Class 12 history chapter 9 notes in hindi, शासक और इतिवृत्त मुगल दरबार notes

भाषा :-

🔹 मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे । चूँकि मुगल चगताई मुल के थे अतः तुर्की उनकी मातृभाषा थी । इनके पहले शासक बाबर ने कविताए और आपने संस्मरण इसी भाषा मे लिखे ।

🔹 अकबर ने सोच – समझकर फ़ारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया ।

🔹 फ़ारसी को दरबार की भाषा का ऊँचा स्थान दिया गया तथा उन लोगो को शक्ति व प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनकी इस भाषा पर अच्छी पकड़ थी । यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गई । जिससे लेखाकारों , लिपिकों तथा अन्य अधिकारियों ने भी इसे शिख लिया ।

🔹 फ़ारसी के हिन्दवी के साथ पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा निकल आई ।

🔹 अकबरनामा जैसे मुगल इतिहास फ़ारसी में लिखे गए थे । जबकि अन्य जैसे बाबर के संस्मरणों का बाबरनामा के नाम से तुर्की से फ़ारसी में अनुवाद किया गया था ।

🔹 मुगल बादशाहों ने महाभारत और रामायण जैसे संस्कृत ग्रथो को फ़ारसी में अनुवादित किए जाने का आदेश दिया ।

🔹 महाभारत का अनुवाद रज्मनामा ( युद्धों की पुस्तक ) के रूप में हुआ ।

मुगल चित्रकला :-

🔹 अबुल फजल ने चित्रकारी का एक जादुई कला के रूप में वर्णन किया है । अबुल फजल चित्रकारी को बहुत सम्मान देता था ।

🔹 17 वी सदी में मुगल बादशाहों को प्रभामंडल के साथ चित्रित किया जाने लगा । ईश्वर के प्रतीक रूप में इन प्रभामंडल को उन्होंने ईसा और वर्जिन मेरी के यूरोपीय चित्रो से लिया था ।

🔹 अकबर को एक चित्र में सफेद पोशाक में दिखाया गया है । यह सफेद रंग सूफी परम्परा की और सकेत करता है ।

🔹बादशाह उसके दरबार तथा उसमें हिस्सा लेने वाले लोगो का चित्रण करने वाले चित्रो की रचना को लेकर शासको और मुसलमान रूढ़िवादी वर्ग के प्रतिनिधियो आर्थात उमला के बीच निरतर तनाव बना रहा ।

🔹 उमला ने कुरान के साथ – साथ हदीस , ( जिससे पैगम्मर मुहम्मद के जीवन से एक ऐसा ही प्रसंग वर्जित है ) में प्रतिष्ठिता मानव रूप के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबंध का आह्वान किया ।

🔹 ईरान के सफावी राजाओं ने दरबार मे स्थापित कार्यशालाओं में प्रशिक्षित उत्कष्ट कलाकारों को सरक्षण दिया , उदहारण – बिहजाद जैसे चित्रकार ।

🔹 मीर सैय्यद अली और अब्दुल समद नामक कलाकारों को हुमायूँ ईरान से अपने साथ दिल्ली लाया ।

          नोट :- पयाग शाहजहाँ कालीन चित्रकार था ।
          अब्दुल हसन जहाँगीर कालीन चित्रकार था ।

अकबरनामा और अइन – ए – अकबरी :-

🔹 महत्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों से सर्वाधिक ज्ञात अकबरनामा और बादशाहनामा राजा का इतिहास है ।

🔹 प्रत्येक पांडुलिपि में औसतन 150 पूरे अथवा दोहरे पृष्टों पर लड़ाई , घेराबंदी , शिकार , इमारत निर्माण , दरबारी दृश्य आदि के चित्र है ।

🔹 अकबरनामा के लेखक अबुल फजल का चालान पोषण मुगल राजधानी आगरा में हुआ ।

🔹 अकबर के करीबी मित्र और दरबारी अबुल फजल ने उसके शासनकाल के इतिहास लिखा ।

🔹 अबुल फजल ने यह इतिहास तीन जिल्दों में लिखा और इसका शीर्षक था – अकबरनामा ।

🔹 पहली जिल्द में अकबर के पूर्वजों का बयान है और दूसरी अकबर के शासनकाल की घटनाओं का विवरण देती है ।

🔹 तीसरी जिल्द ( अइन – ए – अकबरी ) है । इसमें अकबर के प्रशासन , घराने , सेना , राजस्व और सम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा मिलता है । इसमें समकालीन भारत के लोगो की परम्पराओ ओर संस्कृतियों का भी विस्तृत वर्णन है ।

🔹 अइन – ए – अकबरी का सबसे रोचक आयाम है , विविध प्रकार की चीजों , फसलो , कीमतों , मजदूरी और राजस्व का सांख्यिकीय विवरण ।

