म्यांमार : –
🔹 म्यांमार जिसे पूर्व में बर्मा के नाम से जाना जाता था । 1948 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई । 01 फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना ने सरकार का तख्ता पलट दिया । वहाँ की जनता तब से ही सैनिक शासन के विरूद्ध विरोध प्रर्दशन कर रही है ।
भारत और म्यांमार संबंध : –
🔹 1993 में पी ० वी ० नरसिम्हा राव ने ‘ पूर्व की ओर देखों ‘ नीति म्यांमार से शुरू की इस नीति का प्रमुख उद्धेश्य भारत की व्यापारिक दिशा अपने पड़ौसी देश और पश्चिमी देशों से हटाकर उभरते हुए दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों की ओर करना थी ।
🔹 भारत म्यांमार थाईलैण्ड राजमार्ग परियोजना की कम्बोडिया तक बनाने का निर्णय 2016 में लिया गया ।
🔹 कालादान मल्टी मॉडल परियोजना के द्वारा कलकत्ता बन्दरगाह और बंगलादेश के सितवे बंदरगाह को जोड़ा गया ।
🔹 2017 में उदारवाद वीजा नीति भारत ने म्यांमार के साथ जारी की इसके अंतर्गत म्यांमार के लोग भारत आ सकते है परन्तु उन से कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा ।
🔹 भारत और म्यांमार BIMSTEC के सदस्य भी है ।
🔹 2017 में प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी ने म्यांमार की यात्रा भी की भारत की विदेश नीति को महत्व देने के लिए और अपने रक्षा सम्बन्धों को सशक्त बनाने के लिए भारत म्यांमार के सैनिक प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराता रहता है ।
🔹 IMBE 2017 , 2018 , 2019 के द्वारा भारत ने म्यांमार के साथ सैनिक अभ्यास भी किये है ।
🔹 2019 में म्यांमार के रक्षामंत्री ने भारत की यात्रा के दौरान एक रक्षा सहयोग पर हस्ताक्षर किए है ।
🔹 अपने Make in India शस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए और अपने सैनिक निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत ने म्यांमार को साथ रखा है ।
भारत और नेपाल संबंध : –
🔹 वर्तमान में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा हैं । जो नेपाली कांग्रेस से संबंधित हैं । सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार उन्होंने 13 जुलाई 2021 को कार्यभार संभाला हैं ।
भारत और नेपाल के मधुर संबध : –
🔹 भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संघि है जो दोनों देशों के बीच नागरिकों और वस्तुओं की मुक्त आवाजाही की अनुमति देती है । नेपाल अपने समुद्री मार्ग के लिए कोलकाता बंदरगाह का प्रयोग करता है ।
🔹 भारतीय सेना की गोरखा रेजीमेंट में नेपाल के पहाड़ी इलाकों से भी युवाओं की भर्ती की जाती है ।
🔹 भारत , नेपाल को आपदा प्रबंधन के साथ – साथ तकनीकी और मानवीय सहायता भी प्रदान करता है ।
भारत और नेपाल के बीच विवाद : –
🔹 हाल ही में नेपाल द्वारा आधिकारिक रूप से नेपाल का नवीन मानचित्र जारी किया गया जो उत्तराखंड के कालापानी , लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपना संप्रभु क्षेत्र का भाग मानता है ।
🔹 भारत और बंग्लादेश के बीच ब्रहमपुत्र और गंगा नदी के जल बटॅबारे संबधित विवाद है ।
भारत – इजरायल संबंध : –
🔹 यद्यपि भारत तथा इजरायल के मध्य ऐतिहासिक तथा संस्कृतिक संबंधों को पुरातन समय से ही देखा जा सकता है , परंतु दोनों के मध्य कूटनीतिक संबंध औपचारिक रूप से 1992 में भारत में इजरायल के दूतावास की स्थापना के पश्चात विकसित हुए ।
🔹 परंतु दोनों देशों के मध्य औपचारिक राजयनिक संबंध स्थापित होने पश्चात भी , इनके मध्य संबंधों में सुदृढ़ता 1996 तथा 1998 में भारत में एनडीए सरकार की स्थापना के बाद ही आई । दोनों लोकतांत्रिक देशों के मध्य सरकार के प्रमुख की यात्राओं के पश्चात दोनों के मध्य संबंध और अधिक प्रगाढ़ हुए ।
