सैन्य संधि | संगठन |
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अमरीका | सोवियत संघ |
1 . NATO – ( 1949 ) | | |
2 . SEATO – ( 1954 ) | | |
3 . CENTO – ( 1955 ) | वारसा पैक्ट 1955 |
दोनों महाशक्तियों द्वारा परमाणु जखीरे एवं हथियारों की होड़ कम करने के लिए सकारात्मक कदम :-
- परमाणु परिक्षण प्रतिबन्ध संधि
- परमाणु अप्रसार संधि
- परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि ( एंटी बैलेस्टिक मिसाइल ट्रीटी )
SEATO एवं CENTO :-
🔹 अमरीका ने पूर्वी और द० पू० एशिया तथा पश्चिम एशिया मे गठबंधन का तरीका अपनाया इन्ही गठबन्धनो को SEATO , CENTO कहा गया ।
SEATO :-
🔹 south – East Asian Treaty organization ( दक्षिण पूर्व एशियाई संधि संगठन )
🔹 स्थापना-1954
🔹 उद्देश्य – साम्यवादियो की विस्तारवादी नीतियों से दक्षिण पूर्व एशियाई देशो की रक्षा करना ।
CENTO :-
🔹 Central Treaty Organization ( केन्द्रीय संधि संगठन )
🔹 स्थापना-1955
🔹 उद्देश्य – सोवियत संघ को मध्य पूर्व से दूर रखना । साम्यवाद के प्रभाव को रोकना ।
शीत युद्ध के दायरे :-
🔹 विरोधी खेमों में बैठे देशों के बीच संकट के अवसर आए । युद्ध हुए । संभावना रही मगर कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ । कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान जैसे कुछ क्षेत्रों में अधिक जनहानि हुई । शीतयुद्ध के दौरान खूनी लड़ाई भी हुई ।
गुटनिरपेक्षता :-
🔹 गुटनिरपेक्षता का अर्थ सभी गुटों से अपने को अलग रखना है ।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन :-
🔹 शीतयुद्ध के दौरान दोनो महाशक्तियों के तनाव के बीच एक नए आन्दोलन ने जन्म लिया जो दो ध्रुवीयता में बंट रहे देशों से अपने को अलग रखने के लिए था जिसका उदेश्य विश्व शांति था । इस आन्दोलन का नाम गुटनिरपेक्ष आन्दोलन पड़ा । गुटनिरपेक्ष आन्दोलन महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने का आन्दोलन था । परन्तु ये अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अपने को अलग – थलग नहीं रखना था अपितु इन्हें सभी अंतर्राष्ट्रीय मामलों से सरोकार था ।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना :-
🔹 सन् 1956 में युगोस्लाविया के जोसेफ ब्रांज टीटो , भारत के जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर ने एक सफल बैठक की । जिससे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म हुआ ।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक नेताओं के नाम :-
- जोसेफ ब्रांज टीटो – युगोस्लाविया
- जवाहर लाल नेहरू – भारत
- गमाल अब्दुल नासिर – मिस्र
- सुकर्णों – इंडोनेशिया
- वामे एनक्रुमा – घाना
प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मलेन :-
- 1961 में बेलग्रेड में हुआ ।
- इसमें 25 सदस्य देश शामिल हुए ।
14 व गुटनिरपेक्ष सम्मलेन :-
- 2006 क्यूबा ( हवाना ) में हुआ ।
- 166 सदस्य देश और 15 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए ।
17 व गुटनिरपेक्ष सम्मलेन :-
- 2016 में वेनेजुएला में हुआ ।
- इसमें 120 सदस्य – देश और 17 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए ।
गुटनिरपेक्षता को अपनाकर भारत को क्या लाभ :-
🔹 अंतरराष्ट्रीय फैसले स्वतंत्र रूप से ले पाया ऐसे फैसले जिसमें भारत को लाभ होना ना कि किसी महाशक्ति को ।