🔹 मेहरुनिनसा ने 1611 ई० में जहाँगीर से विवाह किया और उसे नूरजहाँ का खिताब मिला । नूरजहाँ हमेशा जहाँगीर के प्रति अत्यधिक वफादार रही । नूरजहाँ के सम्मान में जहाँगीर ने चाँदी के सिक्के जारी किए ।

बादशाहनामा :-

🔹 बादशाहनामा भी सरकारी इतिहास है । इसकी तीन जिल्दें ( दफ्तर ) है और प्रत्येक जिल्द चंद्र बर्षो का ब्यौरा देती है ।

🔹 लाहौरी ने शाहजहाँ के शासन ( 1627 ई० – 1647 ई० ) के पहले दो दशको पर पहला व दूसरा दफ्तर लिखा । इन जिल्दों में बाद में शाहजहाँ के वजीर सादुल्लाह खाँ ने सुधार किया ।

🔹सुहारवर्दी दर्शन के मूल में प्लेटो की रिपब्लिक है । जहाँ ईश्वर को सूर्य के प्रतीक द्वारा निरूपित किया गया है । सुहारवर्दी कि रचनाओं को इस्लामी दुनिया मे व्यापक रूप से पढ़ा जाता है । शेख मुबारक ने इसका अध्यन किया था ।

मुगल साम्राज्य की धार्मिक स्थिति :-

🔹 1563 ई० में अकबर ने तीर्थ यात्रा कर समाप्त किया । 1564 ई० में अकबर ने जजिया समाप्त किया ।

🔹 सभी मुगल बादशाहों ने उपासना स्थलों के निर्माण व रखरखाव के लिए अनुदान दिए ।

🔹 यहाँ तक कि युद्ध के दौरान जब मंदिरो को नष्ट कर दिया जाता था तो बाद में उसकी मरमत के लिए अनुदान जारी किए जाते थे । ऐसा हमे शाहजहाँ एव ओरंगजेब के शासन काल मे पता चलता है ।

मुगल दरबार :-

🔹 दरबार मे किसी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह शासक के कितने पास या दूर बैठा है ।

🔹 किसी भी दरबारी को शासक द्वारा दिया गया स्थान बादशाह की नजर में उसकी महत्ता का प्रतीक था ।

🔹 कोर्निश ओपचारिक अभिवादन का तरीका था ।

🔹 शासक को किये गए अभिवादन के तरीके से उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था । जैसे – जैसे व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता था उस व्यक्ति की हैसियत ज्यादा ऊँची मानी जाती थी ।

🔹 शाहजहाँ ने इस तरीके के स्थान पर तस्लीम तथा जमीबोस के तरीके अपनाए ।

बादशाह का दिन :-

🔹 बादशाह का जीवन की सुरुआत सूर्योदय के समय के कुछ धार्मिक प्रथाओं से होती थी । इसके बाद वह झरोखा दर्शन देता था ( पूर्व की ओर मुंह करके ) अकबर द्वारा शुरू किए गए झरोखा दर्शन का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता को स्वीकृति व विस्तार देना था ।

तख्त – ए – ताउस :-

🔹 तख्त – ए – ताउस शाहजहाँ का रत्नजड़ित सिंहासन था । इसकी साजो – सज्जा में 7 वर्ष लगे । इसकी सजावट में बहुमुल्य पत्थर रूबी का प्रयोग किया गया । जिसे शाह अब्बास सफवी ने दिवंगत बादशाह जहाँगीर को भेजा था । इस रूबी पर तैमूर मिर्जा उलुग बेग शाह अब्बास , अकबर , जहाँगीर व शाहजहाँ का नाम अंकित है ।

दीवाने – ए – आम और दीवाने – ए – खास में अंतर :-

दीवाने – ए – आमदीवाने – ए – खास
दीवाने – ए – आम में बादशाह सरकार के प्राथमिक कार्यों का संचालन करता था। वहां पर राज्य के अधिकारी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे और निवेदन करते थे।इसके विपरीत दीवाने – ए – खास में बादशाह निजी सभाएं और गोपनीय विषय पर चर्चा करते थे और वहां के वरिष्ठ मंत्री अपनी याचिकाएं प्रस्तुत करते थे कर अधिकारी हिसाब का ब्यौरा देते थे।

पदवियां , उपहार ओर भेट :-

🔹 योग्य व्यक्तियों को पदवियां देना मुगल राजतंत्र का एक महतवपूर्ण अंगा था । कुछ प्रमुख पदवियाँ थी आसफा खाँ , मिर्जा राजा इत्यादि ।

🔹 औरंजेब ने जयसिंह व जसवंत सिंह को मिर्जा राजा की पदवी प्रदान की थी ।

🔹 पदवियां या तो अर्जित की जा सकती थी अथवा उन्हें पाने के लिए पैसे दिए जा सकते थे , उदहारण के लिए मीर खान ने आपने नाम के आगे अ अक्षर लगाकर अमीर खान करने के लिए एक लाख रुपये का प्रस्ताव दिया ।