🔹 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजरायल तथा दो हजार अठारह में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत की यात्रा की । दोनों राष्ट्रों ने सांस्कृतिक आदान – प्रदान , सुरक्षा एवं सैन्य , आतंकवाद विरोधी अंतरिक्ष अनुसंधान जल एवं उर्जा तथा कृषि विकास के क्षेत्रों में व्यापक सहयोग प्रारंभ किया है ।
भारत और श्रीलंका सम्बंध : –
🔶 विवाद :-
- तमिलों की स्थिति
- 1987 में भारत द्वारा भेजी गई शांति सेना को श्री लंका के लोगो ने अंदरूनी मामलो में हस्तक्षेप समझा ।
🔶 सहयोग :-
🔹 भारत – श्रीलंका के मध्य सांस्कृतिक , बौद्धिक , धार्मिक और भाषायी संबंध प्राचीन काल से हैं ।
🔹 भारत ने श्रीलंका के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिससे व्यापारिक संबंध दृढ़ हुए हैं ।
🔹 26 सितंबर 2020 को वर्चुअल माध्यम से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री श्री एच . ई महिन्द्रा राजपक्षे के साथ दिपक्षीय सम्मेलन किया ।
भारत की परमाणु नीति क्या है ?
🔹 भारत प्रारम्भ से ही आण्विक अस्त्रों के निर्माण के विरुद्ध रहा है । दूसरे महायुद्ध में हिरोशिमा तथा नागासाकी में हुई विभीषिका की याद सबके मस्तिष्क में थी । आजादी के बाद भारत समेत विभिन्न विकासशील देशों ने निर्गुट रहकर निःशस्त्रीकरण पर जोर दिया । इस उद्देश्य से नेहरू ने आण्विक हथियारों के निर्माण को प्रोत्साहन नहीं दिया ।
🔹 परन्तु औद्योगिकरण के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास आवश्यक था । इसलिए औद्योगिक घटक के रूप में परमाणु कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई । भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों की जरूरत के रूप में परमाणु ऊर्जा के विकास का लक्ष्य रखा जिसकी शुरुआत डॉ . होमी भाभा के निर्देशन में सन् 1940 के दशक के अंतिम वर्षों में हुई ।
भारत का परमाणु कार्यक्रम : –
🔹 मई 1974 में पोखरण में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया फिर मई 1998 में पोखरण में ही भारत ने पाँच परमाणु परीक्षण कर स्वयं को परमाणु सम्पन्न घोषित कर दिया । इसके तुरंत बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण कर स्वयं को परमाणु शक्ति घोषित कर दिया ।
🔹 भारत ने 1968 की परमाणु अप्रसार संधि एवं 1995 की ” व्यापक परीक्षण निषेध संधि ” CTBT ” पर हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि भारत इन्हें भेदभावपूर्ण मानता है ।
भारत की परमाणु नीति के सिद्धांत : –
- भारत शांतिपूर्ण कार्यों हेतू परमाणु शक्ति का प्रयोग करेगा ।
- भारत अपनी सुरक्षा तथा आवश्यकतानुसार परमाणु हथियारों का निर्माण करेगा ।
- भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा ।
- परमाणु हथियारो को प्रयोग करने की शक्तिसर्वोच्च राजनीतिक सत्ता के हाथ होगी ।
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख आदर्श व उद्देश्य : –
- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए यथासम्भव प्रयास करना ,
- अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाये जाने की नीति को यथासम्भव प्रोत्साहन देना ,
- सभी राज्यों एवं राष्ट्रों के मध्य परस्पर सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना ,
- अन्तर्राष्ट्रीय कानून और विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों में सन्धियों के पालन के प्रति आस्था बनाये रखना ,
- सैनिक गुटबन्दियों और सैनिक समझौतों से स्वयं को पृथक् रखना तथा इस प्रकार की गुटबन्दियों को निरुत्साहित करना ,
- उपनिवेशवाद के प्रत्येक रूप का उग्र विरोध करना ,
