गराज – सेल : –
🔹 शॉक थेरेपी से उन पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई जिनमें पहले साम्यवादी शासन थी ।
🔹 रूस में , पूरा का पूरा राज्य – नियंत्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा उठा । लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया ।
🔹 आर्थिक ढाँचे का यह पुनर्निर्माण चूँकि सरकार द्वारा निर्देशित औद्योगिक नीति के बजाय बाजार की ताकतें कर रही थीं , इसलिए यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ । इसे ‘ इतिहास की सबसे बड़ी गराज – सेल ‘ के नाम से जाना जाता है ।
गराज – सेल जैसी हालात उत्पन्न होने का कारण : –
🔹 महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम से कम करके आंकी गई और उन्हें औने – पौने दामों में बेच दिया गया ।
🔹 हालाँकि इस महा – बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार – पत्र दिए गए थे , लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेच दिये क्योंकि उन्हें धन की जरुरत थी ।
🔹 रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई । मुद्रास्पफीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमापूँजी जाती रही ।
क्या शॉक थेरेपी साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का सबसे बेहतर तरीका था ?
- ‘ शॉक थेरेपी ‘ साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह बेहतर तरीका नहीं था । इसके निम्नलिखित परिणाम आए :-
🔹 पूर्व सोवियत संघ ( रूस ) का राज्य द्वारा नियन्त्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया , क्योंकि लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों में या कंपनियों को बेच दिया गया । इसे ‘ इतिहास की सबसे बड़ी गराज – सेल ‘ कहा गया ।
🔹 महा – बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार पत्र दिए गए थे , लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों में बेच डाले , क्योंकि उन्हें धन की आवश्यकता थी ।
🔹 रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में गिरावट से लोगों की जमा पूँजी जाती रही ।
🔹 सामूहिक खेती प्रणाली समाप्त होने से खाद्यान्न सुरक्षा मौजूद नहीं रही और खाद्यान्न का आयात करना पड़ा ।
🔹 सन् 1999 का सकल घरेलू उत्पाद सन् 1959 की तुलना में नीचे आ गया । पुराना व्यापारिक ढाँचा टूट गया था , लेकिन व्यापार की कोई नई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई थी ।
🔹 एक माफिया वर्ग उभर कर आया , जिसने आर्थिक गतिविधयों को अपने नियन्त्रण में ले लिया ।
🔹 अमीर तथा गरीब लोगों के बीच अंतर बढ़ने लगा , जिससे आर्थिक असमानता आयी ।
🔹 जल्दबाजी में संविधान तैयार करके राष्ट्रपति को कार्यपालिका प्रमुख बनाकर सभी शक्तियाँ उसे दे दी और संसद कमजोर संस्था बनकर रह गई ।
🔹 इस प्रकार परिणामों को देखकर हम कह सकते हैं कि साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण धीरे – धीरे होना चाहिए था ताकि व्यवस्था में परिवर्तन को सहजता से अपनाया जा सके ।
संघर्ष व तनाव के क्षेत्र : –
🔹 पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है । इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है । रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले । चेकोस्लोवाकिया दो भागों – चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया ।
बाल्कन राज्य : –
🔹 भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो बाल्कन राज्य तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है । इसके पूर्व में काला सागर तथा इसके पश्चिम व दक्षिण में भूमध्य सागर की शाखाएँ हैं । इस कारण बाल्कन राज्यों को ‘ बाल्कन प्रायद्वीप ‘ भी कहा जाता है ।
🔹 इसमें अल्बानिया , बोस्निया , हर्जेगोविना , सर्बिया , तुर्की , यूनान , मेसोडोनिया गणतंत्र प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं । कुछ अन्य राज्यों को भी इसमें शामिल किया जाता है ; जैसे – स्लोवेनिया , रोमानिया आदि ।
बाल्कन क्षेत्र : –
🔹 बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया । जिसमें शामिल बोस्निया हर्जेगोविना , स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया ।
बाल्टिक क्षेत्र : –
🔹 बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतंन्त्र घोषित किया । एस्टोनिया , लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने । 2004 में नाटो में शामिल हुए ।
मध्य एशिया : –
🔹मध्य एशिया के तज़ाकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला । अज़रबैजान , अर्मेनिया , यूक्रेन , किरगिझस्तान , जार्जिया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं । मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है । इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है ।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत : –
- पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है , रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है ।
- दोनों का सपना बहुध्रवीय विश्व का है ।
- दोनों देश सहअस्तित्व , सामूहिक सुरक्षा , क्षेत्रीय सम्प्रभुता , स्वतन्त्र विदेश नीति , अन्तराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल , संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है ।
- 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए ।
- भारत रूसी हथियारों का खरीददार ।
- रूस से तेल का आयात ।
- परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद ।
- कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश ।
- गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स ( BRICS ) सम्मलेन के दौरान रूस – भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा , परमाणु उर्जा , अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया ।
एक ध्रुवीय व्यवस्था क्या हैं ?