🔹 अन्य पुरस्कारों में सम्मान का जामा ( खिल्लत ) भी शामिल था जो पहले कभी ना कभी बादशाह द्वारा पहना हुआ होता था । यह बादशाह के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता था ।

🔹 बहुत खास परिस्थितियों में बादशाह कमल की मंजरियों वाला रत्नजड़ित गहनों का सेट ( पदम मुरम्मा ) भी उपहार में प्रदान करता था ।

🔹 एक दरबारी बादशाह के पास कभी खाली हाथ नही जाता था या तो वह नज़्र के रूप में थोड़ा धन या तो पेशकस के रूप में मोटी रकम बादशाह के सामने पेश करता था ।

🔹 राजनयिक संबधो में उपहारो को सम्मान व आदर का प्रतीक माना जाता था । टॉमस रो को इस बात से बहुत निराशा हुई कि उसने आसफ खाँ का जो अंगूठी भेट की थी । वह उसे केवल इसलिए वापस कर दी गई क्योंकि वह मात्र 400 रुपये की थी ।

शाही परिवार :-

🔹 हरम शब्द का प्रयोग मुगलो की घरेलू दुनिया की ओर सकेत करने के लिए होता है । यह फ़ारसी शब्द से निकलता है । जिसका अर्थ है – पवित्र स्थान । इसमे शामिल थे – बादशाह की पत्नियां , उपपत्नियॉ , उनके नजदीकी व दूर के रिश्तेदार ( महिलाये तथा बच्चे ) महिला परिचारिकायें तथा गुलाम ।

🔹 बहुविवाह प्रथा शासक वर्गों में व्यापक रूप से प्रचलित थी राजपूतो एव दोनो के लिए विवाह राजनीतिक सम्बंध बनाने का एक तरीका था ।

🔹बेगम मुगल परिवार में शाही परिवार से आने वाली स्त्रियां थी ।

🔹 अगहा मुगल परिवार में आने वाली ऐसी स्त्रियां थी जिनका सम्बंध शाही या कुलीन परिवार से नही था ।

🔹 मेहर ( दहेज ) शाही परिवार से अत्यधिक मात्रा में आता था । स्वाभाविक था कि हरम में बेगमो का सम्मान अगहा की तुलना में अधिक था ।

🔹 नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारीयो ने महत्वपूर्ण वित्तिय स्रोतों पर नियंत्रण रखना शुरू कर दिया । शाहजहाँ की पुत्रियों जहाआरा ओर रोशनआरा को ऊँचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी । जहाआरा के सूरत के व्यपार से भी राजस्व प्राप्त होता था ।

मुगल अभिजात वर्ग :-

🔹 अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहो से होती थी । इससे वह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि राज्य की सत्ता को चुनोती दे सके ।

🔹 मुगलो के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था , अर्थात जो वफादार से बादशाह के साथ जुड़े हुये थे ।

🔹 प्रारम्भ में तुरानी व ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे । 1560 ई० के बाद राजपूतो व भारतीय मुसलमानों ( शेखजादाओ ) ने शाही सेवा में प्रवेश किया ।

🔹 सेवा में आने वाला प्रथम राजपूत मुखिया आंबेर का राजा शासक कच्छवाहा था जिसकी पुत्री से अकबर ने विवाह किया था ।

🔹 जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए । नूरजहाँ ( जहाँगीर की प्रिय पत्नी ) ईरानी थी ।

🔹 औरंगजेब ने राजपूतो को उच्च पदों पर नियुक्त किया फिर भी औरंगजेब के समय गैर – मुसलमान अधिकारियो में मराठों की बहुतायत थी ।

🔹 चार चमन चंद्रभान ब्राह्मण द्वारा शाजहाँ के समय किया गया ग्रंथ है जिसमे मुगल अभिजात वर्ग का वर्णन है ।

🔹 अकबर ने आपने अभिजात वर्ग के कुछ लोगो को शिष्य ( मुरीद ) की तरह मानते हुये उनके साथ आध्यत्मिक रिश्ते कायम किये ।

मुगल दरबार मे जेसुइट धर्म प्रचारक :-

🔹 अकबर ईसाई धर्म के बारे में जानने को बहुत उत्सुक था । उसने जेसुइट पादरियों को आमंत्रित करने के लिए एक दूतमण्डल गोवा भेजा ।

🔹 पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेपुर सीकरी के मुगल दरबार मे 1580 ई० में पहुँचा ओर वह वहाँ लगभग दो वर्ष रहा ।

🔹 लाहौर के मुगल दरबार मे दो और शिष्यमंडल 1591 ई० और 1595 ई० में भेजे गए ।

🔹 सर्वाधिक सभाओ में जेसुइट लोगो को अकबर के सिंहासन के काफी नजदीक स्थान दिया जाता था । वे उसके साथ अभियानों में जाते , उसके बच्चो को शिक्षा देते तथा उसके फुरसत के समय मे वे अक्सर उसके साथ होते थे ।


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