- प्रत्येक प्रकार की साम्राज्यवादी भावना को निरुत्साहित करना ,
- उपनिवेशवाद , जातिवाद और साम्राज्यवाद से पीड़ित देशों की जनता की सहायता करना ।
भारत के विदेश नीति के निर्धारक तत्व : –
- भौगोलिक तत्व ,
- ऐतिहासिक परम्पराएँ ,
- सैनिक तत्व ,
- विचारधाराओं का प्रभाव ,
- आर्थिक तत्व ,
- तकनीकी तत्व ,
- अन्तर्राष्ट्रीय तत्व ,
- राष्ट्रीय चरित्र ,
- राष्ट्रीय हित ।
भारतीय विदेश नीति के मुख्य सिद्धांत या विशेषताएँ : –
- साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध ।
- विश्व – शांति में विश्वास ।
- संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों का समर्थन ।
- रंगभेद का विरोध ।
- बिना शर्त विदेशी सहायता प्राप्ति ।
- गुट – निरपेक्षता की नीति ।
- राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा एवं संवर्द्धन ।
- शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व का समर्थन ।
- शस्त्रीकरण का विरोध तथा निःशस्त्रीकरण का समर्थन ।
- साधनों की पवित्रता ।
भारतीय विदेश नीति की सफलता या उपलब्धियाँ : –
- भारत की गुट – निरपेक्षता की नीति विश्व शांति के हित में रही तथा मानव जाति को तृतीय विश्व युद्ध से बचाया ।
- भारत की विदेश नीति ने निःशस्त्रीकरण पर बल दिया , जिस नीति का सैद्धान्तिक रूप से सभी देशों ने समर्थन किया ।
- भारत ने साम्राज्यवाद , उपनिवेशवाद व रंगभेद विरोधी नीति अपनाकर एशिया व अफ्रीका में अच्छा स्थान बनाया ।
- भारत की गुट – निरपेक्षता की नीति को अन्ततः दोनों महाशक्तियों ने स्वीकार किया तथा प्रशंसा की ।
- भारत की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान , एक शांतिप्रिय लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में हुई ।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ तथा सार्क देशों के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ।
विश्व राजनीति में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की उपलब्धियाँ ( महत्व या योगदान )
- विश्व शांति के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र का भरपूर सहयोग किया गया ।
- दोनों महाशक्तियों के बीच चल रहे शीत युद्ध को समाप्त करने में सहयोग दिया ।
- अन्तर्राष्ट्रीय जगत में तृतीय शक्ति के रूप में गुट निरपेक्ष देश उभरा इससे तृतीय विश्व युद्ध का खतरा टला ।
- नि : शस्त्रीकरण क्षेत्र में गुट निरपेक्ष देशों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया ।
- अविकसित राष्ट्रों के मध्य आर्थिक सहयोग एवं विकास में गुट – निरपेक्ष राष्ट्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।
- नवोदित राष्ट्रों को महाशक्तियों के जाल से बचाकर स्वतंत्र विकास का अवसर प्रदान किया ।
- गुट – निरपेक्ष आन्दोलन ने नवोदित राष्ट्रों को स्वतंत्र रूप से विदेश नीति का निर्धारण करने की प्रेरणा दी ।
गुट निरपेक्ष आन्दोलन की असफलताएँ : –
- यह आन्दोलन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक नई दिशा देने में असफल रहा ।
- गुट निरपेक्षता से ही राष्ट्रीय सुरक्षा स्थापित नहीं हो सकती ।
- भारत – चीन सन् 1962 के युद्ध के समय अनेक गुट – निरपेक्ष देशों की भारत के साथ कोई सहानुभूति नहीं थी , अनेक पश्चिमी राष्ट्रों ने त्वरित भारत की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया , जबकि वे राष्ट्र इस आन्दोलन के सदस्य नहीं थे ।
- गुट निरपेक्ष आन्दोलन को सुसंगठित रूप न दे पाना ।
- इस आन्दोलन को अवसरवादी नीति भी कुछ आलोचकों ने कहा है ।
- गुट – निरपेक्ष राष्ट्रों के हितों में टकराव देखा गया ।
- गुट निरपेक्ष आन्दोलन एक नैतिक आन्दोलन है ।