवियत संघ में 15 गणराज्य शामिल थे , परन्तु प्रत्येक विषय में रूस का प्रभुत्व था तथा वही सब प्रकार के महत्वपूर्ण निर्णय लेता था । इससे बाकी के गणराज्य स्वयं को दमित एवं अपमानित अनुभव करते थे ।

🔹 सोवियत संघ ने समय – समय पर अत्याधुनिक एवं खतरनाक हथियार बनाकर अमेरिका की बराबरी की , परन्तु धीरे – धीरे उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । हथियारों पर अत्यधिक खर्चों के कारण सोवियत संघ बुनियादी ढाँचे एवं तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ता गया । 

🔹 सोवियत संघ राजनीतिक एवं आर्थिक तौर पर अपने नागरिकों के समक्ष पूरी तरह सफल नहीं हो पाया । 

🔹 सन् 1979 में अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप के कारण सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था और भी कमजोर हो गई । सोवियत संघ में निर्यात कम होता गया तथा आयात बढ़ता गया ।

सोवियत संघ समाप्ति की घोषणा : –

🔹 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस , यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की ।

सोवियत संघ का विघटन : –

🔹 सोवियत संघ के गणराज्यों में चल रहे संघर्ष ने देश के विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी । गणराज्यों के संघर्ष से सोवियत संघ की केन्द्रीय सत्ता दुर्बल हो गयी । एक के बाद एक करके सोवियत संघ के गणराज्य स्वतंत्र होते गए । 25 दिसंबर , 1991 को सोवियत संघ का विघटन हो गया । 

🔹 जिन 15 गणराज्यों को मिलाकर सोवियत संघ एक ‘ बहुराष्ट्रीय राज्य ‘ हुआ करता था , उनमें से 12 राज्यों ने मिलकर ‘ स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल ‘ ( CIS ) की स्थापना की । तीन बाल्टिक गणराज्य ( लातविया , एस्तोनिया और लिथुआनिया ) उसमें शामिल नहीं हुए । 

सोवियत संघ का विघटन : एक दृष्टि में : –

  • मार्च , 1985 : गोर्बाचेव कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए । बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया । सोवियत संघ में सुधारों की श्रृंखला शुरू की ।
  • जनवरी , 1987 : ‘ पेरेस्त्रोइका ‘ का अर्थ है- पुनर्रचना । इसके अन्तर्गत आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों पर वल दिया गया ।
  • सितम्बर , 1988 : गोर्बाचेव अब देश के राष्ट्रपति बन गए । लिथुआनिया में आज़ादी के लिए आंदोलन शुरू । एस्टोनिया और लताविया में भी फैला ।
  • अक्टूबर , 1989 : गोर्बाचेव ने पूर्वी यूरोप के देशों से सेनाएँ हटा ली थीं । ‘ वारसा संधि ‘ में शामिल देशों को अपने बारे में स्वयं निर्णय लेने का अधिकार मिल गया । फलस्वरूप , इन देशों में सोवियत संघ का दबदबा समाप्त हो गया ।
  • नवम्बर , 1989 : बर्लिन की दीवार गिरा दी गई ।
  • फरवरी , 1990 : सोवियत संघ में 72 वर्षों से चला आ रहा कम्युनिस्ट पार्टी का एकाधिकार समाप्त हो गया । सोवियत चुनावों के लिए ‘ बहुदलीय व्यवस्था ‘ का मार्ग खुल गया ।
  • मार्च , 1990 : लिथुआनिया ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी । आजादी की घोषणा करने वाला वह पहला सोवियत गणराज्य था ।
  • जून , 1990 : रूसी संघीय गणराज्य ने सोवियत संघ से अलग हो जाने की घोषणा कर दी । 
  • जून , 1991 : बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति बने ।
  • अगस्त , 1991 : कम्युनिस्ट कट्टरपंथियों ने गोबांचेव के खिलाफ विद्रोह कर दिया । विद्रोह असफल रहा । 
  • सितम्बर , 1991 :  तीन बाल्टिक गणराज्य ( लातविया , एस्तोनिया और लिथुआनिया ) जो सोवियत संघ से अलग हो गए थे , संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बन गए । 
  • दिसम्बर , 1991 : 8 दिसम्बर को तीन गणराज्यों ( रूस , यूक्रेन और बेलारूस ) ने 1922 की उस संधि को रद्द करने का फैसला किया जिससे ‘ सोवियत संघ ‘ का निर्माण हुआ था । उन्होंने स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल ( Commonwealth of Independent States CIS ) की स्थापना की । बाद में आठ अन्य गणराज्य ‘ राष्ट्रकुल ‘ में शामिल हो गए । इस प्रकार राष्ट्रकुल की सदस्य संख्या 11 हो गई ।
  • 25 दिसम्बर , 1991 : 25 दिसम्बर को गोर्बाचेव ने राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दे दिया । इसी के साथ औपचारिक तौर पर सोवियत संघ का अस्तित्व समाप्त हो गया । 1993 में जार्जिया भी राष्ट्रकुल का सदस्य बन गया ।