🔹 गुटनिरपेक्षता से भारत हमेशा ऐसी स्थिति में रहा कि अगर कोई एक महाशक्ति उसके खिलाफ जाए तो वह दूसरे की तरफ जा सकता था ऐसे में कोई भी भारत को लेकर ना तो बेफिक्र रह सकता था ना दबाव बना सकता था।
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना :-
🔹 आलोचकों ने कहा गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धांत विहीन है भारत इसकी आड़ में अंतरराष्ट्रीय फैसले लेने से बचता है ।
🔹 भारत के व्यवहार में स्थिरग नहीं है भारत में (1971) की युद्ध में सोवियत संघ से मदद ली थी कुछ नहीं तो यह मान लिया कि हम सोवियत खेमे में शामिल हो गए है। जब कि हमने सिर्फ मदद ली थी सोवियत संघ हमारा सच्चा दोस्त था उसने हमेशा हमारी मदद की है ।
गुटनिरपेक्ष ना तो पृथकवद है और ना ही तथास्तया :-
🔸 पृथकवद :- पृथकवद का अर्थ होता है अपने आप को अंतरराष्ट्रीय मामलों से काट के रखना । अर्थात बस अपने आप से मतलब रखना बाकी किसी दूसरे से अलग रहना। ऐसा अमेरिका ने किया (1789 – 1914) तक पृथकवद को अपना के रखा था ।
🔹 भारत ने ऐसा नहीं किया था गुटनिरपेक्षता को अपनाया लेकिन पृथकवाद की नीति नहीं अपनायी।
🔹 भारत आवश्यकता पड़ने पर मदद लेता था और दूसरों की मदद करता था ।
🔸 तथास्तया :- गुटनिरपेक्षता का अर्थ तथास्तया का धर्म निभाना नहीं है तथास्तया को अपनाने का मतलब है मुख्यता: युद्ध में शामिल नहीं होना लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वह युद्ध को समाप्त करने में मदद कर दें और यह देश युद्ध को सही गलत होने पर कोई पक्ष भी नहीं रखते
🔹 गुटनिरपेक्ष देशों ने तथास्तया को बिल्कुल भी नहीं अपनाया क्योंकि भारत तथा अन्य देशों ने हमेशा से दोनों महाशक्तियों के बीच शत्रुता को कम करने का प्रयास किया है ।
नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था :-
🔹 गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकतर देश की अल्पविकसित देशों का दर्जा मिला था यह देश गरीब देश थे इनके सामने मुख्य चुनौती अपनी जनता को गरीबी से निकालना था ।
🔹 इनके लिए आर्थिक विकास जरूरी था क्योंकि बिना विकास के कोई भी देश सही मायने में आजाद नहीं रह सकता ।
🔹 ऐसे में देश उपनिवेश (गुलाम) भी हो सकते हैं इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ ।
🔹 1972 में (U.N.O) के व्यापार और विकास में संबंधित सम्मेलन (UNCTAD) मैं नाम से एक रिपोर्ट आई ।
🔹 इस रिपोर्ट में वैश्विक- व्यापार प्रणाली से सुधार का प्रस्ताव किया गया इस रिपोर्ट में कहा गया :-
- 1) अल्पविकसित देशों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार होगा यह देश अपने इन संसाधनों का इस्तेमाल अपने तरीके से कर सकते हैं ।
- 2) अल्पविकसित देशों की पहुंच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी यह देश अपना समान पश्चिमी देश तक बेच सकेंगे ।
- 3) पश्चिमी देश में मंगायी या जारी टेक्नोलॉजी प्रद्योगिकी की लागत कम होगी ।
- 4) अल्प विकसित देशों की भूमिका अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में उनकी भूमिका बढ़ाई जाएगी ।
शस्त्र नियंत्रण संधियाँ :-
L . T . B . T . सीमित परमाणु परीक्षण संधि :-
- 5 अगस्त 1963
SALT सामारिक अस्त्र परिसीमन वार्ता :-
- 1 ) 26 मई 1972
- 2 ) 18 जून 1972
START – सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि :-
- 1 ) 31 जुलाई 1991
- 2 ) 3 जनवरी 1993
N . P . T . – परमाणु अप्रसार संधि :-
- 1 जुलाई 1968