🔹 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीत युद्ध का अंत हो गया तथा संयुक्त राज्य – अमेरिका का विश्व राजनीति में प्रभाव बढ़ गया । वर्तमान समय में कोई ऐसा देश नहीं है जो अमेरिका जैसे महाशक्ति को चुनौती दे सके इस व्यवस्था को एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहते हैं ।
नई विश्व व्यवस्था क्या है ?
🔹 सन् 1990 के अगस्त में इराक ने अपने पड़ोसी देश कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से उस पर कब्जा जमा लिया । इराक के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे दी । अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इसे ‘ नई विश्व व्यवस्था ‘ की संज्ञा दी ।
इराक पर आक्रमण की घटना : –
🔹 अमेरिका इराक के पीछे पड़ा था । इराक के कुवैत पर इराक की गतिविधियों के बाद से ही तानाशाह सद्दाम हुसैन का शासनकाल हत्याओं और यातनाओं के लिए कुख्यात हो चुका था । इसके अलावा अमेरिका ने यह बहाना बनाया कि इराक ने सामुहिक के शास्त्र विकसित कर लिए हैं । अमेरिका की असली नजर , इराक के विशाल तेल भण्डार पर थी और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना की 19 मार्च 2003 को इराक पर हमला कर दिया । सद्दाम हुसैन की सरकार धरासायी हो गई तथा 2006 में उसे फाँसी दे दी गई ।
प्रथम खाड़ी युद्ध : –
🔹 अमरीका के नेतृत्व में 34 देशों ने मिलकर और 6,60,000 सैनिकों की भारी – भरकम फौज ने इराक के विरुद्ध युद्ध किया और उसे परास्त कर दिया । इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है ।
प्रथम खाड़ी युद्ध के कारण : –
- इराक द्वारा कुवैत पर कब्ज़ा :- प्रथम खाड़ी युद्ध – का सबसे बड़ा कारण इराक द्वारा कुवैत पर कब्ज़ा करना था ।
- अमेरिका की युद्ध की इच्छा :- प्रथम खाड़ी युद्ध – के लिए अमेरिका की युद्ध की इच्छा भी जिम्मेदार थी ।
- सोवियत संघ का पतन :- सोवियत संघ के पतन – के पश्चात् अमेरिका पर लगाम कसने वाला कोई न था । संयुक्त राष्ट्र
- संयुक्त राष्ट्र संघ की असफलता :- प्रथम खाड़ी युद्ध के पहले संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी सही भूमिका नहीं निभा पाया ।
प्रथम खाड़ी युद्ध के परिणाम : –
- इस युद्ध से विश्व राजनीति में अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हुआ ।
- खाड़ी युद्ध ने अरब एकता की भ्रांति को समाप्त कर दिया ।
- इस युद्ध के लिए 20 में से केवल 12 अरब देशों ने अपनी सैनिक टुकड़ी भेजी ।
- यद्यपि युद्ध फरवरी सन् 1991 में ही समाप्त हो गया था लेकिन इराक के विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंध अनेक वर्षों तक जारी रहे ।
- भीषण बमबारी से इराक व कुवैत में भारी जान-माल की हानि हुई ।
- इस युद्ध ने सिद्ध कर दिया कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अमेरिका अन्य देशों की तुलना में काफी समृद्ध है ।
- सैन्य विशेषज्ञों व पर्यवेक्षकों ने इसे ‘ कम्प्यूटर युद्ध ‘ की संज्ञा दी ।