सोवियत संघ के विघटन के कारण : –

  • नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना । 
  • सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा ।
  • कम्यूनिस्ट पार्टी का अंकुश ।
  • संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर । 
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के मुकाबले पीछे रहना ।
  • पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह ना होना । 
  • रूस की प्रमुखता । 
  • गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना । 
  • अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी । 
  • राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार । 
  • सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना ।

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम : –

  • शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया । दूसरी दुनिया का पतन ।
  • एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमरीकी वर्चस्व का उदय ।
  • हथियारों की होड़ की समाप्ति ।
  • सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय ।
  • विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्था ताकतवर देशो की सलाहकार बन गई ।
  • रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना ।
  • विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए ।
  • समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व ।
  • शॉक थेरेपी को अपनाया गया ।
  • उदारवादी लोकतंत्र का महत्व बढा ।

सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन की कमियाँ : –

🔹 सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के जवाबदेह नहीं रह गई थी । 

🔹 इसकी निम्नलिखित कमियाँ थी : –

  • कम्युनिस्ट शासन में सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनितिक रूप से गतिरुद्ध हो चूका था । 
  • भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था और गलतियों को सुधारने में शासन व्यवस्था अक्षम थी ।
  • विशाल देश में केन्द्रीयकृत शासन प्रणाली थी । 
  • सत्ता का जनाधार खिसकता जा रहा था । कम्युनिष्ट पार्टी में कुछ तानाशाह प्रकृति के नेता भी थे जिनकों जनता से कोई सरोकार नहीं था । 
  • ‘ पार्टी के अधिकारीयों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे ।

भारत जैसे विकासशील देशों पर सावियत संघ के विघटन के परिणाम : –

  • विकासशील देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका को हस्तक्षेप का अधिक अवसर मिल गया ।
  • कम्यूनिस्ट विचारधारा को धक्का ।
  • विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व ( I.M.F. , World Bank )
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा ।

हथियारों की होड़ की कीमत :-

🔹 सोवियत संघ ने हथियारों की होड़ में अमरीका को कड़ी टक्कर दी परन्तु प्रोद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में वह पश्चिमी देशों से पिछड़ गया ।

🔹 उत्पादकता और गुणवता के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया ।

शॉक थेरेपी :-

🔹 शॉक थेरेपी शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना । साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण ( परिवर्तन ) के मॉडल को अपनाने को कहा गया । इसे ही शॉक थेरेपी कहते है ।

🔹 शॉक थेरेपी के अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात की गई , जिसके अंतर्गत ‘ सामूहिक फार्म ‘ को ‘ निजी फार्म ‘ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती आरंभ की गई ।

शॉक थेरेपी की विशेषताएँ : –

  • मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व । राज्य की संपदा का निजीकरण ।
  • सामूहिक फार्म को निजी फार्म में बदल दिया गया ।
  • पूंजीवादी पद्धति से खेती की जाने लगी ।
  • मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना ।
  • मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता ।
  • पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव ।
  • पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया ।

शॉक थेरेपी के परिणाम : –

  • पूर्णतया असफल , रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया ।
  • रूसी मुद्रा रूबल में गिरावट ।
  • समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट ।
  • सरकारी रियायत खत्म हो गई ज्यादातर लोग गरीब हो गए ।
  • 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को कम दामों ( औने – पौने ) दामों में बेचा गया जिसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा जाता है ।
  • आर्थिक विषमता बढ़ी ।
  • खाद्यान्न संकट हो गया ।
  • माफिया वर्ग का उदय ।
  • अमीर और गरीब के बीच तीखा विभाजन हो गया ।
  • कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन ।

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